“सुबह से पहले अँधेरी घड़ी अवश्य आती है। बहादुर बनो और संघर्ष जारी रखो ,क्योंकि स्वतंत्रता निकट है।” नेताजी यानी सुभाष चंद्र बोस के जोश और आत्मविश्वास से भरे ये शब्द जवानों के कानों मे पड़े और मीटिंग हॉल ‘जय हिंद – जय भारत’ के नारों से गूंज उठा।
दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हो चुकी थी। नेताजी ने सोवियत संघ, हिटलर की नाजी जर्मनी और इंपीरियल जापान समेत कई देशों की यात्रा पूरी कर ली थी। उनकी इन यात्राओं का मक़सद बाकी देशों के साथ आपसी गठबंधन को मजबूत कर भारत से ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकना था।
भारत को अंग्रेजों की हुकूमत से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए लगभग 200 वर्षों का संघर्ष करना पड़ा। इस संघर्ष में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, चाहे वह 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हो या गदर आंदोलन। भारत माँ को बेड़ियों से आज़ाद करने मे हर घटना का अहम योगदान रहा है। इन आंदोलनों में एक महत्वपूर्ण नाम ‘आज़ाद हिंद फौज’ का भी है।
सन् 1915 मे क्रांतिकारी नेता रास बिहारी बोस और निरंजन सिंह गिल ने जापान मे रहते हुए इंडियन इंडिपेंडेंस लीग बनाई और उसी की एक शाखा के रूप में इंडियन नेशनल आर्मी का गठन भी किया गया जिसे आजाद हिंद सरकार की सेना भी कहा गया। बाद में इसकी कमान सुभाष चंद्र बोस के हाथों मे दे दी गई।
साल 1943 में आज ही की तारीख यानी 21 अक्टूबर को सिंगापुर के कैथी सिनेमा हॉल में एक बड़ी सभा का आयोजन हुआ। इस सभा में नेताजी ने ‘आज़ाद हिंद सरकार’ की स्थापना की घोषणा कर दी। नेताजी ने जोश भरते हुए कहा, “यह सरकार सिर्फ एक औपचारिकता नहीं है, यह हमारी आज़ादी की प्रतीक है। हमारा संघर्ष अब केवल शब्दों का नहीं, बल्कि युद्ध का होगा। हम अपनी फौज के साथ भारत को आज़ाद कराने का संकल्प लेते हैं।”
उस सभा में हर एक दिल गर्व से भर गया था। नेताजी की आवाज़ में वह ताकत थी, जिसने वहां उपस्थित हर व्यक्ति को यह विश्वास दिला दिया कि आज़ादी अब दूर नहीं। इस सरकार को न सिर्फ भारतीयों का समर्थन मिला, बल्कि जापान, जर्मनी, इटली और कुछ अन्य देशों ने भी इसे मान्यता दी। उसी ऐतिहासिक घटना की याद मे आज के दिन को भारत ‘आज़ाद हिंद दिवस’ के रूप मे मनाता है।
आजाद हिंद फौज मे लगभग 45,000 सैनिक थे और सन 1944 तक आते-आते इस फ़ौज में सैनिकों की संख्या लगभग 85,000 हो गई थी। इस फ़ौज को जापान का काफी सहयोग मिला था। क्योंकि इस फौज में ज्यादातर वही सैनिक शामिल थे, जिन्हें जापान ने बंदी बना लिया था, बाद में दूसरे देशों के सैनिक भी इससे जुड़ गए थे। नेताजी के अलावा इसमे कई और नेता भी अहम थे जैसे सुखदेव सेन – जिन्होंने सैन्य अभियानों और योजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कर्नल शाह नवाज खान, ब्रिगेडियर जनरल शाह नवाज, लक्ष्मी सहगल – जो आजाद हिंद फौज के महिला संगठन की कप्तान थी और मधुबाला – जो उसी बटालियन की एक प्रमुख सदस्य रही।
आजाद हिंद सरकार की स्थापना के बाद नेताजी ने आज़ादी की लड़ाई को तेज़ कर दिया। उन्होंने आजाद हिंद फौज को “दिल्ली चलो” का नारा दिया। उनका मानना था कि अगर उनकी सेना दिल्ली पहुँच जाती है, तो ब्रिटिश शासन की नींव हिल जाएगी। इस दौरान, उन्होंने कई क्षेत्रों में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और आजादी से पहले ही हिंदुस्तान की अस्थाई सरकार बना दी, जिसे 10 देशों ने मान्यता भी दी थी। आजाद हिंद फौज की अपनी बैंक और करेंसी भी थी। हालांकि, उनका संघर्ष आसान नहीं था। अंग्रेजों के पास बेहतर संसाधन और बड़ा अंतर्राष्ट्रीय समर्थन था। इसके बावजूद नेताजी ने हार नहीं मानी। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन का हर पल समर्पित कर दिया।
लेकिन 1945 में, एक दुखद घटना घटी। नेताजी के विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाने की खबर आई। हालांकि नेताजी ने तब तक आजाद हिंद सरकार और उनकी फौज के साथ मिलकर तमाम भारतीयों के दिलों में आजादी की ऐसी आग जला दी, जिसे कोई बुझा नहीं सकता था फिर चाहे वो भौतिक रूप मे मौजूद हों या ना हों।
1947 में भारत आज़ाद हुआ। नेता जी की मौत के रहस्य पर बहस तब से लेकर आज तक भी चलती है और आगे भी चलती रहेगी। लेकिन हम तो यही उम्मीद करते हैं कि काश वो आज़ाद भारत के उस पहले क्षण को अपनी आँखों से देख पाए हों।
हम नेताजी और आज़ाद हिंद सरकार के उन बलिदानों को कभी नहीं भूला पाएंगे। उनके संघर्ष और बलिदान की कहानी आने वाले भारतीयों को भी प्रेरित करती रहेगी।