आज़ादी की लड़ाई मे शामिल बड़े बड़े नामों के बारे मे हम सब जानते हैं हालांकि, कई स्वतंत्रता सेनानी ऐसे भी रहे जिन्होंने स्वतंत्रता के संघर्ष में बहुत मूल्यवान आहुति दी, लेकिन इनके बारे में ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं। उन्हीं ढेरों अज्ञात नायकों मे से एक थे गंगू मेहतर। उनका का असली नाम गंगाराम था। वे समाज के निम्न वर्ग से आते थे और पेशे से एक मेहतर थे, जो साफ-सफाई का काम करते थे। छुआ-छूत की प्रताड़ना से बचने के लिए गंगू परिवार संग कानपुर के चुंगीगंज में बस गए। गंगू को पहलवानी करना बहुत पसंद था।
उन्होंने 1857 की क्रांति में सक्रिय रूप से भाग लिया और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। उस समय, समाज में निम्न वर्ग के लोगों को अक्सर नज़रअंदाज किया जाता था, लेकिन गंगू मेहतर ने अपनी वीरता और संकल्प के माध्यम से यह साबित कर दिया कि स्वतंत्रता के संघर्ष में सभी वर्गों का समान महत्व है। वो नाना साहब पेशवा के सैनिक दस्ते का हिस्सा थे। वो दस्ते के सबसे बेहतरीन लड़ाकों में से एक थे इसलिए उन्हे सूबेदार का पद भी मिल गया।
1857 की क्रांति के दौरान, गंगू मेहतर ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने वाले क्रांतिकारियों का समर्थन किया और उनके साथ मिलकर संघर्ष किया। उन्होंने अपने साधनों और संसाधनों का उपयोग करके विद्रोहियों की सहायता की। अंग्रेजों की क्रूरता और अत्याचार के बावजूद, गंगू मेहतर ने हार नहीं मानी और लगातार स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते रहे। कहा जाता है कि गंगू ने अकेले ही 200 से भी ज्यादा अंग्रेज सैनिकों को मौत की नींद सुलाया था।
गंगू मेहतर की वीरता और योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने समाज के निम्न वर्ग के लोगों को यह सिखाया कि स्वतंत्रता और न्याय के लिए लड़ने का अधिकार सभी को है, चाहे उनकी सामाजिक स्थिति कुछ भी हो। गंगू ने अंतिम समय तक ब्रिटिश हुकूमतों को ललकारा और कहा कि, “भारत की माटी में हमारे पूर्वजों का खून व कुर्बानी की गंध है। एक दिन यह मुल्क आजाद होगा।” कानपुर में 8 सितंबर 1859 को उन्हें फांसी दे दी गई। गंगू मेहतर का जीवन और उनकी संघर्ष गाथा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी कुर्बानी और देशभक्ति की भावना को हमारा सलाम।