“मेरा सपना भी कुछ- सी ख़ुशी में, बहुत सारे सुख, चुगने जैसे हैं, जैसे कोई अपना खाना चुगती है। जब उसे एक पूरी रोटी मिलती है, तो वो पूरी रोटी नहीं मिलती है, तब भी वो उस रोटी में से, रोटी चुग रही होती है। बहुत बड़े आकाश में भी हम अपने हिस्से का आकाश चुग लेते हैं… देखने के लिए हम बहुत खूबसूरत और बड़ा आकाश देख सकते हैं। जीने के लिए…हम रंग ही आकाश जी पाएँगे…हम आकाश को, अपने घर की खिड़की से जीना सीखते हैं!” – मानव कौल
मुझे यात्रा व्रतांत कुछ ख़ास नहीं लुभाते हालांकि उनमे से एक लिखना जरूर चाहता हूं! ठीक ठीक याद करूं तो क्लास 6th या 7th मे ‘ल्हासा की ओर’ पढ़ा था, लेकिन अब सबकुछ ठीक ठीक याद नहीं। हां इतना जरूर याद है कि उसके कुछ अंश ख़ासतौर पर जहां चाय मे मक्खन पड़ने का जिक्र है वो अभी भी दिमाग़ मे चिपका हुआ है। यात्रा व्रतांत की कई खूबियों मे से ये भी एक बेहद कमाल की खूबी है कि उस यात्रा बखानी के कुछ अंश आपके दिमाग मे सदैव चिपके रह जाते हैं। लेखक मानव कौल को बहुत समय से पढ़ना चाह रहा था अंततः ऐसा संयोग बना की मेरे नापसंदीदा कृति यानी यात्रा व्रतांत से शुरुआत हुई। अगर आप मानव कौल को नहीं जानते तो इसे आप अपना और भारत मे हिन्दी साहित्य का दुर्भाग्य माने। कश्मीर के बारामूला में पैदा हुए मानव कौल, होशंगाबाद (म.प्र.) में परवरिश के रास्ते पिछले 20 सालों से मुंबई में फ़िल्मी दुनिया, अभिनय, नाट्य-निर्देशन और लेखन का अभिन्न हिस्सा बने हुए हैं। अपने हर नए नाटक से हिंदी रंगमंच की दुनिया को चौंकाने वाले मानव ने अपने ख़ास गद्य के लिए साहित्य-पाठकों के बीच भी उतनी ही विशेष जगह बनाई है। इनकी पिछली तीनों किताबें— ‘ठीक तुम्हारे पीछे’, ‘प्रेम कबूतर’ और ‘तुम्हारे बारे में’ दैनिक जागरण नीलसन बेस्टसेलर में शामिल हो चुकी हैं। यह इनकी चौथी किताब है, जो एक नया और अलग क़िस्म का यात्रा-वृत्तांत लेखन भी है। इस किताब में मानव कौल ने मई-जून 2019 के बीच यूरोप के अलग-अलग स्थानों पर की गई अपनी एकल यात्रा को दर्ज किया है।
मानव की बाकी किताबों की तरह इस किताब का शीर्षक भी खुद मे बेहद अद्भुत है। ‘बहुत दूर कितना दूर होता है’ के जरिये मानव पाठक को न केवल भौगोलिक दृष्टिकोण से, बल्कि मानसिक और आत्मिक दृष्टिकोण से भरी एक यात्रा पर ले जाते हैं। उन्होंने अपने अनुभवों को बहुत ही सुंदर और सरल भाषा में प्रस्तुत करते हैं। उनकी लेखनी में एक खास प्रकार की आत्मीयता और पारदर्शिता है, जो पाठक को तुरंत जोड़ देती है। पुस्तक में वे अपनी यात्राओं के दौरान की छोटी-बड़ी घटनाओं, लोगों से मुलाकातों और प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन करते हैं। लेकिन इन सभी वर्णनों के बीच में, वे अपने आंतरिक संघर्षों और चिंतन को भी उजागर करते हैं। वे हर दृश्य, हर घटना, और हर अनुभव को इस प्रकार से वर्णित करते हैं कि पाठक उसे अपने सामने घटित होता हुआ महसूस करता है। उनके विचारों और भावनाओं का बहाव इतना प्राकृतिक और सहज है कि पाठक उसमें डूब जाता है।
पुस्तक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह मात्र एक यात्रा वृत्तांत नहीं है, बल्कि एक आत्मा की खोज की यात्रा है। मानव कौल ने अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया है और यात्रा के माध्यम से वे अपने जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयास करते हैं। उनका सवाल, “बहुत दूर कितना दूर होता है?” सिर्फ भौगोलिक दूरी से नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक दूरी से भी जुड़ा हुआ है।
किताब का एक प्रमुख तत्व मानव कौल का गहरा आत्ममंथन है। वे अपने जीवन के अनुभवों, निराशाओं, उम्मीदों, और विचारधाराओं के बारे में बड़े स्पष्ट और निष्ठुर तरीके से लिखते हैं। इस आत्ममंथन के माध्यम से वे अपने जीवन के विभिन्न पक्षों को समझने और स्वीकारने का प्रयास करते हैं। इस प्रक्रिया में, वे जीवन की नश्वरता, मनुष्य की अस्थायीता और यात्रा के महत्व पर विचार करते हैं।
‘बहुत दूर कितना दूर होता है’ केवल एक यात्रा वृत्तांत नहीं है, बल्कि जीवन की यात्रा का भी एक प्रतीक है। यह पुस्तक हमें यह सिखाती है कि जीवन एक यात्रा है, जिसमें हम सभी अपने-अपने रास्ते की खोज कर रहे हैं। मानव कौल ने इस पुस्तक के माध्यम से यह संदेश दिया है कि हमारे जीवन की यात्रा में हम कितनी दूर जाते हैं, यह केवल बाहरी यात्रा से नहीं, बल्कि आंतरिक यात्रा से भी निर्धारित होता है। यह पुस्तक निश्चित रूप से हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है और इसे हर साहित्य प्रेमी को पढ़ना चाहिए।