तमिलनाडु की बड़ी पार्टी अन्नाद्रमुक ने भारतीय जनता पार्टी के साथ अपने चार साल पुराने गठबंधन को समाप्त करने का ऐलान कर दिया है। साथ ही ये घोषणा की कि वह 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए एक अलग मोर्चे का नेतृत्व करेगी। ये बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका है। AIADMK की ओर से कहा गया कि राज्य में BJP के नेता पिछले एक साल से AIADMK के पूर्व नेताओं, पार्टी महासचिव एडप्पादी के पलानीस्वामी और कार्यकर्ताओं के बारे में गलत टिप्पणी कर रहे थे। राज्य के नेता से इनका इशारा अन्नामलाई की तरफ था।तमिलनाडु में BJP प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई के हालिया बयानों से AIADMK नाराज़ थी और गठबंधन तोड़े जाने की बात पहले ही कह दी गई थी। लेकिन हैरानी की बात ये भी है कि गठबंधन तोड़ने के फैसले के बावजूद भाजपा तमिलनाडु पार्टी प्रमुख के अन्नामलाई का अभी भी मजबूती से समर्थन कर रही है।
क्या रहा है दोनों पार्टियों का साथ मे इतिहास
ख़ैर ये पहली बार नहीं जब दोनों पार्टियों का गठबंधन टूटा है दोनों पार्टी बार बार साथ आती रही हैं और अलग होती रहीं है। चलिए इनके इतिहास मे एक नजर डालते हैं। बात है 1998 की अन्नाद्रमुक और भाजपा ने आम चुनाव में साझेदारी की और तमिलनाडु की 39 में से 30 सीटों पर जीत हासिल की। लेकिन एक साल बाद ही गठबंधन तनावपूर्ण हो गया। वजह थी जयललिता की प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से नाराज़गी…क्योंकि अटल जी ने उनके खिलाफ मामले वापस लेने या तमिलनाडु में डीएमके सरकार को बर्खास्त करने से इनकार कर दिया था। फिर अप्रैल 1999 में, सुब्रमण्यम स्वामी ने दिल्ली में एक टी – पार्टी की मेजबानी की, जहाँ जयललिता सोनिया गांधी के बगल में बैठीं, उनका हाथ पकड़ा और सोनिया को एक पुराना दोस्त कहा”। इस घटना के तुरंत बाद दोनों पार्टियों का गठबंधन टूट गया और AIADMK ने कॉंग्रेस से हाथ मिला लिया। बीजेपी भी पीछे नहीं हटी और उसने अपनी Ideology के बहुत विपरित जाते हुए डीएमके से हाथ मिलाया। 2003 तक दोनों साथ रहे फिर DMK ने गठबंधन छोड़ दिया। भाजपा ने उसके बाद फिर कभी DMK के साथ गठबंधन नहीं किया।
बीजेपी ने 2004 में अन्नाद्रमुक के साथ फिर साझेदारी की तब से लेकर 2016 तक, भाजपा लगभग हर चुनाव में अन्नाद्रमुक के पास पहुंची, लेकिन उसे तमिलनाडु मे कभी कोई खास सफलता नही मिली। क्यूंकि वहां बीजेपी की हिंदूवादी राजनीति से इतर सिर्फ द्रविड़ों की राजनीति चलती है।
फिर 2016 के अंत में, जयललिता, जो उस समय मुख्यमंत्री थीं, उनकी मृत्यु हो गई। अन्नाद्रमुकगुटों में बंट गये और राज्य ने एक वर्ष की अवधि में तीन मुख्यमंत्री देखे। तब भाजपा ने ईपीएस और ओ पन्नीरसेल्वम के नेतृत्व वाले गुटों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाई।
2017 मे थे BJP – DMK के गठबंधन के चर्चे
2017 मे बीमार चल रहे डीएमके के संरक्षक एम करुणानिधि से मिलने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अचानक यात्रा ने उस समय राजनीतिक हलचलें बढ़ा दी थी। 2004 के बाद यह पहली बार था कि दोनों पार्टियों के बीच इस हद तक सौहार्दपूर्ण व्यवहार देखा गया हो। लेकिन तब पीएम मोदी कोई राजनीतिक दांव खेलने नहीं गये थे।
गठबंधन टूटने से दोनों पार्टी का नुकसान
फिलहाल जैसी स्थिति है भाजपा की हार लगभग तय है। अगर वह एआईएडीएमके के साथ बनी रहती है तो वह हमेशा जूनियर पार्टनर रहेगी और अगर वह अपने दम पर बाहर जाती है तो उसे एक सीट भी नहीं मिलेगी। लेकिन गठबंधन टूटने से घाटा AIADMK का भी है, क्यूंकि वो I. N. D. I. A मे भी नही मिलना चाहेगी और अकेले दम पर उसे लोकसभा मे सीट मिलना ना के बराबर ही मुमकिन है।