आर्थिक सर्वेक्षण (सर्वे) 2024 ने भारतीयों में बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की ओर इशारा किया है और सुझाव दिया है कि इस क्षेत्र में निवेश करने से लाभ में वृद्धि होने की संभावना है। सर्वे के मुताबिक, भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल एक्ट, 2017 के कार्यान्वयन में सरकार द्वारा किए जाने वाले निवेश पर अनुमानित रिटर्न 6.5 गुना तक का होगा।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सर्वे प्रस्तुत करते हुए कहा कि, मानसिक बीमारियों से सबसे प्रभावित 25-44 वर्ष की आयु के व्यक्ति होते हैं। जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है और उनकी क्षमता में बाधा आती है। सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि, मानसिक स्वास्थ्य किसी व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य की तुलना में उसकी उत्पादकता को अधिक प्रभावित करता है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएमएचएस) 2015-16 के आंकड़ों को दर्शाते हुए सर्वेक्षण में कहा गया है कि, भारत में 10.6 प्रतिशत वयस्क मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं।
इसके अलावा एनएमएचएस के अनुसार, मानसिक बीमारी होने की संभावना ग्रामीण क्षेत्रों (6.9 प्रतिशत) और शहरी गैर-मेट्रो क्षेत्रों (4.3 प्रतिशत) की तुलना में शहरी मेट्रो क्षेत्रों (13.5 प्रतिशत) में अधिक होती है। सर्वे में कहा गया है कि, कोविड-19 महामारी के बाद किशोरों में खराब मानसिक स्वास्थ्य की व्यापकता और बढ़ गई है। सर्वे के मुताबिक, 11 प्रतिशत छात्रों को चिंता महसूस होती हैं, 14 प्रतिशत को अत्यधिक भावना महसूस होती हैं, वहीं 43 प्रतिशत को अपने मनोदशा में उतार-चढ़ाव महसूस होता हैं।
आर्थिक सर्वे ने इस बात पर जोर दिया है कि, मानसिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याएं जीवन की गुणवत्ता पर असर डालती हैं। अनुपस्थिति, उत्पादकता में कमी और स्वास्थ्य सेवा में लगने वाली लागत में वृद्धि, यह सब भारी आर्थिक नुकसान का कारण बनती हैं। हालांकि इसको देखते हुए, भारत ने मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी नीति के विकास में प्रगति की है, लेकिन सर्वे के मुताबिक नीति में मौजूदा कमियों को दूर करने और उसकी प्रभावशीलता में सुधार लाने के लिए उचित कार्यान्वयन अभी भी जरूरी है।
इसके अलावा सर्वे रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि, बच्चों और किशोरों की मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं में हो रही वृद्धि उनके अत्यधिक इंटरनेट और सोशल मीडिया के उपयोग से भी हो रही हैं। 2021 में ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ द्वारा किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि, बच्चें सोते समय भी स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं जिस वजह से 37.2 प्रतिशत बच्चों की एकाग्रता में कमी आ गई हैं। मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रहे इंसान की किसी भी गतिविधि में रुचि नहीं रहती है, यहां तक कि वह अपना काम भी सही से करने में असफल रहता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट ने, भारत में होने वाली मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं के कारण 2012-2030 के बीच 1 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान होने का अनुमान लगाया है।
इन सब को देखते हुए आर्थिक सर्वे रिपोर्ट 2024 के निष्कर्ष में यह निकला है कि, भारत को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से प्रभावित ढंग से निपटने के लिए और समाज पर आर्थिक और सामाजिक प्रभावों को कम करने के लिए, अपने दृष्टिकोण में बदलाव करने और बेहतर जागरूकता लाने की आवश्यकता है।