धनतेरस के दिन भगवान विष्णु के 12वें अवतार भगवान धन्वंतरि की पूजा करने का विधान है। धन्वंतरि न केवल आयुर्वेद के जन्मदाता हैं बल्कि देव चिकित्सक भी हैं। पांच दिनों के दिवाली का त्योहार धनतेरस के दिन से शुरू होता है। वहीं धनतेरस का त्योहार धन, समृद्धि और स्वास्थ्य से जुड़ा त्योहार है। इस दिन लोग नए चीजों की खरीदारी करते है जैसे कि, सोना-चांदी, बर्तन और अन्य धातु से संबंधित चीजें। ऐसा माना जाता है कि, धनतेरस के दिन इन वस्तुओं को खरीदने से घर में धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है और जीवन में आ रही सभी समस्याएं दूर हो जाती है। धनतेरस को धन त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, कुबेर देवता और भगवान धन्वंतरि को समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार, धनतेरस का त्योहार कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल धनतेरस का त्योहार 29 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
इसलिए मनाया जाता है धनतेरस का पर्व
एक और प्रश्न सभी के मन में होगा कि, इस त्योहार का नाम धनतेरस कैसे पड़ा? तो आपको बता दे कि, देवताओं और दानवों द्वारा समुद्र मंथन किया गया था। इस दौरान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे और तभी से धनतेरस को उन्हीं के नाम से जाना जाने लगा। जिस तिथि को भगवान धन्वंतरि समुद्र से निकले, वह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी। भगवान धन्वंतरि समुद्र से कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए, इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परंपरा चली आ रही है। भगवान धन्वंतरि को विष्णु भगवान का अंश माना जाता है। भगवान धन्वंतरि के बाद माता लक्ष्मी भी दो दिन बाद समुद्र से निकली थीं, इसलिए दो दिन बाद दीपावली का पर्व मनाया जाता है और दिवाली के दिन मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने से जीवन में आरोग्य सुख की प्राप्ति होती है।
धनतेरस पर क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए?
धनतेरस पर सोने और चांदी या बर्तन की खरीदारी करनी चाहिए। इसके साथ ही भगवान धन्वंतरि और माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। घर की साफ-सफाई और सजावट करनी चाहिए। वहीं धनतेरस के दिन किसी से कर्ज का लेन देन नहीं करना चाहिए। इस दिन अशुद्ध स्थानों पर पूजा नहीं करनी चाहिए। इसके साथ ही क्रोध और नकारात्मकता से दूर रहना चाहिए।
चिकित्सा विज्ञान का किया था प्रचार
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य को ही सबसे बड़ा धन माना गया है और इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि, भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंश माना जाता है और इन्होंने ही संसार में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार और प्रसार किया। इस दिन घर के द्वार पर 13 दीपक जलाए जाने की प्रथा है। धनतेरस दो शब्दों से मिलकर बना है – पहला धन और दूसरा तेरस जिसका अर्थ होता है धन का तेरह गुना। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के कारण इस दिन को वैद्य समाज धन्वंतरि जयंती के रूप में मनाता है।
भगवान धन्वंतरि के जन्म की यह भी कथा है
भगवान धन्वंतरि के जन्म की एक और कथा है। इसके अनुसार एक बार गालव ऋषि प्यास से व्याकुल होकर वन में भटकर रहे थे, तभी वहां से वीरभद्रा नाम की एक कन्या घड़े में पानी लेकर जा रही थी और उसने ही ऋषि गालव की प्यार बुझाई। जिससे प्रसन्न होकर गालव ऋषि ने आशीर्वाद दिया कि तुम योग्यपुत्र की मां बनोगी। लेकिन जब वीरभद्रा ने कहा कि, वह एक वेश्या है तो ऋषि उसे लेकर आश्रम गए और उन्होंने वहां कुश की पुष्पाकृति आदि बनाकर उसके गोद में रख दी और वेद मंत्रों से अभिमंत्रित कर प्रतिष्ठित कर दी और फिर वही धन्वंतरि कहलाए।
सुश्रुत मुनि को भी उपदेश धन्वंतरि से मिला
भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जन्मदाता माना जाता है। उन्होंने विश्वभर की वनस्पतियों पर अध्ययन कर उसके अच्छे और बुरे गुण को प्रकट किया। भगवान धन्वंतरि ने कई ग्रंथ लिखे उनमें से ही एक है धन्वंतरि संहिता जो आयुर्वेद का मूल ग्रंथ है। आयुर्वेद के आदि आचार्य सुश्रुत मुनि ने भगवान धन्वंतरि से ही इस चिकित्साशास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया था, उसके बाद में चरक आदि ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया।