तमिलनाडु के चेन्नई से एक बड़ा “घोस्ट फैकल्टी स्कैम” का मामला सामने आया है। चेन्नई में स्थित भ्रष्टाचार विरोधी एनजीओ “अरप्पोर इयक्कम” की जांच में पता चला कि, राज्य की “अन्ना यूनिवर्सिटी” के इंजीनियरिंग कॉलेजों में 211 प्रोफेसरों ने 2500 पदों को भरने के लिए एक से ज्यादा एंट्री दी हैं। यह मामला तब सामने आया, जब अरप्पोर इयक्कम ने जांच कर खुलासा किया कि 2023-24 सत्र के दौरान यूनिवर्सिटी के 353 प्रोफेसर एक साथ कई कॉलेजों में कार्यरत थे।
मामले के खुलासे के बाद अन्ना यूनिवर्सिटी ने मामले की जांच शुरू कर दी थी और कहा था कि वह इस स्कैम में शामिल 60 कॉलेजों को समन करेगी। अगर इस स्कैम में कॉलेजों की भागीदारी साबित हो जाती है, तो वह अस्थायी रूप से उन्हें निलंबित कर देगी। साथ ही सभी 211 प्रोफेसरों को भी बैन कर दिया जाएगा।
बाद में अरप्पोर इयक्कम को यूनिवर्सिटी की वेबसाइट में दर्ज प्रोफेसरों की आईडी से इस स्कैम की पुष्टि हुई। दरअसल, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) की वेबसाइट पर हर एक प्रोफेसर को एक यूनिक आईडी दिया गया है। जिसके मुताबिक, एक कॉलेज में काम करने वाले प्रोफेसर को दूसरे कॉलेज में काम करने की अनुमति नहीं होती है।
हालांकि, जांच के दौरान पता चला कि एक ही प्रोफेसर बिना किसी उचित यूनिक आईडी के फर्जी तरीके से 10 से ज्यादा कॉलेजों में काम कर रहा है। जहां इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए आईडी में दाढ़ी वाली तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है, वहीं दूसरे के लिए बिना दाढ़ी का। अरप्पोर इयक्कम के मुताबिक, अन्ना यूनिवर्सिटी के 224 कॉलेजों में अभी तक कुल 353 प्रोफेसरों ने धोखाधड़ी की है।
सभी सबूत सामने आने के बाद अन्ना विश्वविद्यालय के कुलपति वेलराज ने कबूला कि यह आरोप सही हैं। वेलराज ने बताया कि, वर्तमान समय में 2000 पदों पर केवल 189 प्रोफेसर काम कर रहे हैं। 2000 प्रोफेसरों की जगह ये 189 प्रोफेसर एक से ज्यादा कॉलेजों में काम कर रहे हैं। एक प्रोफेसर ने तो 32 कॉलेजों में एक साथ काम किया है। स्वघोषणा के दौरान आधार नंबर एक-दूसरे से बदले गए थे। इस बात का पता यूनिवर्सिटी को उनकी जन्मतिथि देखकर पता चला। वेलराज ने कहा है कि, वह उन कॉलेजों पर भी निश्चित रूप से कार्यवाई करेंगे जिनमें यह स्कैम हुआ है।
इससे पहले भी अन्ना यूनिवर्सिटी की ऐसे ही एक और मामले में भागीदारी की खबर सामने आ चुकी है। इससे पहले भी 2019 में इसके प्रोफेसर मुसीबत में फंस चुके थे। दरअसल, 2019 में यूनिवर्सिटी ने मार्क्स-फॉर-मनी स्कीम में शामिल चार प्रोफेसरों को सस्पेंड कर दिया था। इस स्कीम में प्रोफेसरों ने छात्रों को अच्छे ग्रेड से पास करने की गारंटी के बदले 25,000 से 1 लाख रुपये तक की मांग की थी।