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Reading: आज की तारीख – 21: जोनस्टाउन नरसंहार – जहां अंधभक्ति ने ले ली 918 लोगों की जान!
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Fourth Special

आज की तारीख – 21: जोनस्टाउन नरसंहार – जहां अंधभक्ति ने ले ली 918 लोगों की जान!

जोनस्टाउन नरसंहार हमें यह सिखाता है कि किसी भी नेता या विचारधारा पर आँख मूँदकर विश्वास करना घातक हो सकता है।

Last updated: नवम्बर 19, 2024 1:04 अपराह्न
By Rajneesh 6 महीना पहले
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8 Min Read
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18 नवंबर 1978 का दिन मानव इतिहास के सबसे भयावह और दर्दनाक अध्यायों में से एक है। इस दिन, गुयाना के जंगलों में जॉनस्टाउन नामक एक कम्यून में 918 लोगों ने आत्महत्या कर ली, जिनमें 300 से अधिक बच्चे थे। यह घटना ‘जोनस्टाउन नरसंहार’ के नाम से जानी जाती है। यह कहानी न केवल अंधभक्ति और धोखे की है, बल्कि इस बात की भी है कि कैसे एक इंसान का पागलपन कैसे कई मासूम लोगों की जान ले सकता है।

1930, अमेरिका का यह एक ऐसा दौर था जब समाज बदलाव की ओर बढ़ रहा था, कम्युनिस्म ओर बढ़ रहा था,और लोग नई-नई विचारधाराओं की तलाश में थे। इसी दौर मे जिम वॉरेन जोन्स नाम के व्यक्ती का जन्म इंडियाना के क्रीट शहर में हुआ। अपनी व्यस्तताओं के कारण माता – पिता जोन्स को समय नहीं दे पाते थे, इसीलिए एकांत ने उसे बहुत जल्दी घेर लिया था। परिवार की अस्थिरता ने भी उसके बचपन पर गहरा असर डाला। जिम का स्वभाव शुरू से ही अजीब था। इसके अलावा जिम का झुकाव धर्म और चर्च की ओर बहुत जल्दी आ गया था। वे प्रचारक बनना चाहता था, लेकिन उसका उद्देश्य सिर्फ धार्मिक सेवा नहीं था। वे चर्च का उपयोग एक मंच की तरह करना चाहता था, जहां से वह लोगों पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर सके।

बटलर यूनिवर्सिटी से पढ़ाई के बाद उसने चर्च की ओर रुख कर लिया 1950 के दशक में, उसने चर्च के अंदर नस्लीय समानता का समर्थन करना शुरू किया, जो उस समय एक क्रांतिकारी विचार था। यही कारण था कि उनके अनुयायियों का दायरा बढ़ता गया।

1955 में, जिम ने “पीपल्स टेम्पल” नामक चर्च की स्थापना की। यह संगठन शुरू में मानवता, समानता और सामूहिक कल्याण के आदर्शों पर आधारित था। जिम ने समाज के सबसे कमजोर वर्ग को अपना निशाना बनाया – गरीब, अश्वेत और हाशिए पर खड़े लोग। चर्च के शुरुआती सालों में, उन्होंने मुफ्त भोजन, स्वास्थ्य सेवाएं और आश्रय देकर लोगों का विश्वास जीता। लेकिन धीरे-धीरे, उसके अंदर का तानशाह सामने आने लगा।

जोन्स खुद को भगवान का दूत और कभी-कभी सीधे ईश्वर का अवतार बताने लगा। उसने अपने अनुयायियों से उनकी पूरी संपत्ति और जीवन का समर्पण करने के लिए मना लिया।

लेकिन अजीब व्यावहार के कारण 1960 – 70 के दशक में, उसके चर्च के खिलाफ कई जांच शुरू हो गईं। उस पर बच्चों के साथ यौन शोषण, वित्तीय घोटाले और मानसिक यातना के आरोप लगे। अपनी पकड़ खोते देख, जिम ने अपने अनुयायियों के साथ गुयाना (दक्षिण अमेरिका) में एक नई बस्ती बनाने का फैसला किया। उसने गुयाना सरकार मे कुछ बड़े लोगों को ढेरों पैसे देकर अपने सभी अनुयायियों के साथ माइग्रेट होने की इजाज़त ले ली।

फिर 1974 में, उसने गुयाना के घने जंगलों में लगभग 3800 एकड़ जमीन पर “जोनस्टाउन” नामक एक समुदाय की स्थापना की गई। उस बस्ती को “सामाजिकतावादी स्वर्ग” के रूप में प्रस्तुत किया गया। जोन्स ने अपने अनुयायियों को यह यकीन दिलाया कि जोनस्टाउन एक आदर्श समाज होगा। लेकिन वहां पहुंचने के बाद, उन्हें सच्चाई का सामना करना पड़ा। घने जंगल, बुनियादी सुविधाओं की कमी, और जोन्स का तानाशाही रवैया—यह सब जोनस्टाउन को नरक जैसा बना रहा था।

जोन्स अपने अनुयायियों पर मानसिक नियंत्रण बनाए रखने के लिए कई हथकंडे अपनाए। उसने “व्हाइट नाइट्स” नामक अभ्यास शुरू किया, जिसमें सामूहिक आत्महत्या का रिहर्सल कराया जाता था। वह कहता, “अगर कभी हमारी स्वतंत्रता खतरे में पड़े, तो हम अपनी जान देकर विरोध करेंगे।”

जोन्स ने जोनस्टाउन को एक बंद कैम्प में बदल दिया। अनुयायियों की चिट्ठियां पढ़ी जाती थीं, उनके फोन कॉल्स सुनने पर रोक थी, और हर किसी की गतिविधियों पर नजर रखी जाती थी। जोन्स के आदेश का उल्लंघन करने वालों को कठोर सजा दी जाती थी। यहां तक कि उसने एक ऐसा नियम बनाया जिसके अनुसार हर जब भी कोई बच्चा वहां पैदा होता तो बाकायदा पेपर उसे जोन्स की संतान बना दिया जाता था। माता – पिता अपने बच्चों से सिर्फ कुछ ही समय के लिए केवल रात मे मिल सकते थे। उन्हें अपने ही बच्चों से दिन मे मिलने की इजाजत नहीं थी।

1978 में, पीपल्स टेम्पल के कुछ भागे हुए सदस्यों ने अमेरिकी कांग्रेस से जोनस्टाउन की जांच की मांग की। इसके बाद कांग्रेसमैन लियो रयान ने नवंबर 1978 में जोनस्टाउन का दौरा किया।

शुरुआत में, जोन्स ने रयान और पत्रकारों का स्वागत किया। उन्हें प्रभावित करने की कोशिश की, लेकिन कुछ अनुयायियों ने रयान को अपनी परेशानियों के बारे में गुप्त रूप से बता कर उनके साथ वहां से जाने की इच्छा जताई।

18 नवंबर को, जब रयान और उनकी टीम जॉनस्टाउन छोड़ने लगे, तो जोन्स के आदेश पर उनके काफिले पर हमला किया गया। रयान और चार अन्य लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई।

रयान की हत्या के बाद, जोन्स ने अपने अनुयायियों से कहा कि “शत्रु” आने वाले हैं और अब उनके पास “क्रांतिकारी आत्महत्या” के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

एक बड़े बर्तन में सायनाइड, वेलियम और फ्लेवर एड मिलाया गया। जोन्स ने इसे “आत्मसमर्पण का रास्ता” बताया। बच्चों को पहले जहर दिया गया, फिर वयस्कों ने इसे पिया। जो विरोध करता, उसे जबरदस्ती जहर दिया गया। इसके बाद जोन्स ने भी खुद को गोली मरवाकर आत्महत्या कर ली।

जब पुलिस और बचाव दल वहां पहुंचे, तो हर जगह शव बिखरे पड़े थे। पूरे क्षेत्र में सन्नाटा और खौफनाक गंध थी। इस घटना ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया।

वैसे जोन्स ने 1975 में होने वाली घटनाओं का संकेत बहुत पहले ही दे दिया था। उन्होंने सैन फ्रांसिस्को में अपने पीपल्स टेम्पल चर्च में एक धर्मोपदेश के दौरान घोषणा की, “मैं समाजवाद लाने के लिए मरने को तैयार हूं क्योंकि मुझे समाजवाद पसंद है। अगर मैं ऐसा करता हूं तो मैं अपने साथ एक हजार लोगों को ले जाऊंगा।” दो साल बाद, 18 नवंबर, 1978 को, ये शब्द तब सच हुए जब जोन्सटाउन नरसंहार, अमेरिकी इतिहास में सबसे घातक सामूहिक हत्याओं में से एक था, जिसमें 900 से अधिक लोगों की जान चली गई, उनमें से एक तिहाई बच्चे थे।

जोनस्टाउन नरसंहार हमें यह सिखाता है कि अंधविश्वास और अति-भक्ति किस तरह विनाशकारी हो सकती है। किसी भी नेता या विचारधारा पर आँख मूँदकर विश्वास करना घातक हो सकता है। यह घटना उन मासूम लोगों की त्रासदी है, जिन्होंने बेहतर जीवन का सपना देखा और अंत में अपना सब कुछ खो दिया।

आज भी जोनस्टाउन के अवशेष गुयाना के जंगलों में हैं, मानो उस त्रासदी की गूंज अभी भी सुनाई दे रही हो। इतिहास में यह घटना एक चेतावनी के रूप में दर्ज है कि हमें कभी भी अपनी सोच और स्वतंत्रता को किसी के अधीन नहीं करना चाहिए।

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