सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने 4 मार्च को एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है। इस बेंच ने 1998 में बने 25 साल पुराने भारत के फैसले को पलट दिया है। जिसके तहत अब सांसदों और विधायकों को रिश्वत लेने के लिए संविधान की ओर से छूट नहीं मिल पाएगी। दरअसल, 1998 में डॉ. नरसिम्हा राव मामले के समय कोर्ट ने निर्णय लिया था कि, संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत विधायक और सांसद को संसद में भाषण देने या वोट देने के लिए रिश्वत लेने के इल्जाम से छूट दी जाएगी।
संविधान के अनुच्छेद 194(2) और 105(2) के अनुसार नियम है कि, विधानसभा में सदस्यों द्वारा कही गई किसी भी बात या किसी को भी वोट देने के लिए उन पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। इसके अलावा विधानसभा द्वारा कार्यवाही प्रकाशित करने के लिए भी किसी पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।
बेंच का कहना है कि, “अनुच्छेद 105(2) और अनुच्छेद 194(2) के संबंधित प्रावधान के तहत रिश्वतखोरी को छूट नहीं दी गई है क्योंकि रिश्वतखोरी में शामिल एक सदस्य एक अपराध करता है जो वोट देने या वोट कैसे देना चाहिए, इस पर निर्णय लेने की क्षमता के लिए आवश्यक नहीं है। सदन या किसी समिति में भाषण के संबंध में रिश्वतखोरी पर भी यही सिद्धांत लागू होते हैं।”
आज बेंच के लिए इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि, रिश्वतखोरी के आरोपों का सामना करने पर न तो सांसदों और न ही विधायकों को उपरोक्त अनुच्छेदों के तहत छूट प्राप्त होगी। इसका मतलब यह है कि, उन पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है।