हेरा फेरी, फिर हेरा फेरी, हंगामा, हलचल, भागम भाग, मालामाल वीकली, चुप चुप के, ढोल, गरम मसाला, से दाना दन- हिंदुस्तान का शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति जिसने ये सारी फिल्में ना देखी हों। न सिर्फ कहानियां, बल्कि इन फिल्मों के डायलॉग्स भी सभी के जुबानों पर इस तरह चढ़े हैं कि रोजमर्रा के जीवन में कई बार जाने अंजाने में इस्तेमाल हो जाते हैं। ये सभी फिल्मों की कहानी भले ही अलग हों, पर दो चीज़ें ऐसी हैं जो सब में समान है, भरपूर हास्य और इस फिल्मों के निर्देशक- प्रियदर्शन
प्रियदर्शन के फिल्मों में जो सबसे खास बात नजर आती है वो ये है कि इन फिल्मों का अभिनेता हीरो नही होता, बल्कि एक सामान्य, साधारण सा आदमी होता है, जिसकी जिंदगी की उलझने और तकलीफें आम लोगों के जीवन की उलझनों और तकलीफों से मेल खाती हैं। यही वो बात है जो इन फिल्मों को आम आदमी के जीवन से सबसे ज्यादा जोड़ती हैं। आम आदमी जब इन फिल्मों को देखता है तो अपने आप को उन दृश्यों से अपने आप को जोड़ पाता है, अपने आप को उन कलाकारों की जगह रख कर देख पाता है। और यही वजह है इन फिल्मों के हिट होने की। स्लैप स्टिक कॉमेडी के जितने बेहतरीन नमूने प्रियदर्शन ने अपनी फिल्मों के जरिए दिए हैं, और शायद ही कोई और दे सके।
सिर्फ कॉमेडी ही नहीं, “क्यों की” और “आक्रोश” जैसी अच्छी सीरियस मूवीज बनाने में भी प्रियदर्शन का हाथ है, जो फिल्में न सिर्फ मनोरंजक हैं, बल्कि दर्शकों के अंतर्मन को झंझोड़ती भी हैं। यही कारण है की बड़े बड़े उमड़ा कलाकार भी प्रियदर्शन के साथ काम करने को तरसते हैं। उनके निर्देशन का हर कोई फैन है, चाहे वो किसी भी उम्र का हो, हर भारतीय सिनेमा प्रेमी को प्रिय है, प्रियदर्शन।