कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के संभल में जब जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हिंसा भड़की थी। उस हिंसा में कई लोगों की गोली लगने से मौत हो गई थी। इस हिंसा के बाद योगी सरकार ने ताज़ा मामले के साथ – साथ 1978 में हुए संभल दंगों की जांच कराने के भी आदेश दे दिए हैं।
47 साल पहले हुए इस दंगे में आधिकारिक 24 लोगों की मौत हो गई थी, हालांकि अलग अलग जगह ये आंकड़े काफी ज्यादा बताए जाते हैं। खुद सीएम योगी भी एक बार अपने बयान में कहा था कि संभल दंगे में 184 लोगों की मौत हुई थी।
हैरानी की बात है की उस दंगे और नरसंहार की ज्यादा चर्चा नहीं होती और न ही इतनी जानकारी भी प्रकशित की गई है।
संभल, उत्तर प्रदेश, में 1978 में हुए सांप्रदायिक दंगों ने भारतीय इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में अपनी छाप छोड़ी है। इन दंगों में लगभग 184 लोगों की मृत्यु हुई थी, और इसके परिणामस्वरूप स्थानीय जनसंख्या में भारी परिवर्तन हुए थे। सीधे तौर पर कहा जाये तो हिन्दू की जनसंख्या वहां कम हो गई और वो इलाक़ा मुस्लिम बहुल बन गया।
1978 में, संभल में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव बढ़ रहा था। यह तनाव उस समय और बढ़ गया जब एमजीएम कॉलेज में एक घटना घटी, जहां छात्रों द्वारा उपस्थित लोगों को उपाधियाँ दी गईं, जिसमें मुस्लिम महिला छात्राएँ भी शामिल थीं। इससे स्थानीय मुस्लिम नेता मंजर शरीफ नाराज हो गए, जिनका कॉलेज प्रशासन के साथ पहले से विवाद चल रहा था। अगले दिन, शरीफ ने लगभग 30 लोगों के साथ एक प्रदर्शन का नेतृत्व किया, जो बाद में दुकानों को बंद कराने के प्रयास में बदल गया, जिससे हिंदू दुकानदारों के साथ झड़पें हुईं। रिपोर्टों के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने दुकानों में आग लगा दी, जिससे दोनों समुदायों के बीच तनाव और बढ़ गया।
दंगों के दौरान, व्यापारी बनवारी लाल गोयल की हत्या एक महत्वपूर्ण घटना थी। गोयल ने पहले अपने साले मुरारी लाल के हवेली में दुकानदारों को शरण दी थी, लेकिन दंगाइयों ने ट्रैक्टर से गेट तोड़कर 24 लोगों की हत्या कर दी। उनकी मृत्यु के बाद, हिंदू परिवारों में भय व्याप्त हो गया और उन्होंने संभल छोड़ना शुरू कर दिया। दंगों से पहले, हिंदू समुदाय स्थानीय जनसंख्या का 35% था, जो बाद में घटकर 20% रह गया।
दंगों के बाद, शहर में 30 दिनों से अधिक समय तक कर्फ्यू लगाया गया। लगभग 168 FIR दर्ज की गईं, जिनमें लगभग 1,200 लोगों को आरोपी बनाया गया। हालांकि, सबूतों की कमी के कारण, अधिकांश आरोपी बरी हो गए। गोयल की हत्या के मामले में, न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा है कि ऐसे लोग फांसी से बच गए। 2010 में, सभी आरोपी सबूतों के अभाव में बरी हो गए। बनवारी लाल का परिवार 1995 में संभल छोड़कर चला गया।
खबरों के मुताबिक 1994 में मुलायम सरकार ने कई मुकदमें वापस ले लिए थे। मुकदमे वापस लेने के लिए तत्कालीन जिला शासकीय अधिवक्ता ने कोर्ट में प्रार्थनापत्र दिया था। जिसके बाद 6 जनवरी को मुकदमे वापस हो गए थे। जबकि कई पीड़ित मुकदमा लड़ना चाहते थे।
दिसंबर 2024 में, संभल के खग्गू सराय क्षेत्र में स्थित शिव-हनुमान मंदिर, जो 46 वर्षों से बंद था, फिर से खोला गया। यह मंदिर 1978 के दंगों के बाद से बंद था, क्योंकि हिंदू परिवारों ने क्षेत्र छोड़ दिया था। इस घटना ने दंगों के बारे में नई चर्चाओं को जन्म दिया और न्याय की मांग को फिर से उजागर किया।
1978 के संभल दंगे भारतीय इतिहास में सांप्रदायिक हिंसा के एक दुखद उदाहरण हैं। हिंदू लगातर वहां मारे – जलाये जाते रहे और सरकारे मूकदर्शक बनकर वोट के लालच में धर्म निरपेक्षता के बुर्के में छिप जाती थी। उन दंगों ने न केवल अनेक निर्दोष लोगों की जान ली, बल्कि समुदायों के बीच गहरे घाव भी छोड़े।