वेस्ट इंडीज विश्व की ऐसी टीम है। जिसने एकछत्र क्रिकेट में अपनी धाक जमाकर रखी। 70 के दशक में विवियन रिचर्ड्स, गैरी सोबर्स, गार्डन ग्रीनिज, ग्रीफिथ हॉल, क्लाइव लॉयड, मैलकम मार्शल , माइकल होल्डिंग धुरंधर खिलाड़ी जब भी मैदान पर उतरते थे। तो विरोधी टीम खौफ खा कर पहले ही एक पल के लिए हार स्वीकार कर लेती थी। क्लाइव लॉयड की कप्तानी मे 1975 और 1979 मे विश्व चैम्पियन भी बने। इसके बाद दौर बदला और फिर 90 के दशक में इसी टीम ने फिर एक नई पीड़ी तैयार कि जिसमें शिव नारायण चंद्रपाल, क्रिस गेल, ब्रायन लारा, कर्टनी ब्राउन जैसे खिलाड़ियों ने टीम को नई रफ्तार दी। फिर डैरेन शैमी की कप्तानी मे विंडीज़ ने दो बार T20 वर्ल्ड कप जीता। लेकिन उसी कैरिबियाई टीम की हालत इस समय इतनी खराब है कि एसोसिएट देशों से हारकर वह वनडे विश्व कप के लिए सीधे क्वालीफाई नहीं कर सकी और इसी वजह से पहली बार टीम वर्ल्डकप से बाहर रहेगी। लेकिन किसी भी टीम का ऐसा डाउनफाल अचानक नही होता। तो आइये जानते है कि आखिर वो कौन से कारण हैं? जिस वजह से वेस्टइंडीज का क्रिकेट लगातार नीचे जा रहा है।
बोर्ड और खिलाडियों का असहयोग आंदोलन
बीते कुछ समय मे ये नजर आया कि विंडीज बोर्ड और खिलाडियों के बीच तानातनी चलती रहती है। बोर्ड ने कई मौकों पर खिलाडियों को बैक नही किया। खिलाड़ियों ने भी असहयोग दिखाया और दिखाते भी क्यूं ना। मुझे याद है 2016 वर्ल्ड कप मे किट स्पांसर तक नहीं मिले थे।
सबसे बड़ा रुपैया
वेस्ट इंडीज क्रिकेट टीम और बोर्ड दोनो ने पैसे को आगे रखा जबकि देश को पीछे। शीर्ष खिलाड़ियों को बचाए रखने में दिलचस्पी तनिक भी नहीं दिखाई। क्वालीफायर मैचों में आंद्रे रसेल, सुनील नारायण और शिमरोन हेटमायर ने सेवाएं क्यों नहीं दी। बोर्ड ने इन्हे पिछले साल जारी 18 सदस्यीय अनुबंध सूची से क्यों बाहर किया। सही बात यह है कि इन सभी ने अपनी मर्जी से बाहर रहने का फैसला किया। लेकिन क्या बोर्ड की जिम्मेदारी नही बनती कि जो भी मामले हो उन्हे सुलझाए। टी 20 लीग खेलने के लिए एनओसी क्यों जारी करता है। जाहिर सी बात है खिलाड़ियों को जो पैसा लीग से मिलता है। उसमें बोर्ड का भी कमीशन होता है। ऐसे में क्रिकेट का भला कैसे होगा।
सीनियर खिलाड़ियों की अनुपस्थिति
टीम में कई ऐसे खिलाड़ी रहे है जिन्होंने देश के लिए खेलने की बजाय फ्रेंचाइजी क्रिकेट को तरजीह दी। पिछले कुछ सालों में बाईलेट्रल सीरीज में अहम खिलाड़ियों का ना होना और उनकी लगातार अनुपस्थिति का टीम को लंबे समय मे भारी कीमत चुकानी पड़ी। टीम में सीनियर खिलाड़ियों की अनुपस्थित में युवा खिलाड़ियों को शामिल करने से टीम लगातार कमजोर होती चली गई। मैदान पर खिलाड़ियों की बॉडी लैंग्वेज से कई बार लगा कि खिलाड़ी सुस्त और थके हुए लगे।
लेकिन इस टीम मे अब भी काबिलियत है। शे होप, पूरन, हैटमायर, काइल मेयर्स जैसे खिलाडियों को फ्रैंचाइजी क्रिकेट से हटकर डोमेस्टिक क्रिकेट मे मन लगाना होगा। उम्मीद है कि वर्ल्ड क्रिकेट की मोस्ट इंटरटेनिंग टीम जल्द विश्व स्तर पर तगड़ी वापसी करती नजर आयेगी।