मुहर्रम इस्लामिक कैलंडर का पहला महीना माना जाता है। यह मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए बहुत ही खास पर्व हैं। देखा जाए तो मुहर्रम महीने का हर दिन मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए अहम होता हैं, लेकिन इस महीने का 10वां दिन बहुत ही खास माना जाता हैं इस दिन को अशूरा के रूप में मनाया जाता हैं। अशूरा को मुस्लिम समुदाय के लोग मातम के रुप में मनाते हैं और इस खास दिन पर लोग रोजा भी रखते हैं।
मुहर्रम 2024 कब है ?
मुहर्रम का त्योहार भी 10वें आशूरा को पड़ता है, जो कि इस बार 17 जुलाई यानि कल है। हालांकि देखा जाए तो इस्लाम में हर त्योहार चांद के दीदार होने के बाद ही मनाया जाता है। ऐसे में आज यानी 16 जुलाई 2024 को चांद का दीदार होने के बाद ही आधिकारिक तौर पर मुहर्रम की तारीख का ऐलान भी किया जाएगा।
क्यों मनाते हैं मुहर्रम?
बता दें कि, मुहर्रम को अल्लाह द्वारा निर्धारित चार पवित्र महीनों में से एक माना जाता है। मुहर्रम का महीना मुसलमानों के लिए धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों ही दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। यह इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना भी है, जो मुसलमानों के मदीना में हिजरा (प्रवास) और 622 ई. में पहले इस्लामी राज्य की स्थापना का प्रतीक है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार हजरत इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ मोहर्रम के 10वें दिन कर्बला की लड़ाई में शहीद हो गए थे।
क्या है मुहर्रम का महत्व ?
इस्लामी कैलेंडर में 12 महीने होते हैं, जिसमें से 4 सबसे पवित्र माने जाते हैं। ये क्रमशः ज़ुल-का’दा, ज़ुल-हिज्जा और मुहर्रम और चौथा रजब है। ऐसे में अल्लाह की दया और कृपा पाने का सबसे अच्छा महीना माना जाता है। हर एक दिन सवाब (इनाम) पाने का असर सबसे अधिक होता है। इस महीने के दौरान रोज़ा रखना और कुरान पढ़ने के साथ नियमित रूप से सद़का (दान) करना भी अच्छा माना जाता है। इससे अल्लाह का आशीर्वाद पूरे साल बना रहता है।
मुहर्रम पर क्यों रखते हैं रोज़ा?
मुहर्रम में रोज़ा रखने को लेकर भी अलग-अलग जगहों पर शिया-सुन्नी समुदाय की अलग-अलग मान्यताएं हैं। ऐसा कहा जाता है कि, रमजान के रोज़ा के बाद सबसे पाक मुहर्रम का रोज़ा होता है। शिया समुदाय के लोग मुहर्रम शुरू होने से लेकर 9 दिनों तक रोज़ा रखते हैं लेकिन मुहर्रम की 10वीं तारीख को रोज़ा नहीं रखा जाता है। यानी शिया समुदाय यौम-ए-आशूरा को रोज़ा नहीं रखते हैं। वहीं, सुन्नी समुदाय के लोग 9वें और 10वें दिन को ही रोज़ा रखते हैं। शिया समुदाय के लोग मुहर्रम के पूरे महीने को मातम के तौर पर मनाते हैं और बाकी किसी रंग के कपड़े न पहनकर काले या नीले रंग के ही कपड़े पहनते हैं। इसके साथ ही, भारत के बिहार राज्य में मुहर्रम महीने के दौरान शिया समुदाय की महिलाएं चूड़ियां-गहने आदि सभी चीजें उतार देती हैं।
शिया और सुन्नी कैसे मनाते हैं मुहर्रम?
दुनिया भर में शिया मुसलमान मुहर्रम के 10वें दिन यानी आशूरा के दिन काले कपड़े पहनकर ताजिए लेकर जुलूस निकालते हैं। वहीं दूसरी ओर सुन्नी समुदाय के कुछ लोग आशूर के दिन रोजा रखते हैं। ये दोनों समुदाय अपनी अपनी मान्यताओं के अनुसार इस दिन को मनाते हैं।