इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज राम मनोहर नारायण मिश्रा के हालिया फैसले ने देश में आक्रोश पैदा कर दिया, जब उन्होंने कहा कि पीड़िता के breasts को छूना या पजामे का नाड़ा तोड़ना रेप नहीं माना जा सकता हैं बल्कि यह निर्वस्त्र करने के इरादे से किया गया हमला माना जाएगा। इस फैसले का जोरदार विरोध हो रहा हैं।
क्या हैं पूरा मामला?
मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले का है, जहां पवन और आकाश नाम के 2 लड़कों पर 11 साल की बच्ची के साथ रेप का आरोप लगा था। शिकायत मुताबिक, दोनों आरोपियों ने बच्ची के breasts पकड़े और उसके पजामे की डोरी तोड़ दी। इसके बाद, उन्होंने बच्ची को एक पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की, मगर आसपास लोगों के आ जाने से से आरोपी भाग गए। जिला अदालत ने आरोपियों पर IPC की धारा 376 और POCSO एक्ट के तहत मुकदमा चलाने का आदेश दिया था। हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा कि आरोपियों का ये कृत्य रेप या रेप की कोशिश के आरोप के लिए काफी नहीं हैं। कोर्ट ने इन हरकतों को गंभीर यौन उत्पीड़न माना और आरोपों में बदलाव कर दिया। हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि आरोपियों पर IPC की धारा 354-B और POCSO एक्ट की धारा 9/10 के तहत मुकदमा चलाया जाए। अदालत ने कहा कि ऐसा कोई सबूत नहीं हैं कि जिससे ये साबित हो सके कि आरोपियों ने पीड़िता के साथ रेप का इरादा हो।
Prosecution और बचाव पक्ष की दलीलें
Prosecution ने तर्क देते हुए कहा कि आरोप तय करते वक्त, अदालत को सबूतों की गहराई में जाने की ज़रूरत नहीं हैं, बल्कि पहली नज़र में ये देखना चाहिए कि मामला बनता हैं या नहीं। इसके जवाब में बचाव पक्ष ने कहा कि शिकायत में जो बातें लिखी हैं, उनके आधार पर भी IPC की धारा 376 के तहत कोई अपराध नहीं बनता। उनका कहना था कि ये मामला IPC की धारा 354, 354-B और POCSO act से संबंधित provisions के तहत आता हैं, न कि धारा 376 के तहत।
फैसले पर प्रतिक्रिया
इस फैसले के बाद अलग-अलग कोनों से प्रतिक्रियाएं भी आना शुरू हो गई। केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने इस फैसले की निंदा करते हुए कहा कि इस तरह के फैसले से समाज में गलत संदेश जाएगा। राज्यसभा सासंद स्वाति मालीवाल ने भी इस फैसले की कड़ी आलोचना की और सुप्रीम कोर्ट के दखल देने की अपील की। शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने CJI संजीव खन्ना को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि इस तरह का फैसला सुनाने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज राम मनोहर नारायण मिश्रा को अयोग्य ठहराया जाए। CPI के नेता डी राजा ने भी इस judgement को भयावह और खतरनाक बताया हैं।
निष्कर्ष
इस तरह के फैसले ने महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी हैं और समाज में विरोध को जन्म दे दिया हैं। यह दिखाता हैं कि कानूनों को और सही तरीके से लागू करने की ज़रूरत हैं, ताकि पीड़ितों को इंसाफ और समाज में सुरक्षा बनी रहे।