होली हिंदू समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। होली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होलिका दहन भी है। इसे फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। फिर इसके अगले दिन यानी चैत्र कृष्ण को रंगों वाली होली खेली जाती है। जिसे धुलंडी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन में सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश हो जाता है । इस वर्ष होली पर चंद्र ग्रहण और होलिका दहन पर भद्रा का साया रहेगा।
इस साल होलिका दहन 24 मार्च रविवार को रात 11 बजे से 12 बजे तक किया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भद्राकाल को शुभ नहीं माना जाता है और इस दौरान किसी भी तरह का पूजा-पाठ व शुभ काम नहीं किया जाता है। पंचांग के मुताबिक 24 मार्च को सुबह से भद्राकाल लग जाएगी। इस दिन भद्रा सुबह 09 बजकर 54 मिनट से शुरू हो रही है, जो रात 11 बजकर 13 मिनट तक रहेगी।
इस साल करीब 100 साल बाद होली पर चंद्रग्रहण लगने जा रहा है। हालांकि यह चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। यह चंद्र ग्रहण उत्तर-पूर्व एशिया, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान, रूस, आयरलैंड, इंग्लैंड, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, प्रशांत, अटलांटिक और आर्कटिक महासागर जैसी जगहों से दिखाई पड़ेगा।
होलिका दहन का पौराणिक महत्व भी है। होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई के विजय के रूप में मनाते हैं। होलिका दहन के दिन होलिका की पूजा करने का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार,इस त्योहार को लेकर सबसे प्रचलित है प्रहलाद, होलिका और हिरण्यकश्यप की कहानी। राक्षस हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद,, भगवान विष्णु का परम भक्त था। वहीं, हिरण्यकश्यप भगवान नारायण को अपना घोर शत्रु मानता था। पिता के लाख मना करने के बावजूद प्रहलाद, विष्णु की भक्ति करता रहा। असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने कई बार अपने पुत्र को मारने की, कोशिश कि, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान मिला था कि, उसे अग्नि नहीं जला सकती है। उसने अपने भाई से कहा कि, वह प्रहलाद को लेकर अग्नि की चिता पर बैठेगी और उसके हृदय के कांटे को निकाल देगी। वह प्रहलाद को लेकर चिता पर बैठी भी पर भगवान विष्णु की ऐसी माया थी कि, होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया।