भारत में बौद्ध धर्म या बौद्ध मत के अनुयायियों के लिए बुद्ध पूर्णिमा एक प्रमुख त्यौहार है। इसी दिन महात्मा बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति और महापरिनिर्वाण हुआ था। यह दिन बौद्ध अनुयायियों के लिए अत्यंत पावन और महत्व का दिन माना जाता है।
गौतम बुद्ध, जिनका मूल नाम सिद्धार्थ गौतम था, का जन्म 563 या 480 BCE में हुआ था। इनके पिता का नाम शुद्धोधन और माता का नाम मायादेवी था। प्रचलित कहानियों के मुताबिक जन्म के सात दिन बाद ही उनकी माता का निधन हो गया था जिसके बाद उनका पालन पोषण उनकी माता की छोटी बहन गौतमी ने किया था। उनके जन्म के बाद एक साधु ने ये भविष्यवाणी हो गई थी कि सिद्धार्थ यत तो एक महान राजा बनेंगे या एक महान साधु।
इस भविष्यवाणी से राजा चिंतित हो गए। सिद्धार्थ संन्यास का मार्ग न चुने इसलिए उनके पिता ने उनके लिए सभी प्रकार की सुख, सुविधाएं आदि उपलब्ध कराए। लेकिन उनका प्रारब्ध तो कुछ और ही था। उन्होंने राजकाज, युद्ध विद्या, घुड़सवारी, तीरंदाज़ी आदि सभी की शिक्षा ली। उनका विवाह यशोधरा नाम की राजकुमारी से हुआ जिनसे उन्हें राहुल नाम का पुत्र प्राप्त हुआ।
राजा ने उन्हें संन्यास से दूर रखने के लिए हर संभव प्रयास किया, लेकिन नियति को कौन टाल सकता है? वसंत ऋतु में एक दिन सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले। उन्होंने एक बूढ़े, एक रोगी और एक मृत व्यक्ति की झलक देखी। इन दृश्यों ने उन्हें प्रभावित किया और जीवन के असली स्वरूप से उनका परिचय कराया। उनका मन वैराग्य की ओर मुड़ गया।
सत्य की खोज और ज्ञान प्राप्त करने के लिए अपना घर परिवार त्याग दिया। कई वर्षों की कठिन साधना के बाद बोधगया जो वर्तमान बिहार में हैं, में उन्हें परम ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे बुद्ध कहलाए। उन्होंने अष्टांगिक मार्ग और चार आर्य सत्य के ज़रिए दुःखों से मुक्ति का रास्ता दिखाया।
चार आर्य सत्य इस प्रकार हैं:
- जीवन दुःखमय हैं।
- दुःख का कारण तृष्णा हैं
- तृष्णा का अंत संभव हैं।
- इस अंत तक पहुंचने का मार्ग अष्टांगिक मार्ग हैं।
अष्टांगिक मार्ग इस प्रकार हैं:
सही ध्यान, सही स्मृति, सही कर्म, सही आजीविका, सही दृष्टिकोण, सही प्रयास, सही वाणी, सही संकल्प।
ये पर्व सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार आदि देशों में भी बड़ी प्रमुखता से बनाया जाता हैं। इस दिन दान पुण्य का खास महत्व हैं। इस दिन सत्तू, पंखा, छाता, जल से भरे कलश आदि को दान करना विशेष पुण्य देने वाला माना जाता हैं। इस दिन बौद्ध विहारों और मन्दिरों में प्रार्थना सभाएं होती हैं जिसमें बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं।
बुद्ध पूर्णिमा ज्ञान के प्रकाश का पर्व है, जो हमें अज्ञान के अंधकार से निकालकर सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह दिन हमें भगवान बुद्ध के त्याग, साधना और करुणा के संदेश को याद दिलाता है और हमें एक सार्थक जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।