चुनाव का मौसम चल रहा है और ऐसे में एक ऐसा चुनावी क्षेत्र है जो अचानक से सबकी नजरों में आ गया है। उस चुनावी क्षेत्र का नाम वाराणसी है। कुछ दिन पहले कॉमेडियन श्याम रंगीला ने वाराणसी क्षेत्र में नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपना नामांकन दाखिल करवाया था। जिसके बाद हर किसी की नजर वाराणसी सीट और श्याम पर थी। कई लोग श्याम का समर्थन भी कर रहे थे। जिसके बाद कई और उम्मीदवारो ने भी स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने के लिए अपना नामांकन दाखिल करवाया था।
लेकिन उन सभी आवेदकों के नामांकन आख़िरी समय में खारिज हो गए और उनमें से बहुत से आवेदकों को पता भी नहीं है कि ऐसा क्यों हुआ है। नामांकन दाखिल कराने वाले करीबन 41 लोग थे। इनमें से 33 लोगों का नामांकन रिटर्निंग ऑफिसर एस. राजलिंगम और उनके सहायक ने खारिज कर दिया। जिसके बाद इस बार के चुनाव के लिए वाराणसी क्षेत्र में मात्र 7 उम्मीदवार ही चुनाव लड़ने के लिए खड़े रह गए हैं। यह आंकड़ा पिछले तीन दशकों में सबसे कम है।
जिन आवेदकों का नामांकन स्वीकार करने के बाद उन्हें बाद में खारिज कर दिया गया, उनमें से 8 आवेदकों ने दावा किया है कि, नामांकन प्रक्रिया में धांधली की गई है। आवेदकों ने इसका आरोप रिटर्निंग ऑफिसर और उनके सहायक पर लगाया है। आवेदकों के मुताबिक रिटर्निंग ऑफिसर और सहायक जानबूझकर शुरुआती समय में नामांकन की प्रक्रिया बहुत ही धीमी गति से कर रहे थे। खासकर उन स्वतंत्र आवेदकों के समय जो भाजपा या आरएसएस से जुड़े हुए नहीं थे। ऐसे 14 निर्दलीय आवेदकों के हलफनामों की जांच में उन लोगों ने घंटों बिता दिए थे। आवेदकों के मुताबिक, उनको नामांकन दाखिल करवाने के आख़िरी दिन में सूचित किया गया था कि उनके हलफनामे में समस्याएं थीं, जैसे की उन्हें शपथ ठीक से नहीं दिलाई गई थी या उनके पास शपथ प्रमाणपत्र नहीं था।
चुनावी दिशानिर्देशों के अनुसार, आवेदक द्वारा अपना नामांकन पत्र जमा करने के तुरंत बाद उसकी शपथ ली जानी चाहिए और अगर उस दिन शपथ नहीं ली गई हो तो दूसरे दिन शपथ की प्रक्रिया हो जानी चाहिए। लेकिन बहुत से आवेदकों का ऐसा कहना है कि, अधिकारियों ने इस प्रक्रिया को नजरअंदाज कर दिया था। एक आवेदक के मुताबिक उसके तीन बार शपथ दिलाने के अनुरोध को सीधा नजरअंदाज कर दिया गया था। श्याम रंगीला का नामांकन भी ये ही वजह देते हुए खारिज कर दिया गया था।
आवेदकों का ये भी आरोप है कि, ये सब नरेंद मोदी के खिलाफ चुनावी क्षेत्र को सीमित करवाने के प्रयास की रणनीति थी। उनका ये भी कहना है कि, भाजपा-आरएसएस से जुड़े उम्मीदवारों के पक्ष के लिए चुनाव आयोग ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है।
इन आवेदकों के दावों में कितनी सच्चाई है यह हम दावे से तो नहीं कह सकते है, लेकिन नामांकन खारिज होने के पैटर्न में समानता देख लोगों के मन में सवाल तो कई उठ रहे हैं।