1947 का साल भारत के लिए आज़ादी का साल था, लेकिन इसके साथ ही बँटवारे की कड़वाहट और विभाजन की पीड़ा भी थी। देश को एकजुट करने के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल का योगदान अमूल्य था। उन्होंने भारतीय रियासतों को एक संघीय गणराज्य में मिलाने का बीड़ा उठाया। हैदराबाद, जो कि निज़ाम की रियासत थी, सरदार पटेल के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक थी। यह रियासत इतनी बड़ी थी कि यह खुद एक देश की तरह थी, और उसकी अपनी सेना, मुद्रा और शासन व्यवस्था थी।
हैदराबाद का निज़ाम, मीर उस्मान अली खान, दुनिया के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक था और उसने भारत के साथ मिलने से इनकार कर दिया था। वह पाकिस्तान के साथ या स्वतंत्र रहना चाहता था, लेकिन किसी भी हाल में भारत में विलय नहीं करना चाहता था। निजाम ने रजाकारों यानी कासिम रज़वी के नेतृत्व में एक अर्धसैनिक बल की मदद से भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दिया। रजाकारों का आतंक पूरे हैदराबाद राज्य में फैल चुका था।
रजाकारों ने जगह-जगह हिंसा फैलाई, हिन्दू समुदाय को निशाना बनाया, और भारतीय संघ के खिलाफ खुलेआम विद्रोह किया। हालात इतने बिगड़ गए कि हैदराबाद में कानून-व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह चरमरा गई थी। इस तनावपूर्ण माहौल में सरदार पटेल के लिए यह आवश्यक हो गया था कि हैदराबाद के भविष्य का निर्णय लिया जाए।
13 सितंबर, 1948 यानी आज ही की तारीख को, सरदार पटेल ने भारतीय सेना को ‘ऑपरेशन पोलो’ के तहत हैदराबाद पर हमला करने का आदेश दिया। यह फैसला आसान नहीं था; अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दबाव था, खासकर जब कि कुछ देश हैदराबाद के साथ सहानुभूति रखते थे। पटेल के सामने यह चुनौती थी कि वह भारत की संप्रभुता और एकता को किसी भी कीमत पर बनाए रखें। यह निर्णय भारतीय सेना के लिए भी कठिन था, क्योंकि उन्हें एक अत्यंत सशक्त विरोध का सामना करना था।
भारतीय सेना ने हैदराबाद में प्रवेश करते ही रजाकारों के कड़े प्रतिरोध का सामना किया। रजाकारों ने भीषण लड़ाई लड़ी, लेकिन भारतीय सेना की रणनीति और दृढ़ संकल्प के सामने वे टिक नहीं पाए। कुछ दिनों के संघर्ष के बाद, 18 सितंबर, 1948 को, भारतीय सेना ने हैदराबाद पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया। निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया, और हैदराबाद भारतीय संघ का हिस्सा बन गया।
हैदराबाद के भारतीय संघ में विलय ने न केवल देश को एकजुट किया, बल्कि सरदार पटेल की राजनीतिक कुशलता और दृढ़ निश्चय का भी प्रमाण दिया। इस ऑपरेशन ने सिद्ध कर दिया कि भारत की एकता और अखंडता से समझौता नहीं किया जा सकता। इस निर्णय ने भारत की आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना करने की क्षमता को भी साबित किया।
सरदार पटेल का यह साहसिक निर्णय उस समय विवादित माना जा सकता था, लेकिन आज वह भारतीय इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है। यह न केवल एक रियासत के विलय की कहानी है, बल्कि यह एक ऐसे नेता की कहानी है जिसने देश की एकता और अखंडता के लिए किसी भी चुनौती का सामना करने से परहेज नहीं किया। पटेल का यह कदम एक सबक है कि कभी-कभी राष्ट्रीय हितों के लिए कठोर निर्णय लेना आवश्यक होता है। उनके इस ऐतिहासिक फैसले ने भारत को संपूर्णता की ओर बढ़ाया और एक ऐसा राष्ट्र बनाने में मदद की जो आज हम गर्व से भारत कहते हैं।