Norway Nobel समिति के अध्यक्ष बेरिट रीस-एंडरसन ने शुक्रवार को ओस्लो में पुरस्कार की घोषणा की है। जहां ईरान की नरगिस मोहम्मदी को नोबल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। उन्हें यह पुरस्कार महिलाओं की आजादी और हक की आवाज उठाने के साथ-साथ मानवाधिकार और सभी की स्वतंत्रता के लिए किए जा रहे उनके द्वारा प्रयासों के लिए दिया गया है। नरगिस मोहम्मदी लम्बे समय से ईरान में महिलाओं के हक के लिए जंग लड़ रही हैं। जहां उन्हे काफी संघर्षो का सामना करना पड़ा है। नरगिस मोहम्मदी उस बहादुर महिला का नाम है जिसे ईरान की सरकार ने कुल मिलाकर,13 बार गिरफ्तार किया और अलग-अलग मामलों में पांच बार दोषी ठहराया गया।इतना ही नहीं बल्कि नरगिस मोहम्मदी ने अपने जीवन के 31 साल जेल में बीताए है। 51 वर्षीय नरगिस मोहम्मदी आज भी अपने प्रयासों के लिए ईरान की जेल में बंद हैं। जहां ईरान की सरकार के खिलाफ प्रोपेगैंडा फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया।
कौन है नरगिस मोहम्मदी।
नरगिस का जन्म कुर्दिस्तान ईरान के जंजन शहर में 21 अप्रैल 1972 में हुआ था नोबेल प्राइज की वेबसाइट के मुताबिक, नरगिस मोहम्मदी ईरानी मानवाधिकार कार्यकर्ता और Defenders of Human Rights Center(DHRC) की उपाध्यक्ष है। जो 1990 के दसक से ही महीलाओ के हक के लिए आवाज उठा रही है।
साल 2022 में भी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
वहीं नर्गिस मोहम्मदी को नोबेल पीस प्राइज दे रही नोबेल कमेटी का मानना है कि, नर्गिस एक निडर पत्रकार और एक्टिविस्ट महिला हैं।जो ना ही काभी रूखी है,और ना ही काभी डरी है जो बेखौफ ईरानी महिलाओं के लिए आवाज उठाती नजर आई हैं। बता दें कि इससे पहले भी साल 2022 में नर्गिस मोहम्मदी को रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के साहस पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
किताब के लिए मिल चुका है पुरस्कार।
नरगिस मोहम्मदी ने एक किताब व कई लेख लिखे जो ईरान की आजादी और उनके हक के लिए आवाज उठती नजर आई है। जिसका किताब का नाम ”white torture”है। मोहम्मदी नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाली 19वीं महिला हैं। साल 2003 में शिरीन एबादी के बाद यह पुरस्कार जीतने वाली दूसरी ईरानी महिला हैं। 122 साल के इतिहास में यह पांचवीं बार है,जब शांति पुरस्कार किसी ऐसे व्यक्ति को दिया गया है जो जेल में है ।
2011 में हुई थी पहली गिरफ़्तारी।
नरगिस मोहम्मदी को वर्ष 2011 में पहली बार गिरफ्तार किया गया था और जेल में बंद कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों की सहायता करने लिए कई वर्षों की सजा सुनाई गई थी। जमानत पर रिहा होने के बाद मोहम्मदी ने मौत की सजा के खिलाफ एक अभियान में खुद को झोंक दिया। जिसके बाद मौत की सज़ा के ख़िलाफ़ आन्दोलन व हमेशा अपनी बाते रखने के कारण फिर से उन्हे साल 2015 में गिरफ़्तार किया गया ।