15 नवंबर 1989। जगह – नेशनल स्टेडियम, कराची। यह वह वक्त था जब भारतीय टीम एक कठिन दौर से गुजर रही थी। सामने थी इमरान खान की अगुवाई में पाकिस्तान की ताकतवर टीम। गेंदबाजी लाइन-अप में इमरान और वसीम अकरम जैसे तेज गेंदबाज थे, जिनकी स्विंग और रफ्तार दुनिया में खौफ पैदा करती थी।
दूसरी तरफ, एक दुबला-पतला, घुंघराले बालों वाला लड़का। चेहरे पर नर्वस सी मुस्कान, लेकिन आंखों में आत्मविश्वास। यह सचिन तेंदुलकर का पहला टेस्ट था। उम्र महज 16 साल, लेकिन उनके कंधों पर उम्मीदों का भारी बोझ।
भारतीय टीम ने बल्लेबाजी शुरू की। सचिन को चौथे नंबर पर भेजा गया। मैदान में आते ही सचिन का सामना वकार यूनिस से हुआ, जो खुद भी उस मैच में डेब्यू कर रहे थे। वकार ने तेज गेंद फेंकी, जो सीधे सचिन के हेलमेट पर जा लगी।
स्टेडियम में सन्नाटा छा गया। हर किसी को लगा कि यह लड़का शायद संभल नहीं पाएगा। लेकिन सचिन उठे, हेलमेट सही किया, और स्ट्राइक लेने के लिए तैयार हो गए। यह उस जुनून की पहली झलक थी, जो आने वाले सालों में दुनिया को देखने को मिली।
पहली पारी में सचिन बड़ा स्कोर नहीं कर पाए, लेकिन उनकी तकनीक और धैर्य ने हर किसी को प्रभावित किया। इस पारी में सचिन ने दिखा दिया कि वह केवल प्रतिभाशाली नहीं हैं, बल्कि उनमें दुनिया के सबसे खतरनाक गेंदबाजों के खिलाफ डटकर खड़े रहने का जज़्बा भी है।
सचिन का यह डेब्यू कोई बड़ी पारी के लिए याद नहीं किया जाता, लेकिन यह उनके करियर की शुरुआत थी। वह शुरुआत जिसने भारतीय क्रिकेट को उसका सबसे महानायक दिया। कराची के मैदान में जो बीज बोया गया, वह आने वाले दशकों तक भारतीय क्रिकेट के आकाश में चमकता रहा।
हालांकि कुछ ही लोग जानते हैं कि इसी दिन जहां भारत ने तेंदुलकर के रूप में एक बेहतरीन बल्लेबाज़ी की, वहीं पाकिस्तान ने भी कराची में टेस्ट सीरीज़ के पहले मैच में एक नए खिलाड़ी को उतारा था। यह कोई और नहीं बल्कि वकार यूनुस थे जहां सचिन का प्रदर्शन मामूली था वकार ने पहले टेस्ट मैच में यादगार प्रदर्शन किया। उन्होंने 19 ओवर में सिर्फ़ 80 रन देकर चार विकेट चटकाए। उनके शिकारों में से एक तेंदुलकर थे। वकार ने एक लेंथ बॉल फेंकी जिसे तेंदुलकर ने लेग साइड की तरफ धकेलने की कोशिश की। तेंदुलकर लाइन का अंदाजा नहीं लगा पाए और क्लीन बोल्ड हो गए। तेंदुलकर के अलावा, यूनुस ने उस कराची टेस्ट में संजय मांजरेकर, मनोज प्रभाकर और कपिल देव को भी मात दी थी।
चार टेस्ट मैचों की सीरीज के पहले तीनों मैच ड्रॉ पर खत्म हुए। आखिरी भिड़ंत सियालकोट में 9 दिसंबर से शुरू हुई। जब भारत दूसरी बार बैटिंग के लिए आया तो टीम ने 38 रन तक 4 विकेट गंवा दिए थे। भारतीय टीम संकट में थी, तभी सचिन छठे क्रम पर बैटिंग करने आए। सचिन डटकर बैटिंग कर रहे थे, लेकिन जैसे ही वकार यूनुस की गेंद उनकी नाक पर लगी, सचिन की नाक से खून बहने लगा।
उस घटना के कई सालों बाद सचिन ने खुलासा किया था कि वो उस दिन अगर मेडिकल जांच के लिए पवेलियन लौट गए होते तो पाकिस्तान मैच पर हावी हो जाता। उस समय जावेद मियांदाद ने उनसे यह भी कहा कि, “तेरा नाक टूट गया है, तुझे अस्पताल जाना पड़ेगा।” सचिन ने बताया कि पाक टीम मुकाबले को समाप्त करना चाहती थी, इसलिए जावेद मियांदाद उन्हें छेड़ने और ध्यान भटकाने का प्रयास कर रहे थे। सचिन ने उस पारी में 134 गेंद खेल कर 57 रन की महत्वपूर्ण पारी खेली थी। यह केवल एक मैच नहीं था बल्कि क्रिकेट इतिहास के सबसे सुनहरे अध्याय की प्रस्तावना थी। जिसे हम और आने वाली पीढ़ी पढ़कर सीखती रहेगी।