पाकिस्तान और International Monetary Fund के बीच का रिश्ता दशकों से चला आ रहा है, जिसमें पाकिस्तान ने अब तक 23 बार IMF से Bailout packages प्राप्त किए हैं। हाल ही में, मई 2025 में, IMF ने पाकिस्तान को $1.023 बिलियन की दूसरी किश्त जारी की है। यह सहायता ऐसे समय में दी गई है जब भारत ने पाकिस्तान पर आतंकवाद के समर्थन का आरोप लगाया है और इसके चलते सिंधु जल संधि को निलंबित रखा जायेगा।
भारत सरकार पहले ही IMF की इस सहायता पर चिंता व्यक्त की है, यह आशंका जताते हुए कि यह धनराशि आतंकवाद के समर्थन में उपयोग हो सकती है।
IMF की ओर से पाकिस्तान को बार-बार दी जाने वाली वित्तीय सहायता पर सवाल उठते रहे हैं, विशेषकर जब यह सहायता आतंकवाद के समर्थन के आरोपों के बीच दी जाती है। IMF की शर्तें अक्सर आर्थिक सुधारों पर केंद्रित होती हैं, लेकिन आतंकवाद के मुद्दे पर स्पष्ट रुख की कमी देखी गई है।
भारत जैसे देशों के लिए यह चिंता का विषय है कि IMF की सहायता कहीं आतंकवादी गतिविधियों को बल न दे। इसलिए, यह आवश्यक है कि IMF जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं अपनी सहायता नीति में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करें, ताकि उनकी सहायता का उपयोग शांति और स्थिरता के लिए हो, न कि आतंकवाद के समर्थन में।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को चाहिए कि वह पाकिस्तान को दी जाने वाली वित्तीय सहायता पर कड़ी निगरानी रखे और यह सुनिश्चित करे कि यह सहायता आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में उपयोग हो, न कि उसके समर्थन में। IMF को भी अपनी नीतियों में संशोधन कर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी सहायता का उपयोग सकारात्मक और शांति पूर्ण उद्देश्यों के लिए हो।
जब भी कोई देश दिवालिया होने की कगार पर होता है, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) उस देश को आर्थिक मदद देने वाला मसीहा बनकर सामने आता है। लेकिन जब यही संस्था बार-बार पाकिस्तान जैसे देश को बिना नैतिक जिम्मेदारी के फंड देती है, तो सवाल उठता है कि क्या IMF का उद्देश्य केवल आर्थिक स्थिरता है, या यह संस्था अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और दोगली नीति का उपकरण बन चुकी है?
पाकिस्तान ने अब तक 23 बार IMF से बेलआउट पैकेज लिया है। हाल ही में, मई 2025 में, IMF ने पाकिस्तान को फिर से $1.023 बिलियन की दूसरी किश्त दे दी, यह जानते हुए भी कि यह वही देश है जो आतंकवाद का पालन-पोषण करता है। यह वह देश है जो दुनिया के सामने खुद को ‘आर्थिक रूप से पीड़ित’ बताता है, लेकिन अंदरखाने आतंकवादी संगठनों को पैसे, पनाह और प्रचार तीनों देता है।
जब भारत बार-बार विश्व समुदाय को पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों और हाफिज सईद जैसे लोगों को खुला संरक्षण देने के बारे में बताता रहा है, तब IMF को किस नैतिकता के आधार पर यह फंड देना चाहिए? क्या IMF को नहीं पता कि पाकिस्तान के सरकारी बजट में से कई करोड़ रुपये लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और तालिबान जैसे संगठनों तक जाते हैं?
क्या IMF को नहीं पता कि भारत में पुलवामा, उरी और मुंबई हमले के पीछे पाकिस्तान की जमीन से आए आतंकी थे? क्या IMF ने कभी इन मुद्दों को अपनी शर्तों में शामिल किया? जवाब है…नहीं। क्योंकि IMF का एजेंडा आर्थिक से ज्यादा राजनीतिक होता जा रहा है।
IMF ग्रीस, श्रीलंका और लेबनान जैसे देशों को आर्थिक मदद देते वक्त सख्त शर्तें रखता है, जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य में कटौती, टैक्स बढ़ाना, और सरकारी सब्सिडी हटाना। लेकिन पाकिस्तान को फंड देते वक्त IMF की नीति में एक अजीब सी ‘नरमी’ और ‘सॉफ्ट कॉर्नर’ देखने को मिलती है।
इसका कारण क्या है? क्या पाकिस्तान की भूमिका अफगानिस्तान में अमेरिका की सुविधा के लिए थी, इसलिए आज तक उसे छूट दी जा रही है? अगर IMF और उसकी सदस्य शक्तियां आतंक के खिलाफ सच में गंभीर होतीं, तो पाकिस्तान IMF के लायक ही नहीं होता।
IMF खुद को “विश्व की आर्थिक स्थिरता के संरक्षक” के रूप में पेश करता है, लेकिन अगर वह बार-बार आतंकवाद समर्थक देश को बिना ज़िम्मेदारी फंड देता रहे, तो वह किसी भी तरह से नैतिक, निष्पक्ष या जिम्मेदार संस्था नहीं रह जाता। वह सिर्फ एक पैसे का ATM बन जाता है, जहां शक्तिशाली देशों की मर्जी चलती है और कमजोर या पीड़ित देश केवल देख सकते हैं।
IMF का पाकिस्तान को बार-बार बेलआउट देना न सिर्फ उसकी वैधता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि उसे एक अंतर्राष्ट्रीय पाखंडी संस्था बना देता है। यह तय समय आ गया है कि IMF जैसी संस्थाओं को केवल आर्थिक नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यांकन भी करना चाहिए। नहीं तो, वह दिन दूर नहीं जब आतंक को पालने वाले देश दुनिया की शांति के सबसे बड़े खतरे बन जाएंगे और उन्हें बचाने वाला कोई और नहीं, बल्कि खुद IMF होगा।
अगर IMF को अपनी प्रतिष्ठा बचानी है, तो उसे पाकिस्तान जैसी काली करतूतों वाली सरकारों को आर्थिक मदद देने से पहले उनके आतंक संबंधी रिकॉर्ड पर भी नजर डालनी होगी। वरना, IMF खुद इतिहास में आतंकवाद के एक अप्रत्यक्ष सहयोगी के रूप में याद किया जाएगा।
आर्थिक संकट में घिरा कोई भी देश यदि IMF की मदद चाहता है, तो उसे सख्त आर्थिक शर्तों का पालन करना होता है। लेकिन जब बात पाकिस्तान की आती है, एक ऐसा देश जो दशकों से आतंकी संगठनों को राजनीतिक संरक्षण, आर्थिक मदद और सैन्य ट्रेनिंग देता आ रहा उसके लिए बार-बार IMF का अपनी तिजोरी खोल देना कई सवाल उठाता है।