सागर। कुछ साल पहले तक इस बात पर बड़ा ज़ोर दिया जाता था कि पिता की चिता को मुखाग्नि सिर्फ बेटा ही दे सकता है, बेटियां चिता को आग नहीं लगा सकती हैं। लेकिन आखिर जो काम बेटा कर सकता है वही काम बेटी क्यूं नहीं कर सकती? ऐसी ही परंपराओं को तोड़ते हुए सागर में पुलिस के रिटायर्ड ASI के निधन के बाद उनकी बेटियों ने बेटे होने का फर्ज निभाते हुए अनूठी मिसाल पेश की है। ये वाक्या सागर जिले के मकरोनिया के वार्ड क्रमांक 17 महात्मा गांधी वार्ड का है।
पुलिस की नौकरी से रिटायर्ड ASI हरिश्चंद्र अहिरवार का कोई बेटा नहीं ब्लकि 9 बेटियाँ थी। पिता ने सभी बेटियों की परवरिश बेटों के समान ही की थी। इसीलिए ब्रेनहेमरेज से उनके निधन के बाद बेटियों ने बेटे की तरह अपना फर्ज निभाते हुये उन्हें हिन्दू रीति-रिवाज से मुखाग्नि दी।
जब ASI हरिश्चंद्र की अर्थी घर से निकली तो सभी बेटियों ने उनको कंधा दिया। यह दृश्य जिसने भी देखा, उनकी आंखे नम हो गईं। मकरोनिया मुक्तिधाम में बेटियों ने अपने पिता को हिंदू रीति रिवाज से मुखाग्नि दी और अंतिम संस्कार की सारी विधि को पूरा किया।
बेटियों में 7 का विवाह हो चुका है। उनमें से एक बेटी वंदना ने बताया कि उनके पिता को अपनी बेटियों से काफी लगाव था। पिता ही उनका संसार थे। कोई भाई नहीं है, इस कारण उनके साथ सभी छोटी—बड़ी बहनों जिनमें अनिता, तारा, जयश्री, कल्पनना, रिंकी, गुड़िया, रोशनी, दुर्गा ने एक साथ बेटी होने का फर्ज निभाने का फैसला किया था।