हर साल 23 जनवरी को भारत के स्वतंत्रता सेनानी सुभाषचंद्र बोस जी की जयंती मनाई जाती है। आज सुभाषचंद्र बोस की 128वीं जयंती है। सुभाषचंद्र बोस एक वीर सैनिक, योद्धा, महान सेनापति और कुशल राजनीतिज्ञ थे। देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाने के लिए इन्हो ने आजाद हिंद फौज कि स्थपना की थी, और जापानियों के साथ मिलकर देश के कुछ हिस्सों को भी अंग्रेजों से आजाद करवाया था। उन्होंने देश को आजाद कराने के लिए कुछ नारे भी दिए जैसे कि, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’, जय हिन्द” जो अब एक भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। सुभाष चंद्र बोस के जीवन का एक पक्ष राजनीति और आजादी की लड़ाई से जुड़ा था तो वहीं दूसरा पक्ष आध्यात्मिकता से जुड़ा था। आज हम आपको सुभाष चंद्र बोस के जीवन के बारे में कई प्रमुख और रोचक जानकारी देंगे।
सुभाषचंद्र बोस जी की मौत आज भी एक रहस्य
सुभाषचंद्र बोस का जन्म ओडिशा के कटक में 23 जनवरी 1897 को हुआ था। इनका परिवार काफी संपन्न व सम्मानित था। सुभाष चंद्र बोस अपने 7 भाई और 6 बहनों में 9वें नंबर पर थे। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती देवी था। सुभाषचंद्र बोस ने अपनी सेक्रेटरी एमिली से शादी की थी जो कि ऑस्ट्रियन थीं। सुभाषचंद्र बोस की मौत आज भी एक रहस्य मानी जाती है। उनकी मौत 18 अगस्त 1945 को विमान हादसे में हो गई थी। लेकिन उनकी डेड बॉडी आज तक नहीं मिली। इसलिए आज भी उनकी मौत की वजह को कोई समझ नहीं पाया है।
इंडियन सिविल सर्विसेज की परीक्षा में चौथा स्थान हासिल किया
सुभाषचंद्र बोस ने अपनी शिक्षा कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल से पूरी की। जिसके बाद कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से साल 1915 में उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। जिसके बाद वे सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय चले गए। शिक्षा पूरी होने के बाद 1920 में इंडियन सिविल सर्विसेज की परीक्षा में बैठे और चौथा स्थान हासिल किया। यह उस समय बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी क्योंगकि अंग्रेजों के शासन में भारतीयों के लिए किसी आम परीक्षा को पास करना बहुत मुश्किल होता था। भारत आकर उन्होंने पद संभाला, लेकिन यहां पर भारतीयों की खराब स्थिति को देखकर उन्होंने 23 अप्रैल, 1921 को जॉब छोड़ दी, और आजादी के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए। उस समय सुभाषचंद्र बोस और महात्मा गांधी के विचार कभी नहीं मिले, लेकिन दोनों ही नेताओं का सपना एक ही था, भारत को आजाद करवाना। महात्मा गांधी उदार दल के नेता थे और सुभाष चंद्र बोस क्रांतिकारी दल का नेतृत्व कर रहे थे।
यहां है विश्व का पहला सुभाष मंदिर
सुभाषचंद्र बोस के जीवन का एक पक्ष आध्यात्मिकता से जुड़ा था, क्योंकि वो देवी पूजा के उपासक थे। लेकिन देश में एक ऐसा मंदिर भी है जहां नेताजी की पूजा होती है। यह मंदिर काशी के लमही में स्थित है, जिसकी स्थापना 23 जनवरी 2020 में हुई थी। इस मंदिर का नाम ‘सुभाष मंदिर’ है। मंदिरों के शहर काशी में राष्ट्रदेवता के रूप में प्रतिदिन सुभाषचंद्र बोस कि पूजा भी की जाती है। इतना ही नहीं इस मंदिर में गर्भवती महिलाएं संतान को देशभक्त बनाने की कामना व उद्देश्य के साथ यहां मन्नतों का धागा भी बांधती हैं।