भाजपा की गठबंधन सरकार एनडीए “वक्फ बिल 1995” में बदलाव करने वाली है। इसके बदलाव के लिए एनडीए गुरुवार को लोकसभा में बदलाव वाले वक्फ बिल को पेश करने की योजना बना रही है। इन बदलावों का उद्देश्य वक्फ बोर्ड की पारदर्शिता और कार्यप्रणाली में सुधार लाना है। साथ ही इसकी निकायों (बॉडीज) में मुस्लिम और गैर-मुस्लिम महिलाओं को शामिल करना भी हैं। सूत्रों के मुताबिक, यह पहल वास्तव में मुस्लिम समुदाय के भीतरी मांगों के जवाब में की जा रही है।
हाल ही में, कैबिनेट ने इस बिल की समीक्षा की। उस समीक्षा में कैबिनेट ने बिल में 40 बदलाव करने का निर्णय लिया हैं। जिसमें वक्फ (संशोधन) बिल, वक्फ बोर्डों के वर्तमान वाले बिल के कई धाराओं को निरस्त कर देगा। साथ ही इस बदलाव में 1995 के मुख्य बिल में इस्तेमाल हुआ ‘वक्फ’ शब्द को ‘एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास’ से बदल दिया जाएगा। इन संशोधनों का मुख्य उद्देश्य वक्फ बोर्ड के मनमाने अधिकार को कम करना है।
क्या होगा नए बिल में?
संशोधन बिल में जिला कलेक्टरों को वक्फ बोर्ड और सरकार के बीच विवादों को सुलझाने का अधिकार मिलेगा। इसके अलावा अगर ऐसी स्थिति आई, जब यह न पता हो कि कोई संपत्ति सरकारी है या नहीं, तो ऐसी स्थिति में कलेक्टर खुद जांच करके अपने निष्कर्षों की रिपोर्ट राज्य सरकार को देंगे। इसके अलावा जिला कलेक्टर वक्फ के रूप में किसी भी संपत्ति पंजीकरण के आवेदनों की वैधता की जांच करके, बोर्ड को अपनी रिपोर्ट देंगे।
इसके अलावा नए संशोधन बिल में वक्फ बोर्ड का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) सिर्फ मुस्लिम समुदाय से ही हो, इस अनिवार्यता को खत्म कर दिया जाएगा। नए बिल लागू होने के बाद किसी भी समुदाय का इंसान बोर्ड का सीईओ बन सकेगा। इसके अलावा वक्फ बोर्ड में दो महिलाओं का होना भी अब अनिवार्य कर दिया जाएगा। साथ ही संशोधन बिल में वक्फ बोर्डों द्वारा पहले ही दावा की गई संपत्तियों का नए सिरे से सत्यापन किया जाएगा, ताकि आने वाले समय में किसी भी किस्म के विवादों के प्रबंधन और दुरुपयोग से बचा जा सके।
क्या है वक्फ एक्ट 1995?
वक्फ एक्ट 1995 वह एक्ट है, जो एक वाकिफ द्वारा “औकाफ” को नियंत्रित करता है। औकाफ वह संपत्तियां होती हैं, जिन्हें वक्फ के रूप में दान दिया जाता है। वहीं वाकिफ वह व्यक्ति होता है, जो उस संपत्ति को मुस्लिम कानून के अनुसार धार्मिक और पवित्र उद्देश्यों के लिए दान करने में जिम्मेदार होता है। मूल रूप से यह बिल पहली बार 1954 में पेश किया गया था। वर्ष 2013 में यूपीए सरकार ने इस बिल में संशोधन करके वक्फ बोर्डों को और व्यापक अधिकार प्रदान कर दिए थे। इसके बाद ही बोर्ड मनमानी रूप से निर्णय लेने लगा था।
कैबिनेट ने क्यों लिया बदलाव करने का निर्णय?
बिल में यह कहा गया है कि, अपनी मौजूदा शक्तियों की वजह से वक्फ बोर्ड अब भारतीय सशस्त्र बलों और रेलवे के बाद तीसरा सबसे बड़े भूस्वामी (जमींदार) हो गया हैं। साथ ही साल 2009 के बाद से बोर्ड के पास जो भूमि है, वह दोगुनी हो गई है।
बिल में यह भी उल्लेख किया गया है कि, वक्फ बोर्डों को संपत्तियों के पंजीकरण में बिना किसी सीमा का अधिकार दिए गए हैं। इस अधिकार का बोर्ड दुरुपयोग करने लगा है। इसी को देखते हुए, कैबिनेट ने मौजूदा बिल में बदलाव करने का सोचा है।