आज से भारत का नववर्ष प्रारम्भ हो चुका है। भारत में नववर्ष का स्वागत केवल एक तिथि बदलने का उत्सव नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक परंपरा और प्राकृतिक चक्र का प्रतिबिंब होता है। यहाँ विभिन्न समुदाय और क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से नववर्ष मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, जिसे विक्रम संवत का प्रथम दिन माना जाता है, भारत के पारंपरिक नववर्ष की शुरुआत का संकेत देता है। यह वही समय है जब प्रकृति भी नवीनता की ओर अग्रसर होती है…बसंत ऋतु अपने चरम पर होती है, पेड़-पौधे नई कोंपलें निकालते हैं, और वातावरण में उत्साह का संचार होता है।
लेकिन जब दुनिया ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 1 जनवरी को नया साल मनाती है, तब सवाल उठता है…क्या भारतीय नववर्ष अधिक तार्किक और वैज्ञानिक रूप से उपयुक्त है? क्या विक्रम संवत वास्तव में श्रेष्ठ है? इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए हमें इसके ऐतिहासिक, खगोलीय, और सांस्कृतिक पहलुओं को समझना होगा।
मानव सभ्यता के विकास के साथ ही समय को मापने की आवश्यकता महसूस हुई। इसी क्रम में विभिन्न संस्कृतियों ने अपने-अपने कैलेंडर विकसित किए। भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे पुराना और प्रमाणिक रूप से व्यवस्थित पंचांग विक्रम संवत ही माना जाता है। यह केवल एक कैलेंडर नहीं बल्कि भारत की सांस्कृतिक, खगोलीय और ऐतिहासिक परंपराओं का जीवंत प्रमाण है। लेकिन प्रश्न उठता है विक्रम संवत श्रेष्ठ क्यों है? क्या यह केवल परंपरा का विषय है, या इसके पीछे तार्किक और वैज्ञानिक आधार भी है?
विक्रम संवत की स्थापना महान सम्राट विक्रमादित्य द्वारा 57 ईसा पूर्व में की गई थी। यह संवत उन उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य की विजय और शासन से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने विदेशी आक्रांताओं को हराकर भारत में एक संगठित और सुव्यवस्थित शासन की नींव रखी। यह कालखंड भारत के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक बन गया और इसे पंचांग में शामिल कर लिया गया।
विक्रम संवत की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सौर और चंद्र दोनों गणनाओं का उपयोग करता है। यह भारतीय ऋतुचक्र और कृषि चक्र से पूरी तरह मेल खाता है, जिससे यह व्यावहारिक और वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो जाता है।
भारतीय खगोलशास्त्र में पंचांग की गणना अत्यंत सटीक होती है। विक्रम संवत में अमावस्या और पूर्णिमा को ध्यान में रखकर मासों का निर्धारण किया जाता है, जिससे यह खगोलीय घटनाओं के अनुकूल रहता है।
चंद्र कैलेंडर में 354 दिनों का वर्ष होता है, जबकि सौर वर्ष 365 दिन का होता है। विक्रम संवत में उत्तरायण और दक्षिणायन का स्पष्ट उल्लेख होता है, जो पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर गति के अनुरूप है। पश्चिमी ग्रेगोरियन कैलेंडर में यह संतुलन नहीं मिलता, जिससे वहां तिथियों में बदलाव होते रहते हैं।
सभी प्रमुख भारतीय त्योहार विक्रम संवत पर आधारित हैं। दीवाली, होली, मकर संक्रांति, नवरात्रि, आदि सभी त्योहारों की तिथियाँ इसी पंचांग से तय होती हैं।
भारतीय समाज कृषि प्रधान है, और विक्रम संवत का पंचांग पूरी तरह से कृषि चक्र से मेल खाता है। वर्षा, फसल चक्र, और ऋतुओं का सटीक आकलन इसमें मिलता है।
विक्रम संवत भारतीय संस्कृति और परंपराओं का संवाहक है। इसके महीने, तिथियाँ, और नाम भारतीय भाषा और धर्म से गहरे जुड़े हुए हैं, जबकि ग्रेगोरियन कैलेंडर पश्चिमी मान्यताओं पर आधारित है।
बाकी कैलेंडर बनाम विक्रम संवत
ग्रेगोरियन कैलेंडर केवल सौर गणना पर आधारित है और इसका निर्माण ईसाई धार्मिक मान्यताओं के आधार पर हुआ था। इसकी शुरुआत 1582 ईस्वी में पोप ग्रेगरी XIII ने की थी, और यह पूरी तरह से पश्चिमी संस्कृति से जुड़ा हुआ है। दूसरी ओर, विक्रम संवत खगोलीय गणनाओं पर आधारित है और हजारों वर्षों से भारतीय सभ्यता के अनुरूप चला आ रहा है।
हिजरी कैलेंडर केवल चंद्र गणना पर आधारित है और इसमें 354 दिनों का वर्ष होता है। इससे इस्लामी महीनों की तिथियाँ हर साल बदलती रहती हैं। इसके विपरीत, विक्रम संवत में सौर और चंद्र दोनों गणनाओं को संतुलित किया गया है, जिससे यह अधिक व्यावहारिक बनता है।
यानी विक्रम संवत श्रेष्ठ है… इसकी खगोलीय गणना अधिक वैज्ञानिक और सटीक है। कृषि और ऋतुओं के अनुरूप रहता है, जिससे यह व्यावहारिक बनता है। भारतीय परंपराओं, त्योहारों और संस्कृति के अनुकूल है। अन्य कैलेंडरों की तुलना में अधिक संतुलित और तार्किक है।
इसलिए, विक्रम संवत सिर्फ एक पंचांग नहीं, बल्कि भारतीय ज्ञान-विज्ञान और सभ्यता की महान धरोहर है। यह केवल तिथियों का हिसाब रखने का माध्यम नहीं, बल्कि भारत की खगोलीय, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक चेतना का प्रतीक है।