आज हम उस आवाज़ के ख़ामोश हो जाने पर शोक मना रहे हैं जिसने हमेशा हक़ और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी। सीताराम येचुरी… एक ऐसा नाम जो संघर्ष की पहचान था… भारत में वामपंथ की सियासत को 45 साल तक रौशन करने वाले सीताराम येचुरी नहीं रहे। येचुरी कम्युनिष्ट पार्टी ऑफ इंडिया के प्रमुख थे। गुरुवार 12 सितंबर को उनका निधन हो गया। 72 वर्षीय नेता दिल्ली AIIMS के ICU में भर्ती थे। एम्स सूत्रों के मुताबिक फेफड़ों में संक्रमण और मल्टी ऑर्गन फेलियोर के चलते उनका निधन हुआ है। एम्स ने बताया कि येचुरी के परिवार ने उनके शरीर को रिसर्च और पढ़ाई के लिए अस्पताल को दान कर दिया गया।
सीताराम येचुरी का नाम भारतीय राजनीति के एक सशक्त और दृढ़ नेता के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने अपने जीवन को समाजवाद और वामपंथी विचारधारा के प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। उनका निधन वामपंथी राजनीति के लिए एक अपूरणीय क्षति है। एक ऐसी आवाज, जो हमेशा आम आदमी, किसान, मजदूर और हाशिए पर खड़े लोगों के लिए खड़ी रही, अब सदा के लिए मौन हो गई है।
सीताराम येचुरी के प्रारंभिक जीवन की बात करे तो उनका जन्म 12 अगस्त 1952 को तत्कालीन मद्रास में एक तेलुगु ब्रह्माण परिवार में हुआ था। उनके पिता एसएस येचुरी आंध्र प्रदेश के परिवहन विभाग में इंजीनियर थे और माता कलपक्म येचुरी सरकारी ऑफिसर थीं।सीताराम येचुरी की शुरुआती पढ़ाई हैदराबाद में हुई। 1969 में वह दिल्ली आ गए और यहां पर उन्होंने प्रेंजीडेंट्स इस्टेट स्कूल नई दिल्ली में दाखिला लिया। स्टूडेंट लाइफ में येचुरी टॉपर रहे।
12 अगस्त 1952 को आंध्र प्रदेश के मद्रास में जन्मे सीताराम येचुरी का जीवन संघर्ष और समर्पण की मिसाल है। दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में स्नातक करने के बाद, उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से स्नातकोत्तर किया। यहीं से उनका जुड़ाव छात्र राजनीति और वामपंथी विचारधारा के साथ गहरा हुआ।
येचुरी की राजनीतिक यात्रा जेएनयू से शुरू हुई। 1970 के दशक में, वे जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष बने और आपातकाल के समय में इंदिरा गांधी की सरकार का विरोध करते हुए जेल भी गए। 1975-77 के आपातकाल के दौरान उनका संघर्ष और साहसिक नेतृत्व वामपंथी राजनीति के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है। 1975 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी सीपीआई(एम) में शामिल होकर, उन्होंने पार्टी की नीति और रणनीति को नई दिशा दी।
सीताराम येचुरी का सीपीआई(एम) के महासचिव के रूप में कार्यकाल भारतीय राजनीति में मील का पत्थर साबित हुआ। उनके नेतृत्व में पार्टी ने सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और समता के मुद्दों को प्राथमिकता दी। उन्होंने हमेशा गरीबों, वंचितों और श्रमिक वर्ग के अधिकारों के लिए आवाज उठाई। चाहे वह आर्थिक असमानता का मुद्दा हो, सांप्रदायिकता का विरोध हो, या फिर किसान आंदोलन का समर्थन—येचुरी हमेशा अग्रणी पंक्ति में खड़े रहे।
सीताराम येचुरी के विचार और सिद्धांत हमेशा समाजवाद और वामपंथी मूल्यों पर आधारित रहे। वे एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने कभी भी अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया। उनका मानना था कि सच्चा विकास तभी संभव है जब समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति का विकास हो।
सीताराम येचुरी की विरासत सिर्फ एक राजनेता की नहीं, बल्कि एक विचारक, रणनीतिकार और समाजसेवी की है। सीताराम येचुरी का निधन भारतीय राजनीति में एक युग के अंत के समान है। उनकी सादगी, संघर्ष और समाज के प्रति समर्पण की भावना लोगों के दिलों मे हमेशा जीवित रहेगी।