कैप्टन फातिमा वसीम ने चुनौतीपूर्ण सियाचिन ग्लेशियर में ऑपरेशनल पद पर नियुक्त होने वाली पहली महिला चिकित्सा अधिकारी के रूप में इतिहास रच दिया है। सियाचिन बैटल स्कूल में गहन प्रशिक्षण के बाद, उन्होंने 15,200 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक ऑपरेशनल पोस्ट पर अपनी ड्यूटी शुरू। आपको की बता दें कि सियाचिन ग्लेशियर को दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई वाले युद्ध स्थल के रूप में जाना जाता है और यह भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पास स्थित है। यह भारत का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है। साथ ही यह पृथ्वी पर सबसे ऊँचा युद्धक्षेत्र है।
सोशल मीडिया पर किया वीडियो शेयर
भारतीय सेना की फायर एंड फ्यूरी कोर ने कैप्टन फातिमा वसीम की उपलब्धि का जश्न मनाया। इसे सेलिब्रेट करने के लिए पोस्ट में एक वीडियो भी अपलोड किया है। कैप्टन वसीम की तैनाती एक ऐतिहासिक क्षण है। भारतीय महिलाओं को मील के पत्थर तक पहुंचते देखना अच्छी बात है। एक वीडियो के माध्यम से कैप्टन फातिमा वसीम की उपलब्धि दिखाई। इतना ही नहीं बल्कि इस वीडियो का कैप्शन उन्हें सियाचिन योद्धा के रूप में उजागर करता है। सियाचिन ग्लेशियर में ऑपरेशनल पोस्ट में पहली महिला चिकित्सा अधिकारी के रूप में उनकी भूमिका का जश्न मनाता है।
वीडियो में एक यूजर ने लिखा हमे आप पर गर्व है
आपको बता दे कि इसी महीने की शुरुआत में सियाचिन बैटल स्कूल में इंडक्शन ट्रेनिंग पूरी करने के बाद स्नो लेपर्ड ब्रिगेड की कैप्टन गीतिका कौल सियाचिन में तैनात होने वाली भारतीय सेना की पहली महिला चिकित्सा अधिकारी बनीं। सियाचिन भारत का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है। यह पृथ्वी पर सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है। हालांकि इतने ऊंचे ग्लेशियरों में से एक पर उनकी पोस्टिंग उनके अटूट दृढ़ संकल्प का प्रमाण है। वीडियो को देखने के बाद कई सारे लोगों ने इस पर अपनी बाते रखी। एक यूजर ने लिखा “हमें आप पर बेहद ही गर्व है कैप्टन फातिमा वसीम।
क्या है सियाचीन ग्लेशियर का इतिहास
आपको बता दे की सन1984 से लगातार सियाचीन ग्लेशियर पर हमारे सैनिक तेनात है। सियाचीन ग्लेशियरभारत और पाक से करीब 78KM में फैला है। जहा एक तरफ पाकिस्तान, तो दूसरी तरफ अक्साई चीन है। इसके पहले सन 1972 के शिमला समझौते में सियाचिन को बेजान और बंजर बताया गया था। हालांकि तब भारत-चीन की बीच की सीमा का निर्धारण नहीं हुआ था। भारतीय सेना को मिली जानकारी के अनुसार सन 1984 में पाकिस्तानी सेना से इस पर कब्जा करने की कोशिश की थी। जिसके बाद 13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना ने अपनी फायर एंड फ़्यूरी कॉप्र्स की स्पेशल टीम को इस इलाके के लिए तैनात किया था।