कल्पना कीजिए, एक ऐसा संसार जहाँ हर विचार, हर मत, और हर पहचान को खुले दिल से स्वीकार किया जाए। जहाँ असहमति बहस का आधार बने, दुश्मनी का नहीं। जहाँ विविधता को बोझ नहीं, बल्कि सुंदरता समझा जाए…आज जब हम इस तेजी से बदलती दुनिया में जी रहे हैं, जहां हर कोने में असहमति और विभाजन का शोर है। इंटरनेट पर हर सेकंड एक नई बहस छिड़ी होती है। फोन और कीबोर्ड की आड़ लेकर हर कोई अपने विचारों को सही ठहराने में लगा रहता है। ऐसे में ये सोचने वाला विषय है कि हम अपने मतभेदों को कैसे पाट सकते हैं। कैसे एक ऐसी दुनिया का निर्माण कर सकते हैं जहां हर व्यक्ति, हर विचार, और हर भावना का सम्मान हो पाए?
आज अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस है। यह दिन उसी विचार के जरिए पूरे समाज को खुद को टटोलने का दिन है। इसके बारे मे विस्तार से समझने के लिए सबसे पहले ‘सहिष्णुता’ का अर्थ समझ लेते हैं। ‘सहिष्णुता’. का शाब्दिक अर्थ है सहन करना। इसका अंग्रेज़ी शब्द ‘tolerence’ भी सहन करने के अर्थ में ही उपयोग होता है। सहिष्णुता का मतलब है कि हम एक-दूसरे की विचारधारा, विश्वास, परंपराओं और जीवनशैली का सम्मान करें, चाहे वे हमारी अपनी मान्यताओं से अलग ही क्यों न हों। यह वह गुण है जो हमें विविधता के साथ जीने और दूसरों को उनके अधिकार देने की सीख देता है। उदाहरण के तौर पर, अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे धर्म या संस्कृति को मानता है, तो सहिष्णुता का मतलब है कि हम उनकी मान्यताओं को भी उतनी ही इज्जत दें, जितनी अपनी मान्यताओं को देते हैं।
मान लीजिए, किसी स्कूल में बच्चे अलग-अलग पृष्ठभूमि से आते हैं। सहिष्णुता का मतलब होगा कि वे एक-दूसरे के साथ बिना किसी भेदभाव के दोस्ती करें, खेलें और पढ़ाई करें। यह छोटी सी शुरुआत बड़े स्तर पर समाज को जोड़ने का काम करती है।
“सहिष्णुता ऐसी ध्वनि तरंग है, जो अलग – अलग स्वर को एक सुंदर राग में बदलने का माद्दा रखती है।” – अगोचर
हर साल 16 नवंबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस’ मनाया जाता है। यह दिन यूनेस्को (UNESCO) द्वारा 1995 में शुरू किया गया था ताकि समाज में सहिष्णुता को बढ़ावा दिया जा सके। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हर व्यक्ति की संस्कृति, परंपरा और भाषा महत्वपूर्ण है। जब हम दूसरों को समझने और स्वीकारने की कोशिश करते हैं, तो समाज में हिंसा और तनाव कम होता है। सहिष्णुता जाति, धर्म, लिंग या अन्य किसी भी आधार पर भेदभाव को खत्म करने का माध्यम बन सकती है।
अब मन मे सवाल आता कि आज के समय में इसकी आवश्यकता क्यों? जवाब है कि इसकी सबसे ज्यादा जरूरत ही आज के युग मे है, जब पूरा विश्व जातीय संघर्ष, धार्मिक उन्माद, और राजनीतिक ध्रुवीकरण से जूझ रहा है। कई जगहों पर धर्म और संस्कृति के नाम पर हिंसा हो रही है। सहिष्णुता हमें सिखाती है कि हर धर्म और संस्कृति में समानता और मानवता का संदेश है।
आज राजनीतिक विचारधाराओं के टकराव से समाज बंटा हुआ है। जल, जंगल और जमीन को लेकर देशों के बीच विवाद बढ़ रहे हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया पर हेट स्पीच और ट्रोलिंग आम हो गई है।ऐसे मे सहिष्णुता के माध्यम से हम संवाद और समाधान की ओर बढ़ सकते हैं।
सहिष्णुता केवल एक गुण नहीं, बल्कि एक आवश्यकता है। अगर हम एक सहिष्णु समाज बना पाए, तो विश्व में शांति, प्रेम और भाईचारा स्थापित हो सकता है। ‘अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस’ हमें यह याद दिलाता है कि डाइवर्सिटी हमारी कमज़ोरी नहीं ताकत है और इसे स्वीकार करना ही मानवता का सबसे बड़ा संदेश है।