आज भारत के एक महानायक अमर शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की बर्थ एनिवर्सरी है। 23 साल पहले कैप्टन विक्रम बत्रा कारगिल की चोटी Point 4875 को पाकिस्तान के कब्ज़े से खाली करवाते हुए शहीद हो गए थे। भारत माता के अमर सपूत कैप्टन विक्रम बत्रा सिर्फ 24 वर्ष के थे। कैप्टन विक्रम बत्रा से आज आप ये सीख सकते हैं कि जब आपका सामना जीवन की चुनौतियों से हो तो इन चुनौतियों की चोटियों पर जीत हासिल करके आप भी उनकी तरह गर्व से कह सकें- ‘ये दिल मांगे मोर। ‘
विक्रम बत्रा का जीवन
विज्ञान विषय में स्नातक करने के बाद विक्रम का चयन सीडीएस के जरिए सेना में हो गया। जुलाई 1996 में उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया। दिसंबर 1997 में प्रशिक्षण समाप्त होने पर उन्हें 6 दिसम्बर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली। उन्होंने 1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए। पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद विक्रम को कैप्टन बना दिया गया।
मैं तिरंगा फहरा कर लौटूंगा या तिरंगे में लिपट कर लौटूंगा
वर्ष 1999 में जब पाकिस्तान की सेना ने कारगिल में घुसपैठ करके वहां की पहाड़ियों पर कब्ज़ा कर लिया था और इसके बाद जब पाकिस्तानी सेना को खदेड़ने के लिए करगिल युद्ध शुरू हुआ तो उस वक्त विक्रम बत्रा अपनी कमांडो ट्रेनिंग पूरी करके होली की छुट्टी पर हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में अपने घर आए थे। युद्ध शुरू होने की सूचना मिलने पर कैप्टन बत्रा से उनके एक मित्र ने कहा था कि अब उन्हें भी जाना होगा, इसलिए वो अपना ख्याल रखें और सतर्क रहें। इस पर कैप्टन विक्रम बत्रा ने ये कहा था कि चिंता ना करो, मैं तिरंगा फहरा कर लौटूंगा या तिरंगे में लिपट कर लौटूंगा, लेकिन मैं वापस आऊंगा ज़रूर। उनके ये शब्द आज भी लोग याद करते हैं।
पहली बड़ी लड़ाई
कारगिल युद्ध से पहले कैप्टन विक्रम बत्रा कश्मीर में तैनात 13 जम्मू कश्मीर राइफल्स में तैनात थे. घर से ड्यूटी पर लौटने के 18 दिन के बाद ही उनकी यूनिट को 19 जून 1999 को ये आदेश मिला था कि कारगिल की चोटी Point 5140 को पाकिस्तान के कब्ज़े से खाली करवाना है. ये कारगिल युद्ध में उनकी पहली बड़ी लड़ाई थी।
देश के लिए सर्वोच्च बलिदान
ऊपर से पाकिस्तानी सेना की भयानक गोलाबारी के बीच भी कैप्टन विक्रम बात्रा, दुश्मन तक पहुंच गए और अपने साथी कैप्टन अनुज नैय्यर और दूसरे वीर जवानों के साथ मिलकर पाकिस्तान के बंकर और पोस्ट नष्ट कर दिए। इसी भयानक लड़ाई में 7 जुलाई 1999 को पाकिस्तान के पांच जवानों को मार गिराते हुए कैप्टन विक्रम बत्रा ने भी देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दे दिया।
मरणोपरांत परम वीर चक्र
शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को उनके इस सर्वोच्च बलिदान और इस पराक्रम के लिए 15 अगस्त 1999 को वीरता का सर्वोच्च सम्मान, मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया। और उनके शहीद साथी कैप्टन अनुज नैय्यर को वीरता का दूसरा सर्वोच्च सम्मान, मरणोपरांत महावीर चक्र दिया गया।
बत्रा जहां शहीद हुए थे उसे अब बत्रा टॉप के नाम से जाना जाता है
कारगिल की जिस चोटी पर कैप्टन विक्रम बत्रा शहीद हुए थे, उसे अब बत्रा टॉप के नाम से जाना जाता है। कैप्टन विक्रम बत्रा के अंतिम संस्कार पर उनकी मां ने एक बात कही थी कि भगवान ने शायद इसलिए उन्हें जुड़वा बेटे दिए थे कि अगर एक चला जाए तो दूसरे को देखकर वो हमेशा याद आए।