बॉलीवुड अभिनेता जॉन अब्राहम की फिल्म “The Diplomat” इस समय box-office पर काफी अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। फिल्म को अच्छे reviews मिले हैं साथ ही जॉन को भी उनके किरदार के लिए काफ़ी तारीफ मिल रही हैं। कुछ जगहों पर तो इसे उनके करियर की “best performance” भी बताया जा रहा हैं। ऐसे में उस शख्सियत और उनके काम के बारे में जानना ज़रूरी हैं, जिनपर ये फिल्म आधारित हैं। वो कमाल की शख्सियत हैं जे.पी. सिंह, जो 2002 बैच के भारतीय विदेश सेवा (IFS) अधिकारी हैं। आइए एक नज़र डालते हैं उनके जीवन और ज़रूरी कार्यों पर, जिन्होंने उन्हें इतना मशहूर बना दिया कि उनपर एक पूरी फिल्म ही बन गई।
जे. पी. सिंह का जन्म और शुरुआती पढ़ाई भारत में ही हुई थी। बाद में UPSC जैसी इतनी मुश्किल परीक्षा को पास करने के बाद उनके diplomatic career की शुरुआत हुई। सिंह को भारत के विदेश मंत्रालय में कामकाज का अच्छा अनुभव हैं और उन्होंने दुनिया के कुछ सबसे अस्थिर क्षेत्रों में भारत की विदेश नीति को आकार देने में अहम भूमिका निभाई है।
साल 2008 से 2012 तक उन्होंने अफगानिस्तान में काम किया। ये वो वक्त था जब काबुल में Indian Embassy में दो बड़े आतंकी हमले हुए थे। इन चुनौतियों के बाद भी, सिंह भारत की diplomatic presence को कायम रखने के लिए सबसे आगे रहे। 2014 से 2019 तक, उन्होंने पाकिस्तान में भारत के Deputy Commissioner के तौर पर दोनों देशों के बीच अक्सर तनाव से भरे सम्बन्धों को manage किया। इसके अलावा उन्होंने भारत को ईरान में भी represent किया हैं।
पाकिस्तान में ही काम करते हुए उनके जीवन में अहम मोड़ लेकर आया उज़मा अहमद केस। उज़मा भारत के नई दिल्ली की रहने वाली है ही एक बेटी हैं जिन्हे मलेशिया में एक पाकिस्तानी नागरिक ताहिर से प्यार हो गया था। बाद में जब वो ताहिर के साथ पाकिस्तान घूमने गई, तो वो उन्हें नींद की गोलियां देकर बुनेर ले गया और बंदूक की नोंक पर जबरन निकाह के लिए मजबूर किया। वहां उन्हें कई तरह के tortures से भी गुज़रना पड़ा।
ऐसे हालात में, जब लोग अक्सर घबराकर हार मान जाते हैं, उज़मा ने अक्लमंदी से काम लिया। उज़मा ने ताहिर से कहा कि वह कुछ जरूरी documents लेने के लिए भारत जाएंगी। ताहिर को शक नहीं हुआ क्योंकि उज़मा ने उससे कहा था कि वह उसे भी दिल्ली लेकर जाएगी। जब उज़मा ताहिर के साथ Indian Embassy पहुंची, उसने वहां के स्टाफ से कहा, “मैं भारतीय हूं, मेरी मदद करें।” एक पल चुप रहने के बाद स्टाफ ने उसे Embassy के अंदर बुला लिया। वहां जे.पी. सिंह भी मौजूद थे। उन्होंने उज़मा से पूरी बात पूछी और उनकी मदद की। वहां की महिला स्टाफ ने भी उनका पूरा ध्यान रखा।
एक बार Embassy में पहुँचकर उज़मा सुरक्षित हो गई। बहुत देर तक इंतज़ार करने के बाद ताहिर ने पूछा तो उसे साफ़ बता दिया गया कि उज़मा उसके साथ नहीं जाना चाहती। ताहिर ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई और मामला इस्लामाबाद के high court तक पहुँच गया था। एक लंबी मशक्कत के बाद आखिरकार 2017 में वो अपने देश लौट आई। बाद में उस वक्त की विदेश मंत्री स्व. सुषमा स्वराज ने जे.पी. सिंह की बहुत सराहना की थी। जे.पी. सिंह इस वक्त भी इज़राइल में भारतीय Ambassador के तौर पर काम कर रहे हैं।
इस तरह की फिल्में अक्सर हमें “real-life heroes” से रुबरु कराती हैं, जो बिना किसी limelight के चुपचाप अपना काम करते रहते हैं। जे.पी. सिंह ने ये साबित कर दिया कि सच्चे hero वही होते हैं जो मुश्किल वक्त में लोगों की मदद करते हैं और देश की सेवा के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं।