भारत में दुनिया का पहला पोर्टेबल अस्पताल शुरू हुआ है। यह अस्पताल गुरुग्राम में है, खास बात यह है कि इसे किसी विदेशी टेक्नोलॉजी या इंजीनियर ने नहीं, बल्कि भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने डिजाइन किया है। इस अस्पताल का संचालन 2 दिसंबर से हो गया है। घायलों के इलाज के लिए इसे आपातकालीन स्थल पर पहुंचने के एक घंटे के अंदर स्थापित किया जा सकता है।
जानकारी के मुताबिक इस अस्पताल का उपयोग किसी भी आपातकालीन क्षेत्र, आपदा प्रभावित क्षेत्र, भूकंप, बाढ़, जंगल की आग या यहां तक कि युद्ध में भी किया जा सकता है और जल्द से जल्द इलाज़ कर के ठीक किया जा सकता हैं। इस अस्पताल में किसी भी समय 200 रोगियों का इलाज हो सकता है। इस पोर्टेबल अस्पताल में दो पैलेट स्टैंड हैं, इसका वजन 800 किलोग्राम है। दोनों पैलेट में 72 क्यूब हैं। हर क्यूब का वजन 20 किलो है। ये क्यूब फायर और वाटर प्रूफ हैं। इसे हवाई, जल, सड़क तीनों मार्ग से ले जा सकते हैं।
इस अस्पताल के अलग-अलग क्यूब में अलग-अलग सामान है। स्कैन करने पर पता चल जाता है कि किस क्यूब में कौन सा सामान है। इसकी लैब में 20 तरह के टेस्ट हो सकते हैं। इसकी एक्सरेमशीन कुछ सेकेंड में एक्सरे कर देती है। इसमें सोलर पैनल भी है, ताकि अगर बिजली सप्लाई नहीं हो तो भी दिक्कत न हो। बता दें कि पीएम नरेंद्र मोदी की पहल पर आरोग्य मैत्री प्रोजेक्ट और हेल्थ मिनिस्ट्री, डिफेंस मिनिस्ट्री और नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल ने मिलकर इस पोर्टेबल हॉस्पिटल को तैयार किया है।
पोर्टेबल अस्पताल बनाने के लिए क्यूब्स NDRF से लेकर सेना को उपलब्ध कराए जाएंगे। कहीं भी आपदा आने पर NDRF से लेकर सेना को लगाया जाता है। आपदा आने पर सबसे पहला काम फंसे लोगों को निकालना होता है।
लोगों को निकालकर एंबुलेंस या किसी अन्य माध्यम से अस्पताल तक पहुंचाया जाता है। इस प्रक्रिया में कई बार काफी देर हाे जाती है। रक्तस्राव अधिक होने से अधिकतर लोगों की मौत हो जाती है। ऐसे में यदि मौके पर अस्पताल की सुविधा उपलब्ध हो जाए तो अधिकतर लोगों का जीवन बच जाएगा।
क्यूब्स को जोड़कर पोर्टेबल अस्पताल बनाने की ट्रेनिंग गुरुग्राम विश्वविद्यालय में दी जाएगी। केंद्र सरकार चाहती है कि भारत के इस कंसेप्ट का लाभ पूरी दुनिया को मिले। जो देश लाभ उठाने की इच्छा जाहिर करेंगे, उन देशों के कुछ लोगोें को पहले गुरुग्राम विश्वविद्यालय में ट्रेनिंग दी जाएगी।