देश के कुछ विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों ने अडानी ग्रुप के “मिर्जापुर दादरी खुर्द साइट प्लान” पर कड़ी चिंता व्यक्त की है। अडानी ग्रुप दादरी खुर्द जंगल की जमीन पर अपना थर्मल एनर्जी प्रोजेक्ट शुरू करने जा रहा है। यह जंगल हजारों साल के पेड़, औषधीय पौधों, तेंदुओं, सुस्त भालू, जंगली बिल्लियाँ और धारीदार लकड़बग्घों का घर हैं। ऐसे में इस प्रोजेक्ट की वजह से वहां से बड़े पैमाने पर वनस्पति और जानवरों का सफाया हो जाएगा। पर्यावरणविदों ने इस ही बात की कड़ी निंदा की है।
अडानी ग्रुप के अंतर्गत आने वाली कंपनी “मिर्जापुर थर्मल एनर्जी” ने 28 जून को, अपने 1,600 मेगावाट का “कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट” बनाने के लिए केंद्र से पर्यावरण की मंजूरी प्राप्त करने के लिए अपनी याचिका दर्ज की थी। उस दिन कंपनी ने एक विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति के सामने प्रस्तुत किए गए अपने दस्तावेज़ों में दर्शाया था कि, उसने अपनी 365.19 हेक्टेयर जमीन पर प्लांट बनाने का प्रस्ताव रखा है। इस 365.19 हेक्टेयर की जमीन में से कंपनी ने लगभग 12 हेक्टेयर जमीन के लिए “वन मंजूरी” मांगी थी। इससे ऐसे ज्ञात होता है कि, जिस जमीन पर कंपनी प्रोजेक्ट शुरू करना चाहती है, उसमें से केवल 12 हेक्टेयर जमीन ही वन भूमि है।
लेकिन कंपनी की इस मांग पर विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों का कहना है कि, कंपनी भ्रमित कर रही है। दरअसल, दादरी खुर्द में करीबन 665 हेक्टेयर की जमीन है, जिसके अंतर्गत कंपनी की प्रोजेक्ट साइट भी आती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, 1952 के केंद्र सरकार के राजपत्र के रूप में यह जमीन वन के रूप में दर्ज होनी थी। 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की थी कि, सरकारी रिकॉर्ड में जंगल के रूप में दर्ज किसी भी क्षेत्र को, वन भूमि माना जाना चाहिए।
इस मामले में चिंता दिखाते हुए मिर्जापुर में राष्ट्रीय इतिहास फाउंडेशन के संस्थापक और पर्यावरणविद् ‘देबादित्यो सिन्हा’ ने, 28 जून को पर्यावरण मंत्रालय को एक पत्र लिखा। उस पत्र में सिन्हा ने इस बात का उल्लेख किया कि, 1952 के आदेश के आधार पर, 665 हेक्टेयर को भारतीय वन एक्ट 1927 की धारा 20 के तहत “वन के रूप में अधिसूचित किया जाना चाहिए था”। लेकिन उस समय सिर्फ 106 हेक्टेयर को ही अधिसूचित किया गया था, बाकी के 558 हेक्टेयर को “अभी भी अधिसूचित किया जाना बाकी है”। वहीं एक पूर्व वन अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की कि, प्रस्तावित पॉवर प्लांट साइट इन 665 हेक्टेयर के अंतर्गत आता है।
सिन्हा ने अपने पत्र में यह उल्लेख किया कि, उत्तर प्रदेश में वन विभाग को बांटा गया जमीन का 27% हिस्सा अभी तक औपचारिक रूप से जंगल के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया है। मिर्जापुर के वन प्रभाग में ही, राज्य के रेकॉर्ड्स में वन भूमि के रूप में पहचानी गई 7,300 हेक्टेयर से ज्यादा की जमीन अभी भी वन भूमि के रूप में घोषित नहीं हुई है। सिन्हा के इस पत्र पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब, दादरी खुर्द साइट पर थर्मल पावर प्लांट प्रस्तावित किया हो। इससे पहले भी 2014 में पर्यावरण मंत्रालय ने “वेलस्पन एनर्जी” को इसी जमीन पर 1,320 मेगावाट का कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट बनाने के लिए पर्यावरण से संबंधी मंजूरी दे दी गई थी। हालांकि, उस समय भी सिन्हा के साथ दो अन्य याचिकाकर्ताओं ने ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ (एनजीटी) में एक मामला दायर किया था। उस मामले में उन्होंने तर्क दिया था कि, प्रोजेक्ट्स के लिए पर्यावरणीय वनों और वन्यजीवों के बारे में गलत और अधूरी जानकारी दी गई थी।
याचिका दर्ज करने के दो साल बाद यानी 2016 में, सिन्हा को सफलता मिली। जब एनजीटी ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में आदेश दिया और कंपनी को प्रोजेक्ट साइट को उसकी “मूल स्थिति” में बहाल करने के लिए कहा।