International monetary fund और World Bank दुनिया की सबसे अहम आर्थिक संस्थाएं हैं, जो सभी देशों को आर्थिक मदद और स्थिरता देने के लिए बनाई गई थीं। अमेरिका इन दोनों में सबसे बड़ा भागीदार है और इसका इन संगठनों पर गहरा प्रभाव है। हाल ही में ऐसी खबरें आई हैं कि अमेरिका इन संस्थाओं से बाहर निकलने पर विचार कर रहा है। अगर ऐसा हुआ तो इसका असर सिर्फ अमेरिका पर ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। आइए समझते हैं कि यह फैसला क्यों अहम है और इससे क्या बदलाव आ सकते हैं।
IMF और विश्व बैंक की स्थापना 1944 में हुई थी। इनका मकसद था कि दुनिया की अर्थव्यवस्था को स्थिर रखा जाए और ज़रूरतमंद देशों को वित्तीय सहायता दी जाए। IMF आर्थिक संकट में फंसे देशों को कर्ज देता है ताकि वे अपनी स्थिति सुधार सकें। विश्व बैंक विकासशील देशों को बुनियादी ढांचे (सड़क, बिजली, पानी) और शिक्षा जैसी चीजों के लिए कर्ज देता है।
अमेरिका इन संस्थाओं में सबसे बड़ा डोनर है और उसके पास सबसे ज्यादा मतदान voting power भी है। इससे अमेरिका इन संगठनों की नीतियों को तय करने में बड़ी भूमिका निभाता है।
अगर अमेरिका बाहर निकलता है तो क्या होगा?
अमेरिका की फंडिंग हटने से IMF और विश्व बैंक की आर्थिक मदद देने की क्षमता कमजोर हो सकती है। इसका असर विकासशील देशों पर ज्यादा पड़ेगा।
अभी अमेरिका इन संस्थाओं के ज़रिए दुनियाभर में अपनी आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ा सकता है। अगर वह बाहर निकला, तो चीन और अन्य देश इस जगह को भर सकते हैं और अपनी नीतियों को आगे बढ़ा सकते हैं।
चीन पहले ही एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) जैसे संगठन बना चुका है। अगर अमेरिका IMF और विश्व बैंक से बाहर हुआ, तो ऐसे संस्थानों की ताकत बढ़ सकती है।
अमेरिकी कंपनियों पर असर अमेरिकी कंपनियां, जो विश्व बैंक की मदद से चलने वाली परियोजनाओं में काम करती हैं, उनके लिए मौके कम हो सकते हैं।
कुछ देश लंबे समय से कह रहे हैं कि इन संगठनों में सुधार होना चाहिए, ताकि वे ज्यादा निष्पक्ष और असरदार बन सकें। भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी संयुक्त राष्ट्र, IMF और विश्व बैंक में सुधार की मांग की है ताकि ये संस्थाएं सभी देशों के हितों को सही तरीके से देख सकें।
अगर अमेरिका IMF और विश्व बैंक से बाहर निकलता है, तो यह एक बड़ा बदलाव होगा। इससे इन संगठनों की ताकत कम हो सकती है और चीन जैसे देशों का प्रभाव बढ़ सकता है। साथ ही, कई विकासशील देशों के लिए आर्थिक मदद पाना मुश्किल हो सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका इस पर क्या फैसला लेता है और बाकी दुनिया इस स्थिति से कैसे निपटती है।