ये कहानी सिर्फ़ बम धमाकों की नहीं है, ये कहानी उस शहर की है जो कभी सोता नहीं था और फिर एक दिन ऐसा आया जब उसकी नींद छीन ली गई। मुंबई—एक शहर जो सपनों का था, एक ऐसा शहर जहाँ हर कोई कुछ बनने आता था, वो 1993 और फिर 2008 में एक ऐसा डर बन गया, जिसने उसकी आत्मा को झकझोर दिया।
दोपहर के 1:30 बजे का वक्त था। लोग अपने दफ्तरों में लंच कर रहे थे, सड़कों पर भीड़ थी, समंदर अपनी लहरों से उसी तरह किनारों को सहला रहा था, मानो सबकुछ सामान्य हो। लेकिन कोई नहीं जानता था कि अगले कुछ घंटों में यह शहर लहूलुहान होने वाला था।
पहला धमाका बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के ठीक सामने हुआ। तेज़ धमाके की आवाज़ के साथ इमारत की खिड़कियाँ चकनाचूर हो गईं। जो जहाँ था, वहीं थम गया। कुछ को समझ ही नहीं आया कि यह क्या हुआ। लेकिन इससे पहले कि कोई संभल पाता, एक के बाद एक 12 धमाके मुंबई को हिला चुके थे।
स्टॉक एक्सचेंज से लेकर ज़वेरी बाज़ार, प्लाज़ा सिनेमा, सी रॉक होटल, एयर इंडिया बिल्डिंग, सेंचुरी बाज़ार… हर जगह आग, चीखें और अफरा-तफरी मच चुकी थी। सड़कें लाशों को अपनी गोद में समेटे हुए खुद भी नहीं सोच पा रही थी कि उनका क्या करना है। खून से सनी बॉडीज़, अधजले चेहरे, तड़पते लोग, बिखरे हुए अंग…यह मंजर ऐसा था जिसे शब्दों में बयान कर पाना मुमकिन भी नहीं। धमाकों का तरीका भी सुनियोजित था…कार बम, स्कूटर बम, ट्रक बम। हमलावर जानते थे कि शहर के कौन-से हिस्से सबसे ज्यादा भीड़-भाड़ वाले हैं और कब धमाका किया जाए ताकि अधिक से अधिक लोग मारे जाएं।
बॉम्बे हॉस्पिटल, जे.जे. हॉस्पिटल, केईएम, और सायन हॉस्पिटल में जगह नहीं बची थी। डॉक्टर लगातार खून से लथपथ शरीरों को देख रहे थे, लेकिन हर किसी को बचा पाना नामुमकिन था। किसी का पैर कट चुका था, किसी के हाथ की नसें बाहर लटक रही थीं। कई लोग जिंदा जल चुके थे, उनके चेहरे पहचान में नहीं आ रहे थे।
12 मार्च 1993 के बाद मुंबई वही नहीं रही। इस शहर ने पहली बार संगठित आतंकवाद का घाव महसूस किया। यहाँ पहले भी दंगे हुए थे, लेकिन यह हमले योजनाबद्ध, क्रूर और भयावह थे। हर व्यक्ति के अंदर एक अनदेखा डर घर कर गया था।
बाद में खुलासा हुआ कि यह हमला दाऊद इब्राहिम और उसके D कंपनी द्वारा रचा गया था। बाबरी ढांचे को गिराने और मुंबई दंगों का बदला लेने के लिए इस हमले को अंजाम दिया गया। हथियार और Rdx दुबई और पाकिस्तान से आए थे। टाइगर मेमन, याकूब मेमन और उनके साथियों ने इस नरसंहार को अंजाम दिया था।
पुलिस और खुफिया एजेंसियों की चूक भी सामने आई। बम धमाकों के बाद मुंबई में पहली बार संगठित आतंकवाद के खिलाफ सख्त सुरक्षा व्यवस्था लागू की गई। मुंबई पुलिस और भारतीय खुफिया एजेंसियों ने आतंकवाद के खिलाफ नई रणनीतियाँ बनाई। 1999 में टाडा कोर्ट ने कई दोषियों को फांसी और उम्रकैद की सज़ा सुनाई, लेकिन दाऊद और टाइगर मेमन अब भी फरार हैं। 2015 में याकूब मेमन को फांसी दी गई, लेकिन यह घाव अभी भी भरा नहीं है।
बेशक, 12 मार्च 1993 ने मुंबई को तोड़ दिया था, लेकिन यह शहर कभी हार नहीं मानता। आज भी लोग मुंबई स्टॉक एक्सचेंज के बाहर खड़े होकर वही कारोबार करते हैं। ज़वेरी बाज़ार फिर से रोशनी में नहाया हुआ है। लोकल ट्रेनें उसी रफ्तार से दौड़ती हैं।
मुंबई कभी रुकती नहीं थी, मगर अब उसकी रफ़्तार में सतर्कता आ गई थी। लोग अजनबियों से सवाल करने लगे, लावारिस बैग देखकर सहमने लगे। मुंबई ने अपनी चकाचौंध के पीछे एक साया महसूस करना शुरू कर दिया था…एक ऐसा डर, जो उसके DNA का हिस्सा बन गया।
मुंबई आज भी चल रही है, भाग रही है, लेकिन उसकी आँखों में वह दिन हमेशा के लिए कैद है। एक शहर, जो कभी नहीं सोता, उस दिन खामोश हो गया था। लेकिन अगले ही दिन, वही शहर अपने घाव छुपाकर फिर से खड़ा हो गया…क्योंकि यही मुंबई की फितरत है।