हाल ही मे आई एक ख़बर ने मुझे दो दफ़ा हैरान कर दिया! ख़बर थी कि रूस चंद्रमा में न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने जा रहा है। खास बात यह है कि इस परियोजना पर भारत भी रूस के साथ हाथ मिलाने को तैयार है। पहली बार मुझे आश्चर्य यही सोच कर हुआ कि क्या यह सम्भव हो पायेगा? इससे भी ज्यादा हैरानी की बात ये है कि इस काम में धरती के दो दुश्मन यानी चीन और भारत भी हाथ मिलाने वाले हैं।
यूरेशियन टाइम्स की एक हालिया रिपोर्ट ने रूस की सरकारी स्वामित्व वाली समाचार एजेंसी टैस का जिक्र करते हुए दावा किया है कि रूस और चीन, भारत के साथ मिलकर चांद पर न्यूक्लियर पावर प्लांट लगा सकते हैं। रूसी समाचार एजेंसी टैस ने ये जानकारी दी है।
रोसाटॉम रूस की सरकारी परमाणु ऊर्जा कंपनी है। जिसके भारत के साथ भी संबंध हैं। इस प्रोजेक्ट में भारत की रुचि 2040 तक चांद पर मानवयुक्त मिशन की योजना बनाने और एक बेस स्थापित करने की योजना के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। हालांकि अभी ये सब सिर्फ संभावनाओं की बात है। लेकिन इतनी संभावनाओं की ख़बर के बीच मुझे उस संभावना के हिस्से का एक क्षण याद आ रहा है जब पहली बार चांद पर पहुंचने की बहस पर विराम लगा होगा!
12 सितंबर 1959 यानी आज की तारीख़, ‘लूना 2’ को लॉन्च किया गया था। ये वो पहली मैन मेड स्पेसक्राफ्ट थी जिसने चाँद की सतह को छुआ हो। सोवियत संघ द्वारा लॉन्च किया गया ये मिशन स्पेस की दुनिया में एक मील का पत्थर साबित हुआ। उस समय, दुनिया की नज़रें आसमान की ओर उठी हुई थीं। चाँद की इस पहली विजय ने विज्ञान की दिशा और दशा दोनों को ही बदल दिया। उस दौर में जब तकनीक अपनी शुरुआत कर रही थी, लूना 2 ने असंभव को संभव कर दिखाया।
लूना 2 का मिशन बिल्कुल आसान नहीं था। उसे चाँद तक पहुँचने के लिए बहुत सी तकनीकी और वैज्ञानिक बाधाओं को पार करना पड़ा। उस दौर में स्पेस रेस अपने चरम पर थी। सोवियत संघ और अमेरिका के बीच टेक्निकल डोमिनेंस की होड़ लगी हुई थी। लूना 2 की सफलता ने सोवियत संघ को इस रेस में बढ़त दिला दी।
अब आप मे से कुछ जानकर कहेंगे कि लुना 2 चांद की सतह से टकरा कर क्रैश हो गया था तो भला ये कैसी सफलताए हुयी? सवाल वाजिब है लेकिन इस मिशन से पहले किसी स्पेसक्राफ्ट ने चांद की सतह को भी नहीं छुआ था इसलिए ये भी एक बड़ी उपलब्धि थी। उस समय की तकनीक आज के मुकाबले बहुत पिछड़ी हुई थी। कंप्यूटर सिस्टम्स बेसिक थे, रॉकेट साइंस इनफैंट स्टेज में थी, और प्रत्येक मिशन एक बड़ा गैमबल हुआ करता था। चंद्रमा पर पहला मानवयुक्त मिशन अमेरिका का अपोलो-11 था जिसे 16 जुलाई 1969 को लॉन्च किया गया था। हालांकि कितने दुर्भाग्य की बात है कि रूस ने अंतरिक्ष की दौड़ शुरू की, लेकिन वह अब तक एक भी मानवयुक्त मिशन भेजने में कामयाब नहीं हो सका।
बहरहाल, तब की तुलना में आज की दुनिया बिल्कुल बदल चुकी है। लूना 2 के समय तकनीक और संसाधनों की कमी थी, और उस समय के वैज्ञानिक प्रयोग महज़ परीक्षण और संभावनाओं पर आधारित होते थे। आज, हमने चाँद की सतह पर इंसान उतारा है, मंगल ग्रह पर रोवर भेजे हैं, और स्पेस में टेलिस्कोप्स के माध्यम से अरबों प्रकाश वर्ष दूर की चीज़ों को देख सकते हैं। अब स्पेस मिशन न केवल राष्ट्रों के गर्व का प्रतीक हैं, बल्कि कॉर्पोरेट्स और निजी कंपनियाँ भी इसमें हिस्सा ले रही हैं। स्पेस X, ब्लू ओरिजिन जैसी कंपनियाँ स्पेस को कमर्शियलाइज करने के प्रयास में लगी हैं। अंतरिक्ष अब एक नए आर्थिक क्षेत्र की तरह देखा जा रहा है।