पुणे की 26 साल की Anna Sebastian की ‘वर्कलोड’ की वजह से मौत हो गई। यह कोई पहला मामला नहीं है जिसकी मौत, ‘वर्कलोड’ की वजह हुई हो। भारत में हज़ारों करोड़ों लोगों है जिनकी मौत की वजह वर्कलोड रही है लेकिन लोग खुल कर सामने नहीं आ पाए है। इन सब के बाद अब सवाल यह है कि, क्या भारत में कॉर्पोरेट कल्चर ठीक नहीं है? क्या भारत में लेबर सिस्टम ठीक नहीं है? जिसकी वजह से हमारे देश के लोगों के पास मौत के आलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता है। भारत दुनिया के उन टॉप देशों में से एक है, जहां ‘work week’ सबसे लंबा होता है। यानी भारतीय व्यक्ति हफ्ते में 7 दिन लगभग 48 घंटे काम करता है, वहीं अमेरिका में यह लगभग 37 घंटे जबकि, यूके में 36 घंटे काम करता हैं। हाल ही में पुणे की Ernst & Young कंपनी में काम करने वाली ‘CA Anna Sebastian’ की मौत हमें कॉर्पोरेट कल्चर में काम के दबाव और तनाव की समस्या के बारे में सोचने के लिए मजबूर करती है कि, हर बड़ी छोटी कंपनी के कर्मचारी मानसिक रूप से जुड़े हुए है। इन कारणों से कर्मचारियों पर मानसिक और शारीरिक दबाव पड़ता है, जो उनके स्वास्थ्य और जीवन को प्रभावित करता है। इस बात का सबूत है अब तक जो लोग Workload की वजह से अपनी जान गवा चुके हैं।
केरल में हाल ही में एक चौंकाने वाली घटना हुई थी, कन्नूर जिले के कुथुपरम्बा में ‘kenara baink’ की मैनेजर केएस स्वप्ना को 9 अप्रैल को उनकी शाखा में फांसी पर लटका हुआ पाया गया था। उन्होंने अपनी डायरी में एक छोटा सा नोट छोड़ा था जिसमें उन्होंने लिखा था कि, वह यह कदम इसलिए उठा रही हैं क्योंकि वह अपनी नौकरी में असफल हो गई थीं।
हाल के वर्षों में काम के दबाव से जुड़ी मौतों के कई मामले सामने आए हैं। भारत में इस तरह की घटनाओं की संख्या बढ़ रही है, लेकिन इसके लिए कोई विशिष्ट आंकड़ा नहीं है। लेकिन इन आंकड़ों से पता चलता है कि काम के दबाव से जुड़ी मौतों की समस्या भारत में सबसे अधिक हैं। कुछ रिपोर्ट्स और अध्ययनों से यह आंकड़े सामने आए हैं।
- साल 2020 में Source ILO (International Labour Organization) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में काम के दबाव से जुड़ी लोगों में मौतों की संख्या लगभग 10,000 थी।
- साल 2019 में Source NSC (National Safety Council) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में काम के दबाव से हुई लोगों की मौतों की संख्या लगभग 8000 थी।
- एक अध्ययन के अनुसार,भारत में 45% कर्मचारी काम के दबाव से जुड़े तनाव का सामना कर रहे है।
- एक अन्य अध्ययन (Source Mind) के अनुसार, भारत में 60% कर्मचारी काम के दबाव से जुड़े मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करते हैं।
कई बड़ी कंपनियों के employees ने किए खुलासे
Hospitality Sector के एक बड़े नाम के साथ काम कर रहे इवेंट मैनेजर विक्रांत कहते हैं कि, इस फील्ड में आया था तो बड़े सपनों के साथ आया था लेकिन 8 सालों में सब बदल गया कंपनी पैसे तो देती है लेकिन बंधुआ बनने की कीमत पर। दिन- रात सब उन्हे ही देने पढ़ते हैं, शादी के दिन भी मैं online meetings attend करता रहा शादी के बाद रिश्ते में तनाव रहने लगा, पत्नी अलग प्रोफेशन से है। वो काम तो समझती है लेकिन इस सेक्टर की उलझनें नहीं। बात इतनी खिंची कि अलगाव तक नौबत आ गई थी। लेकिन घर-गाड़ी के लिए इतने लोन ले चुका कि, बीच में नौकरी बदलने की भी हिम्मत नहीं हुई।
मुंबई के एक कॉर्पोरेट में मिड लेवल कर्मचारी का कहना है कि, रोज-रोज नए-नए क्लाइंट और नई3 डेडलाइन हमारे सिर पर रहती हैं। कुछ भी मिस ना हो जाए, इसके लिए मेरे लैपटॉप से लेकर घर की वर्क वॉल पर भी स्टिकर ही स्टिकर लगे हैं। इसके बाद भी काम पूरा नहीं होता। वैसे तो शिफ्ट 9 घंटे की है, लेकिन पिछले 3 सालों में एक बार भी वक्त पर लैपटॉप बंद नहीं हो सका।
International MNC में काम करने वाली चेतना भगत बताती हैं कि, हमारा Head Office New York में है। हमे उनसे अपने Boss से बातचीत करने के लिए चौबीसों घंटे zoom meeting पर तैयार रहना पड़ता है। आए दिन Email आता है, जिस पर Meeting का समय हमारे लिए देर रात है, हम कभी मना नहीं कर सकते हैं और हमेशा yes sir ही लिखना पड़ता है वरना ‘Appraisal’ नहीं मिलेगा।
मृतका की मां ने कंपनी के चेरयमैन को लिखा पत्र, पिता ने भी किए कई खुलासे
मृतका की मां ने इस महीने की शुरुआत में EY India के चेयरमैन राजीव मेमानी को पत्र लिखकर बहुराष्ट्रीय परामर्श कंपनी में अत्यधिक काम के ‘महिमामंडन’ (glorification) पर सवाल उठाया। मां ने जो खत लिखा था, उसमें दावा किया कि, work pressure के कारण उसकी बेटी की जान चली गई और कंपनी से कोई भी उसकी बेटी के अंतिम संस्कार तक में शामिल नहीं हुआ। कंपनी के उच्च अधिकारियों से उस कार्य संस्कृति को बदलने की अपील की जो अधिक काम को महिमामंडन (glorification) करती है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा, उसकी बेटी की मौत एक चेतावनी है। यह पत्र इसलिए जरूरी है कि, किसी अन्य परिवार को यह सब ना सहन करना पड़े जो उनके परिवार को सहना करना पड़ रहा है। अन्ना के पिता शिबी जोसेफ ने बताया कि, उसकी बेटी को देर रात 12.30 बजे तक काम करना पड़ता था। कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष अत्यधिक काम के दबाव का मुद्दा उठाया गया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। परिवार ने आरोप लगाया कि, कंपनी ने पत्र के वायरल होने के बाद भी जवाब नहीं दिया गया। हमारी कानून का सहारा लेने की योजना बिल्कुल नहीं है लेकिन हम नहीं चाहते कि, किसी और के साथ ऐसा हो। हम नहीं चाहते कि, ऐसी ‘कॉर्पोरेट कंपनी’ में आने वाले नए बच्चों को भी ऐसी ही परिस्थितियों का सामना करना पड़े।