1946 का वर्ष…द्वितीय विश्व युद्ध की राख से उभरती दुनिया, परंतु कहीं शांति के बीज अंकुरित हो रहे थे, तो कहीं साम्राज्यवादी शक्तियाँ अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए निर्दोषों का खून बहा रही थीं। यह वही समय था जब फ्रांस ने वियतनाम में अपनी साम्राज्यवादी पकड़ को मजबूत करने के लिए एक ऐसा कदम उठाया, जिसने हजारों मासूम जिंदगियों को खत्म कर दिया।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद फ्रांस, जिसने वियतनाम पर लंबे समय तक राज किया था, को जापानी कब्जे के कारण अपना नियंत्रण छोड़ना पड़ा था। युद्ध के बाद, वियतनामी लोगों ने स्वतंत्रता की ओर कदम बढ़ाए।
2 सितंबर 1945 को, ‘हो. ची. मिन्ह’ ने स्वतंत्रता की घोषणा की और वियतनाम लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की। लेकिन फ्रांस ने इसे स्वीकार नहीं किया और वियतनाम को फिर से अपने अधीन करने की कोशिशें शुरू कर दीं।
हैफोंग, वियतनाम का प्रमुख बंदरगाह, इस साम्राज्यवादी संघर्ष का केंद्र बन गया। हैफोंग में स्थानीय वियतनामी और फ्रांसीसी सैनिकों के बीच संघर्ष बढ़ता गया। अक्टूबर 1946 तक स्थिति इतनी खराब हो गई कि दोनों पक्षों के बीच झगडे आम हो गई थे।
23 नवंबर 1946 को फ्रांसीसी नौसेना ने हैफोंग पर भीषण बमबारी शुरू कर दी। एक मामूली सीमा विवाद को बहाना बनाकर फ्रांसीसी सैनिकों ने शहर पर हमला कर दिया। फ्रांस ने दावा किया कि वियतनामी पक्ष ने उनके सैनिकों पर हमला किया था, लेकिन सच्चाई यह थी कि यह फ्रांसीसी साम्राज्यवाद की एक रणनीति थी।
फ्रांसीसी नौसेना ने अपनी तोपों से पूरे शहर को निशाना बनाया। वियतनामी नागरिक, जिनमें महिलाएँ, बच्चे और बुजुर्ग शामिल थे, इस बर्बरता का शिकार हुए। अनुमानित 6,000 निर्दोष नागरिकों को मार डाला गया। हजारों घर जलकर राख हो गए, बाजार खाक हो गए, और बंदरगाह लाशों से भर गया।
इस हिंसा के पीछे के कई कारण थे जैसे – फ्रांस अपने पुराने उपनिवेशों पर नियंत्रण वापस पाना चाहता था। लेकिन वियतनाम में बढ़ती स्वतंत्रता की आवाजें फ्रांसीसी हितों के लिए खतरा बन रही थीं। हैफोंग वियतनाम का सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक बंदरगाह था। इस बंदरगाह पर कब्जा फ्रांसीसी साम्राज्य के लिए आर्थिक लाभ सुनिश्चित कर सकता था। इसीलिए फ्रांस ने इस हमले से अन्य उपनिवेशों को यह संदेश दिया कि स्वतंत्रता के सभी प्रयासों को वो कुचल देगा।
हैफोंग नरसंहार वियतनामी इतिहास का सबसे काला अध्याय बन गया। इसने पूरे वियतनाम में आक्रोश पैदा किया। वियतनामी लोगों ने महसूस किया कि फ्रांस के साथ कोई समझौता संभव नहीं है। यह घटना प्रथम इंडोचाइना युद्ध (1946-1954) की शुरुआत का कारण भी बनी।
हैफोंग का नरसंहार यह दिखाता है कि साम्राज्यवादी शक्तियों ने किस तरह हमेशा निर्दोष लोगों की जिंदगियों को ताक पर रखकर अपनी सत्ता को प्राथमिकता दी। यह घटना केवल वियतनाम ही नहीं, बल्कि हर उस देश के लिए एक चेतावनी है जो शोषण और उपनिवेशवाद का शिकार रहा है।