एक शांतिपूर्ण देश की कल्पना कीजिये, अब यह सोचिए कि उस देश को वैसा बने रहने के लिए मूल रूप से किन चीजों की आवश्यकता होती होगी। जवाब मे, आपके दिमाग मे जितनी भी चीजें आई होंगी वो सब या तो धार्मिक या राजनीतिक या फिर आर्थिक श्रेणी के अंतर्गत आती होंगी। अब हम बात करेंगे एक ऐसे देश की जो उन श्रेणी के सभी आधारों पर संघर्ष कर रहा है। देश का नाम इराक़ है। जहां के लोग आए दिन शायद अज़ान से ज्यादा बार गोलीयों और बम धमाकों की आवाज़ सुनते होंगे। दशकों से चल रहे युद्ध से देश टूट चुका है। लोग सुरक्षित महसूस नहीं करते। इराकियों के अपहरण और हत्या की कहानियाँ रोज़मर्रा की घटनाएँ इतनी आम हो गई हैं कि उन्हें ख़बर भी नहीं माना जाता। अगर कोई वर्ग वहाँ सबसे ज्यादा पीड़ित है तो वे हर उम्र की महिलाएं हैं। इराक में कुछ जगहों पर, उन्हें नकाब पहने बिना या परिवार के किसी पुरुष सदस्य के साथ काम करने या घर से बाहर जाने की भी अनुमति नहीं है। कुछ को उनके मूल अधिकारों से वंचित किया जाता है, जिसमें वोट देने, पढ़ने या प्यार करने जैसे मूल अधिकार भी शामिल है।
कम उम्र में शादी एक और मुद्दा है जिसका सामना महिलाएं अक्सर करती हैं, साथ ही घरेलू हिंसा के साथ-साथ शारीरिक और मानसिक शोषण के सभी प्रकार भी। बहुत कम महिलाएं इसकी रिपोर्ट करने में कामयाब हो पाती हैं। अगर ये महिलाएं दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करती हैं, तो उन्हें सामाजिक कलंक के कारण बहिष्कृत कर दिया जाएगा और उनके परिवार उन्हें कभी वापस स्वीकार नहीं करेंगे। इसी बात को और समझें तो इराक़ की स्थानीय पुलिस के अनुसार, “हर दिन एक महिला की हत्या होती है,” लेकिन परिवार अक्सर इसकी रिपोर्ट करने से बचते हैं क्योंकि उन्हें अपनी प्रतिष्ठा खराब होने या पारिवारिक झगड़ों में घसीटे जाने का डर रहता है।
अब शायद आप समझ गये होंगे कि एक इराक़ी महिला होना किसी शाप के साथ जन्म लेने जैसा ही है। जहां आज दुनिया भर के देश आगे बढ़ने की ओर अग्रसर हैं। वहीं इराक़ एक ऐसा नया कानून लाने की तैयारी मे है जो देश और उसकी महिलाओं को ना जाने किस अंधकार की तरह पीछे ले जायेगा।
इराक़ी संसद मे शिया गठबंधन एक ऐसा बिल लेकर आई है, जिसमें एक कानून मे नया संशोधन किया जायेगा। उस संशोधन के अनुसार, लड़कियों की शादी के लिए न्यूनतम उम्र 15 साल से घटाकर 9 साल तय कर दी जाएगी। इस कानून का ड्राफ्ट इराकी संसद में पेश किया गया है। महिला अधिकार संगठन इस बिल को लेकर चिंतित हैं। अगर यह विधेयक पारित हो जाता है, तो 9 साल की उम्र की लड़कियों और 15 साल की उम्र के लड़कों को विवाह की अनुमति मिल जाएगी, जिससे बाल विवाह और शोषण बढ़ने की आशंका है। मानवाधिकार संगठनों, महिला समूहों और नागरिक समाज कार्यकर्ताओं ने इस विधेयक का पुरजोर विरोध किया है। उनका तर्क है कि, बाल विवाह के कारण स्कूल छोड़ने की दर बढ़ जा रही है। इसकी वजह से बच्चियां समय से पहले गर्भवती होने लगेंगी। गर्भपात और घरेलू हिंसा जैसे मामले भी बढ़ जायेंगे। यूनिसेफ के अनुसार, इराक में अभी भी 28 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले ही हो जाती है।
नये कानून से पीडोफाइल मानसिकता को मिलेगा बढ़वा
कट्टर इस्लामिक देशों मे कई तरह का दोगलापन देखा जा सकता है। एक तरफ तो वह समलैंगिकता और कई मसलों का जुबान पर नाम लेने से भी परहेज करते हैं और उसे रोग की तरह देखते हैं लेकिन वहीं दूसरी तरफ अपने ही महिलाओं के खिलाफ़ ऐसा नियम लाने का प्रयास करते रहते हैं, जिससे पीडोफाइल जैसी घातक मनोवैज्ञानिक स्थिति को और बढावा मिलेगा। पीडोफाइल, 16 साल या उससे अधिक उम्र का व्यक्ति माना जाता है, जो ज्यादातर या केवल प्रीप्यूसेंट बच्चों की ओर यौन रूप से आकर्षित होता है। प्रीप्यूसेंट बच्चों को भी एक खास उम्र सीमा के भीतर परिभाषित किया गया है। लड़कियों में प्यूबर्टी की उम्र 10 से 11 वर्ष मानी गई है। लड़कों में यह उम्र 11 से 12 वर्ष है। पीडोफाइल की परिभाषा में इस उम्र को 13 वर्ष रखा गया है। इसका मतलब यह है कि 13 या उससे कम उम्र के बच्चों के प्रति सेक्सुअल आकर्षण रखने या उनके साथ यौन गतिविधियों को थोपने वाला वाला व्यक्ति पीडोफाइल कहलाता है। साइकायट्रिस्ट और साइकलॉजिस्ट्स के मुताबिक, ज्यादातर वे लोग पीडोफाइल बनते हैं, जिनके साथ बचपन में किसी तरह का गलत काम हुआ हो। ऐसी सब चीजें लोगों के दिमाग में बैठ जाती हैं, जिसके कारण वह लोग कोशिश करते हैं कि वे भी वैसा ही काम किसी अन्य बच्चे के साथ करें। इराक़ी संसद के नये नियम से ये मानसिकता आम हो जायेगी क्यूंकि नौ साल की बच्ची प्रीप्यूसेंट कहलाती है। ये कहना ग़लत नहीं होगा कि, ऐसे नियम बनाने का ख्याल आपको तब ही आ सकता है जब आपने अपनी तार्किक शक्ति और इंसानियत को दफन कर दिया हो।