“वैसे तो मैंने सारा जीवन अपनी समझ से ऐसे जिया है जिसमें मैंने कोशिश की है कि मैं अपने शहीद भाईयों की बहन कहला सकने की हकदार बनी रहूं।”
ये शब्द हैं बीबी ‘अमर कौर अहलूवालिया’ जी के जो शहीद-ए-आजम भगत सिंह जी की छोटी बहन थीं। भगत सिंह ने हमेशा अपने परिवार और मां की ममता से ज्यादा भारत मां के प्रति अपने प्रेम को तवज्जो दी। पूरे परिवार मे उनके तेज का प्रभाव रहा। उनकी कहानियां काल के अंत तक सुनाई जाती रहेंगी। हालांकि आज़ादी के हवन कुंड मे अपनी राखियों को न्यौछावर कर देने वाली उनकी बहनों के बारे मे लोग ज्यादा नहीं जानते हैं। पंजाब के गुरदासपुर जिले की रहने वाली बीबी अमर कौर भगत सिंह से तीन साल छोटी थीं। वे पंजाब में राष्ट्रवादी आंदोलन की एक अग्रणी हस्ती रहीं। 9 साल की उम्र में भगत सिंह के साथ जलियांवाला बाग के शहीदों की मिट्टी की पूजा करने से लेकर जवानी में रात को अपने तीनों शहीद भाइयों के अधजले टुकड़े लाने से लेकर फिर बुढ़ापे में भी जनता के हकों के लिए पूरी राजनीतिक सक्रियता से काम करने वाली बीबी अमर कौर ने बहुत कुछ सहा, देखा और किया जो लोगों को पता होनी चाहिए।
1930 में अमर कौर को पंजाब में सविनय अवज्ञा आंदोलन को मजबूत करने में उनकी भूमिका के लिए राजद्रोह के आरोप में जेल में डाल दिया गया था।
जब लाहौर षड़यंत्र केस में भगत सिंह और उनके साथी लाहौर की जेल में बंद थे, तब अमर कौर अक्सर उनसे मिलने आती थीं , 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी के बाद वह हुसैनीवाला में उस ओर दौड़ पड़ीं, जहां ब्रिटिश सरकार ने उनके तीनो भाइयों के शवों के टुकड़ों को मिट्टी तेल से जलाने की कोशिश की थी लेकिन वह अपने शहीद भाईयों के शवों के चंद टुकड़े स्मृति के बतौर लायी थीं और उन्होंने अपने तीनों वीर भाइयों की राह पर आजीवन चलने की कसम खायी थी।
1932 में अमर कौर ने अन्य महिलाओं के साथ बादामी बाग रेलवे स्टेशन पर चलती ट्रेन की चेन खींची और “इंकलाब जिंदाबाद”, “विदेशी माल का बहिष्कार” और “गांधी की जय” जैसे नारे लगाए। इस घटना के बाद, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और छह महीने की कैद और चालीस रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, अमर कौर को लाहौर और अमृतसर में महिलाओं के लिए प्रशिक्षण शिविर स्थापित करने के लिए भारत रक्षा नियमों के तहत फिर से गिरफ्तार किया गया था। जेल में रहते हुए, उन्होंने राजनीतिक कैदियों के साथ होने वाले अपमानजनक व्यवहार के खिलाफ प्रदर्शन आयोजित किए।
साल 1942 मे आज की तारीख़ यानी 9 अक्टूबर 1942 को लाहौर जेल के गेट पर उन्होंने तिरंगा भी फहराया। इसकी सजा उन्हें ये मिली कि उन्हें वहां से अम्बाला जेल भेज दिया गया। जेल में रहने के दौरान ये उनकी एक बड़ी जीत थी। इस प्रकार अमर कौर पंजाब में स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न अंग थीं। राष्ट्रीय आंदोलन में उनका अप्रतिम योगदान रहा।
अक्सर वे लोगों के नाम चिट्टी भी लिखा करती थी। 15 अगस्त 1983 को बीबी अमर कौर का मेहनती लोगों के नाम संदेश का अंश!
“आज जो कोई भी धर्म, जाति पाति, फिरकापरस्ती के नाम पर लोगों को बांटता है वह इस धरती की पवित्रता, शहीदों के आजादी समतावादी समाज और आदमी के हाथों आदमी की लूट खत्म करने वाले सुखदायक सिद्धांतों के साथ खेलता है। अतः मेरे मेहनती जागृत देशवासियों ! अब जागो संगठित होकर हमला करो और इस तरह अपनी हिम्मत को जिंदा करो जो इस डरावने माहौल में तुम्हें बुजदिल बना रही है। शहीदों के विचार के अनुसार मनुष्य के हाथों मनुष्य की लूट खत्म करने, मजदूरों की आजादी और बराबरी प्राप्त करने के लिए जितनी जल्दी संगठित हो सकते हो, हो जाओ। अपनी रक्षा आप ही करो। तुम्हीं पर भविष्य का भार है। तुम ही भविष्य की उम्मीद हो। 15 अगस्त आजादी के आज के दिन को अपनी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक मुक्ति का दिन बना डालो। कसम उठाओ।”
शुभकामनाओं के साथ
बीबी अमर कौर।
अंततः वो 12 मई 1984 को देश सेवा करते हुए ही, गुमनामी के अन्धेरें में ही अंतिम साँसे ली थीं और फिर सदा के लिए अपने भाई के पास चली गयीं। उनके जीवन पर आधारित अमोलक सिंह ने पंजाबी भाषा में एक पुस्तक भी लिखी है।