“भारत मे प्रजातंत्र है। हर व्यक्ति को अपने विचारों को व्यक्त करने की खुली आजादी है। कोई भी व्यक्ति, चाहे वो किसी भी धर्म, संप्रदाय या स्थान से तालुक रखता हो, उसे पूरा हक है कि वो अपनी आवाज किसी के समर्थन या विरोध मे पूरी बुलंदी के साथ उठा सकता है। खुले विचारों का भारत मे खुली बाहों से स्वागत किया जाता है।” ये सारी बातें सुनने मे या पढ़ने मे बहुत ही खूबसूरत या गौरवान्वित करने वाली मालूम होती है, जिन्हे सुनकर किसी भी देशवासी की छाती चौड़ी हो जाए। हमारे संविधान ने भी “अभिव्यक्ति की आजादी” को एक खास अहमियत दी है। आर्टिकल 19(1)(A) के अनुसार किसी भी देशवासी को अपने विचार किसी भी माध्यम से व्यक्त करने की पूरी-पूरी छूट है। भाषण, लेखन, चित्र, फ़िल्म, बैनर इत्यादि माध्यम हैं जिनके जरिए वो ऐसा कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2004 मे हमारे राष्ट्रध्वज यानि तिरंगे को लहराना भी इस लिस्ट मे शामिल किया। सूचना का अधिकार भी है जिसके कारण हम विभिन्न स्त्रोतों द्वारा विभिन्न जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही संवाद और विज्ञापन करने की आजादी भी है। इन सब के आधार पर हम ये कह सकते हैं की देश की जनता को वो सारे अधिकार दिए गए हैं जिनके कारण वो देश के शक्ति मंच पर सबसे ऊंचे स्थान पर आ जाती है। भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र यू ही नहीं कहा जाता।
मगर क्या ये सारी चीजें वाकई अमल मे हैं?
क्या वाकई जनता का वही दर्जा है जो हमारे संविधान मे लिखा है? या ये सब सिर्फ एक छलावा है, एक लीपा पोती है। आइए जरा इस तरफ भी गौर करके देखते हैं। आए दिन हमारे देश मे लिन्चिंग या मॉब किलिंग जैसी घटनाएं सुनने को मिलती हैं, जिन मामलों मे अक्सर कुछ कहने या किसी संवेदनशील विषय पर अपने विचार व्यक्त करने पर आक्रोश ही इसकी वजह रहती है। फिल्मों के सेंसर हो जाने के अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं, उड़ता पंजाब तो आपको याद ही होगी। चाहे फिल्मों का बॉयकाट हो या डायरेक्टरों से हाथापाई, कहीं भी हम पीछे नहीं हैं। और बात सिर्फ हाथापाई पर ही नहीं रुकती, रेड, पथराव, कालिख, अपहरण, रेप थ्रेट, और जैसा हमने पहले भी कहा, लिन्चिंग तक भी मामला पहुँच जाता है। और इन सब पर कानून व्यवस्था की पकड़ कितनी मजबूत है, इसका अंदाजा आप सिर्फ इस बात से ही लगा सकते है बीते वर्ष लिन्चिंग और मॉब किलिंग के केसेस मे से 75% केसेस मे वजह का ही पता नहीं चल पाया है। आँकड़े डराने वाले तो हैं ही, साथ ही सोच मे डालने वाले भी हैं। फ्री प्रेस की तो क्या ही बात की जाए। 2022 मे भारत यूं भी फ्री प्रेस इंडेक्स की रैंकिंग मे 150/180 रैंक पर था। मीडिया की नाक मे तो नेता से लेकर जनता, हर किसी को नकेल कसने की आदत है। आलम ये हो चला की जहां पत्रकारिता का मूलमंत्र होना चाहिए था सच को सामने लाना, वही मीडिया आज सच को छुपाने पर अमादा रहती है। मशहूर हॉलिवुड अभिनेता डेंजेल वाशिंगटन कहते हैं “अगर आप समाचार नहीं पढ़ते हैं, तो आप अनइन्फोर्म्ड हैं। अगर आप समाचार पढ़ते हैं, तो आप मिसइन्फोर्म्ड हैं।” ये अपने आप मे एक शर्मसार कर देने वाली टिप्पणी है।
तो सोचने वाली बात यह है कि क्या हमारे देश की प्रजातान्त्रिक बुनियाद मे “अभिव्यक्ति की आजादी” की मजबूती है भी, या हम यूही हर तरफ इसका बखान करते रहते हैं। सच्चाई तो यह है कि हम स्वयं भी इन चीजों मे शामिल हैं, क्यूंकि हम इन सब मामलों का उतना विरोध नहीं करते जितना हम चीन और पाकिस्तान जैसी विदेशी ताकतों का करते हैं। जब भी हमे व्यक्तिगत तौर पर कोई बात बुरी लगती है, तब हम अपने सुविधानुसार बड़े ही आराम से अभिव्यक्ति की आजादी को खिड़की के बाहर फेक देते हैं। अमेरिकी कॉमेडियन रिकी गेरविस ये कहते हैं की “हर कोई अभिव्यक्ति की आजादी चाहता है, जब तक कि वे कुछ ऐसा न सुन लें जो वे सुनना नहीं चाहते।”
इन सारी बातों का एक ही सार है की हमें इसके विषय मे सिर्फ बातों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उसे अमल मे भी लाना चाहिए। और इसकी बहुत अधिक आवश्यकता है वरना बहुत जल्द हमारे हालात भी सोमालिया या सीरिया जैसे हो जाएंगे।