बिहार में बीते कई दिनों में एक के बाद एक पुल गिरे हैं। आम जनता के लिए यह जानना जरूरी है कि इन पुलों के निर्माण में किस तरह की सामग्री का इस्तेमाल हो रहा है। सरकार निर्माण कार्यों की निगरानी क्यों नहीं करती? सवाल यह भी उठता है कि क्या ठेकेदारों और सरकारी अधिकारियों के बीच मिलीभगत की वजह से ऐसा हो रहा है।
इस वजह से न सिर्फ जनता की मेहनत का पैसा बर्बाद होता है बल्कि लोगों की सुरक्षा को भी खतरा होता है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि निर्माण परियोजनाओं की निगरानी हो और दोषी अफसरों और ठेकेदारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।
17 दिन में 12 पुल गिरे
बिहार में पिछले 17 दिन में ही 12 पुल गिर गए हैं। इससे पहले भी देश भर में कई ऐसी घटनाएं हुई जब उद्घाटन के कुछ ही महीनों या सालों के भीतर निर्माण के ढहने या गिरने की खबर आ गई। इस तरह की घटनाओं की वजह से सरकार के कामकाज पर सवाल तो उठे ही, यह भी सवाल उठा कि जनता के टैक्स के पैसे से बन रहे इन पुलों या किसी अन्य निर्माण के गिरने का जिम्मेदार कौन है? आखिर इसकी भरपाई किस तरह की जाएगी। बड़ी संख्या में लोगों ने कहा कि सरकारी महकमों में हो रहा भ्रष्टाचार इसके लिए जिम्मेदार है।
पुल गिरने पर जनहित याचिका दायर
बिहार में पुल ढहने की लगातार घटनाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में राज्य सरकार से संपूर्ण संरचनात्मक ऑडिट करने और एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका के अनुसार ऐसी घटनाएं पुलों के बुनियादी ढांचे की सुरक्षा और विश्वसनीयता के बारे में चिंता पैदा कर रही है, खासकर यह देखते हुए कि बिहार भारत में सबसे अधिक बाढ़-ग्रस्त राज्य है।