ख़ुशी…यह शब्द सुनते ही हमारे मन में एक अजीबोगरीब सवाल पैदा हो जाता है। क्या यह वास्तव में उतनी आसान और स्थायी चीज़ है जितनी हम सोचते हैं? या फिर यह एक मृगतृष्णा है, जिसे हम जीवनभर पकड़ने की कोशिश करते रहते हैं बेवजह?
हर इंसान के लिए ख़ुशी की परिभाषा अलग होती है। किसी के लिए यह पैसे से जुड़ी होती है, तो किसी के लिए प्यार, सफलता, या मानसिक शांति से। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या ख़ुशी एक मंज़िल है, या यह एक यात्रा है? अक्सर लोग सोचते हैं कि कोई विशिष्ट लक्ष्य पाने के बाद वे खुश होंगे, जैसे एक बड़ी नौकरी, महंगी कार, शादी, या कोई और उपलब्धि। लेकिन जब वे इसे पा लेते हैं, तो वे एक और लक्ष्य की ओर भागने लगते हैं। इस कभी ना अंत होने वाली दौड़ को “हेडोनिक ट्रेडमिल” कहा जाता है…जिसमें इंसान एक लक्ष्य पूरा करने के बाद तुरंत अगले की तलाश में लग जाता है, लेकिन कभी पूर्ण संतुष्टि नहीं मिलती।
कोई भी हमेशा खुश नहीं रह सकता। असल में, ख़ुशी का अस्तित्व तभी है जब दुख हो। बिना अंधकार के रोशनी की कोई अहमियत नहीं होती। बुद्ध ने भी कहा था कि जीवन दुखों से भरा है, लेकिन सच्ची ख़ुशी इन्हीं दुखों को स्वीकार करने और उनसे सीखने में है।
आज के समय में ख़ुशी एक उत्पाद बन चुकी है। विज्ञापन, सोशल मीडिया, और मनोरंजन हमें यह यकीन दिलाते हैं कि ख़ुशी कुछ खरीदने से आती है, चाहे वह कोई गैजेट हो, ब्रांडेड कपड़े हों, या कोई ऑनलाइन अनुभव। लेकिन यह एक अस्थायी खुशी होती है, जो जल्दी ही खत्म हो जाती है।
सच्ची ख़ुशी बाहरी चीज़ों में नहीं, बल्कि अंदरूनी संतोष में है। यह छोटे-छोटे पलों में बसती है जैसे किसी दोस्त के साथ बिताए पल में, किताब पढ़ने के सुकून में, परिवार के साथ बिताए समय में, या फिर किसी ज़रूरतमंद की मदद करके मिलने वाली संतुष्टि में। शोध भी कहते हैं कि जो लोग आभार प्रकट करते हैं और दूसरों की मदद करते हैं, वे अधिक खुश रहते हैं।
हर साल 20 मार्च को International Day of Happiness मनाया जाता है। इसका उद्देश्य दुनिया को यह याद दिलाना है कि ख़ुशी केवल एक व्यक्तिगत भावना नहीं, बल्कि सामाजिक और वैश्विक भलाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। संयुक्त राष्ट्र ने 2012 में इस दिन को आधिकारिक रूप से मान्यता दी थी, और 2013 से इसे मनाया जा रहा है। मतलब साल में एक दिन हमें याद दिलाना की खुश रहना है और इसका जश्न मनाना। भला इससे. भी ज्यादा दुखी करने वाली बात और क्या हो सकती है!
बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2011 में भूटान के एक प्रस्ताव को स्वीकार किया, जिसमें यह तर्क दिया गया था कि आर्थिक विकास के साथ-साथ नागरिकों की खुशी भी सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिए। भूटान लंबे समय से ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस को GDP से अधिक महत्वपूर्ण मानता रहा है इसके क्या फायदे हैं मुझे नहीं मालूम लेकिन भूटान क्युं गरीब है शायद इससे आपको एक अंदाजा भी लग जायेगा। इसी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए 20 मार्च को अंतरराष्ट्रीय ख़ुशी दिवस घोषित किया गया।
वैसे संयुक्त राष्ट्र ने ख़ुशी को मापने के लिए तीन मुख्य स्तंभ भी निर्धारित किए हैं। सामाजिक भलाई, आर्थिक समृद्धि और पर्यावरण संतुलन।
World Happiness Report में भारत की रैंकिंग आमतौर पर बहुत ऊंची नहीं होती। इसका कारण बढ़ती प्रतिस्पर्धा, मानसिक तनाव, बेरोजगारी, और सामाजिक असमानता माने जाते हैं। हालांकि, भारत की सांस्कृतिक विरासत में योग, ध्यान, और संतोष की शिक्षा निहित है, जो वास्तविक खुशी पाने में मदद कर सकते हैं।
अंत में मैं यही कहना चाहूँगा कि ख़ुशी कोई दौड़ नहीं है, जिसे जीतने की कोशिश की जाए। यह एक अहसास है, जो हमें उन्हीं चीज़ों में ढूंढनी होगी जो हमारे पास हैं, न कि उन चीज़ों में जो हम चाहते हैं। हमें समझना होगा कि ख़ुशी कोई अंतिम लक्ष्य नहीं, बल्कि यह जीवन के हर मोड़ पर महसूस किया जा सकने वाला एक अनुभव है।