संसद में सरकार द्वारा साझा किए गए एक आंकड़े से एक मुद्दा प्रकाश में आया है कि हर साल लाखों की संख्या में भारतीय विदेशी नागरिकता ले रहे हैं। उच्च शिक्षा और रोज़गार की तलाश में लोग ऐसा कर रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2022 में 2,25,620 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ी थी। उसके अगले साल फिर से 2,16,219 ने नागरिकता छोड़ी हालांकि ये एक चिंताजनक बात जरूर है।
भारतीय प्रवासी विदेशों में अपनी मेहनत और प्रतिभा से सफलता हासिल कर रहे हैं, बल्कि वहां आर्थिक योगदान भी कर रहे हैं। उदहारण के तौर पर अमेरिका की ही बात कर ले तो वहाँ भारतीयों की औसत वार्षिक आय $100,000 है। भारतीय मूल के लोग अमेरिका की कॉर्पोरेट और तकनीकी दुनिया में प्रभावशाली भूमिका निभा रहे हैं।
लेकिन भारतीय सरकार ने एक और आंकड़ा शेयर किया है जो उन नागरिकता छोड़ रहे भारतीयों के साथ साथ विदेशों में रह रहे भारतीय प्रवासी और विदेश जाने का विचार कर रहे लोगों के लिए बड़ी चिंता का विषय है। इन आंकड़ों के अनुसार विदेशी धरती पर अपना आर्थिक योगदान देने के बावजूद भारतीयों को वहां नस्लीय भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है।
बीती 6 दिसंबर को ही कनाडा में हरियाणा के एक छात्र हर्षदीप सिंह अंटाल की एडमोंटन में हत्या कर दी गई थी। ये कोई इकलौती घटना नहीं है। हाल ही में भारतीय विदेश मंत्रालय ने संसद को बताया था कि 2023 में विभिन्न देशों में 86 भारतीय नागरिकों पर हमला किया गया या उनकी हत्या कर दी गई। साथ ही बताया कि भारतीयों पर हमले की सबसे अधिक घटनाएं अमेरिका में हुईं हैं।
अमेरिका में भारतीयों के साथ नस्लीय भेदभाव और हिंसा जैसे मामले लगातार सामने आते रहे हैं। उदाहरण के तौर पर आपको याद ही होगा कि किस तरह भारतीय छात्रा जाह्नवी कंडुला की एक पुलिस वाहन से टक्कर में मृत्यु हुई, जिसके बाद पुलिस अधिकारियों द्वारा किए गए अपमानजनक बयान ने सबका खून खौला दिया था।
यह समस्या केवल हिंसा का नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक और राजनीतिक चुनौती का संकेत देती है, इसके कुछ मुख्य कारणों में से एक आर्थिक अवसरों से जुड़ा हुआ है। अक्सर कई देशों में प्रवासी श्रमिकों पर स्थानीय लोगों की नौकरियां छीनने का आरोप लगाया जाता है। इसके अलावा सांस्कृतिक भिन्नता को न समझने की वजह से भी प्रवासियों के खिलाफ हिंसा होती है।
केंद्र द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2021 में हमला किए गए भारतीयों की संख्या 29 थी, जो 2022 में बढ़कर 57 और 2023 में 86 हो गई। 2023 में, जिन 86 भारतीय नागरिकों पर हमला किया गया या उन सभी की मौत भी हो गई। उनमें से अमेरिका के आंकड़े 12 थे, जबकि कनाडा, यूके और सऊदी अरब में यह संख्या 10-10 थी।
यह आंकड़े केवल संख्या नहीं हैं,ये भारतीय प्रवासियों के लिए बढ़ती असुरक्षा को उजागर करते हुए यह सवाल उठाते हैं कि भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं। भारतीय प्रवासी दुनियाभर में अपनी मेहनत और संस्कृति के लिए पहचाने जाते हैं। परंतु, विदेशों में नस्लीय भेदभाव, सांस्कृतिक असहिष्णुता और बढ़ती हिंसा जैसी समस्याएं उनकी सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बन रही हैं। भले ही भारत सरकार ने कहा कि “विदेशों में भारतीयों की सुरक्षा उसकी प्राथमिकता है। हर घटना की जांच और कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए संबंधित देशों के साथ संपर्क किया जाता है।” इसके बावजूद, इन मामलों की बढ़ती संख्या सवाल खड़े करती है कि क्या यह प्रयास पर्याप्त हैं
इसकी रोकथाम के लिए विदेश जाने वाले हर भारतीयों को वहां अपनी सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने की जानकारी दी जानी चाहिए।सरकार को हमले से संबंधित देशों पर दबाव डालकर जांच और अपराधियों पर सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए। इसके अलावा भारतीय प्रवासियों को स्थानीय समुदायों के साथ बेहतर संबंध बनाने की कोशिश भी करनी चाहिए। यह बेहद जरूरी है कि भारतीय प्रवासी समुदाय अपने अधिकारों और सुरक्षा के लिए अधिक संगठित हो।
इसके अलावा विदेश में बसना किसी का भी व्यक्तिगत निर्णय है, लेकिन यह प्रवृत्ति भारत के विकास और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाल सकती है। साथ ही ये कदम उठाने वाले लोगों को समझना होगा कि, विदेशों में बसने वाले भारतीयों की संख्या बढ़ने से उनके अधिकारों और सुरक्षा की गारंटी मुश्किल हो सकती है। गहरे संकट के समय भारतीय पासपोर्ट रखने वाले लोगों को सरकार से मदद मिलना आसान होता है, जो नागरिकता छोड़ने पर मुश्किल हो जाएगा।