पड़ोसी देश बांग्लादेश में गुरुवार से सरकारी नौकरियों के आरक्षण व्यवस्था में सुधार की मांग के लिए विरोध प्रदर्शन जारी है। छात्रों के विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी। राजधानी ढाका और अन्य जगहों पर हिंसा भड़कने के कारण अब तक 39 लोगों की मौत हो गई है और हजारों लोगों के घायल होने की भी खबर है। इसमें उन स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों के लिए आरक्षण भी शामिल है, जिन्होंने 1971 में पाकिस्तान से देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी। हाल ही में वहां के हाई कोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानियों वाला कोटा बहाल करने का आदेश दिया था। उनके वंशजों के लिए एक तिहाई सिविल सेवा पद आरक्षित हैं।
क्या है पूरा मामला?
सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग को लेकर हजारों छात्र सड़कों पर उतर गए और सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं ढाका के पुलिसकर्मियों और छात्रों के बीच जमकर मारपीट हुई। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए चटगांव में पुलिस ने लाठियां चलाई और आंसू गैस के गोले छोड़े। उधर छात्रों ने राजधानी के रामपुरा इलाके में सरकारी बांग्लादेश टीवी बिल्डिंग की घेराबंदी की। दंगाइयों ने बिल्डिंग के सामने के हिस्से को क्षतिग्रस्त कर दिया और कई गाड़ियों को आग लगा दी। इस कारण से करीब 1200 से अधिक कर्मचारी अंदर ही फंस गए थे।
वहीं प्रदर्शन को दबाने के लिए शेख हसीना की सरकार ने देश के कई स्थानों पर मोबाइल, इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया है। इतना ही नहीं अधिकारियों ने रेलवे सेवाओं के साथ ही मेट्रो रेल सेवाओं को भी बंद कर दिया है। वहां हालात इतनी खराब हो गई हैं कि सरकार ने देशभर में बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड को तैनात कर दिया है।
बांग्लादेश में क्या है आरक्षण व्यवस्था?
- स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को सरकारी नौकरियों में 30% आरक्षण मिलता है।
- बांग्लादेश में महिलाओं के लिए भी 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था है।
- इसके अलावा 10 फीसदी आरक्षण अलग-अलग जिलों के लिए तय है।
- एथनिक माइनोरिटी के लिए 6% कोटा तय है।
- इन सभी आरक्षणों को जोड़कर 56% होता है। इसके अलावा 44% मैरिट के लिए रखा गया है।
इसको लेकर 2018 में भी हो चुका है आंदोलन
इसको लेकर 2018 में भी बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए थे, उस वक्त छात्र और शिक्षक दोनों मिले हुए थे और प्रदर्शन पूरे चार महीने तक चला था। भारी विरोध को देखते हुए शेख हसीना ने उस वक्त इसे हटाने का ऐलान किया था। लेकिन इसे पूरी तरह से हटाया नहीं गया था। इस साल जून में सरकार की तरफ से इसे बरकरार रखने की बात कही गई है। उसके बाद से ही मामला फिर से गरमा गया और इतने बड़े और हिंसक आंदोलन में तब्दील हो गया है।