जहां एक तरफ दुनिया के अन्य देश स्पेस साइंस से लेकर ना जाने कितने नये आयामों को खोज और अपने आपको स्थापित कर रहे है। दूसरी तरफ एक ऐसा देश आता है, जहां मानवाधिकार, महिला सशक्तिकरण और अपनी बात कहने की आज़ादी। संविधान और दस्तावेजों मे लिखे हुए चंद शब्द मात्र है। देश का नाम है ईरान जहां आज की तारीख मे भी सैकड़ों मानवाधिकार रक्षक सलाखों के पीछे हैं। अधिकारीयों की जवाबदेही और न्याय की मांग करने वालों को परेशान करना, गिरफ्तार करना और मुकदमा चलाने जैसे ढेरों मसलों पर सरकार की मनमानी आज भी जारी है।
ईरान मे लगभग हर दिन भीड़ विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतरती है। कभी-कभी वे सार्वजनिक भवनों पर हमला कर देते हैं। कभी-कभी वे पुलिस की गाड़ियों में आग लगा देते हैं, महिलाएँ अपने सिर से स्कार्फ उतारती हैं और अपने बालों को खुला छोड़ देती हैं, एक संकेत के रूप में कि वे अब राज्य के नियमों से बंधे नहीं हैं। लेकिन आज़ादी की आवाज़ उठाने मात्र के लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ती है।
ये थी ईरान की आज की तस्वीर। ईरान जो अपने ही देश की महिलाओं को खुले बाल रखने तक कि आज़दी नहीं देता, और महिलाओं पर हिंसा और उनकी आवाज दबाने के लिए बेहद कुख्यात है।
इसी देश की एक वकील और कार्यकर्ता ‘नरगिस मोहम्मदी’ को 2023 के शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें दिये गये सम्मान के सन्दर्भ मे मुझे मशहूर रैप कलाकार Tupac Shakur की एक किताब ‘The rose that grew from concrete’ का title याद आता है। मुझे उम्मीद है कि आप इस सन्दर्भ को समझ पाये होंगे।
नरगिस को ये सम्मान महिलाओं की आजादी, सरकार और अधिकारियों से पीड़ित लोगों की आवाज़ बनने के लिये दिया गया है। लेकिन Narges ने जो मकसद खुद के लिये चुना उसका रास्ता बिल्कुल आसान नही था। 2003 में नरगिस तेहरान के ‘Defenders OF human rights’ से जुड़ी। इस संगठन को नोबेल पुरस्कार विजेता शिरीन एबादी ने शुरू किया था। फिर साल 2011 मे उन्हें पहली बार जेल जाना पड़ा, उन पर जेल में बंद कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों की मदद करने का आरोप था। पिछले 13 वर्षों का अधिकांश समय उन्होंने सलाखों के पीछे बिताया है। जनवरी 2022 में उन्हें फिर से आठ साल की जेल और 70 कोड़े खाने की सजा मिली। नरगिस मोहम्मदी राजनैतिक कैदियों पर सत्ता के उत्पीड़न के खिलाफ लगातार विरोध जताती रही हैं। अपनी सजा के दौरान उन्होंने एक किताब लिखी जिसका शीर्षक ‘White : Interviews with iranian women Prisoners’ है। ये किताब उन्हें जेल मे मिले 16 कैदी जिन्हें ‘White torture’ का सामना करना पड़ा है उनके साक्षात्कार के आधार पर लिखी गई है। किताब के बारे मे आगे बढ़ने से पहले चलिये जानते है कि ये White torture होता क्या है? आसान शब्दों मे White torture एक मनोवैज्ञानिक यातना है।
White torture या white room torture सीधे शरीर पर हमला नहीं करती है, इसमे किसी व्यक्ति की पांच senses या psychological integrity पर हमला करके व्यक्ती को मानसिक रूप से तोड़ा जाता है, इसके निशान कभी खुली आंखों से नही देखे जा सकते। लेकिन ये क्रूर मानसिक यातना व्यक्ती पर अमिट मनोवैज्ञानिक निशान छोड़ देती है। इसका प्रभाव व्यक्ती की आखिरी साँस तक उसके साथ मे रह जाता है। 2001 के हमलों के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने white torture का सहारा लिया। तब से, यातना का यह तरीका ईरान और अन्य जगहों पर तेजी से फैला और अपनाया गया। यह विशेष रूप से ईरान में राजनीतिक कैदियों पर अभ्यास किया जाता है।
इस मानसिक यातना मे किसी भी व्यक्ती को एक कमरे मे रखा जाता है। कमरा जहां सिर्फ चार सफेद दीवारें हैं,सफेद चिकनी ज़मीन,कोई प्राकृतिक प्रकाश नहीं, कोई ध्वनि नहीं, बिना स्वाद का सफेद खाना और कोई मानवीय संपर्क नहीं होता। बंदियों को अक्सर महीनों या वर्षों तक हिरासत में ऐसे रखा जाता है। इस मानसिक यातना के कुछ समय के बाद, कई लोग किसी भी अपराध को कबूल करना पसंद करेंगे, भले ही उन्हें पता हो के उस कबूलनामे के बाद उसे फांसी दे दी जायेगी। white torture एक बेहद प्रभावी क्रूर तरीका जो कोई निशान नहीं छोड़ता है।
नरगिस की इस किताब में उन्होंने साथी कैदियों पर हुए तकलीफों की दास्तान को दर्ज किया गया है। कुछ हिस्सों मे लिखा है कि शारीरिक यातना के अलावा, ईरानी महिलाएं एक प्रकार की मानसिक यातना के प्रति संवेदनशील होती हैं, जिसका उद्देश्य उन्हें शर्मिंदा करना, अपमानित करना और लज्जित करना होता है। उन्हें अधिकारियों और कैमरों के सामने नहाने और बाथरूम का उपयोग करने के लिए मजबूर किए जाता है। जेल अधिकारी कैदियों के लैपटॉप और फोन पर चैट हिस्ट्री और फोटो गैलरी की जांच करके उनके निजी जीवन में झांकते हैं, और कुछ महिलाओं को यौन आरोपों को कबूल करने के लिए मजबूर किया जाता है।
किताब मे ऐसी कई कहानी है जो इंसानियत के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगाती और सोचने पर मजबूर कर देती है। बाद मे इसी किताब के Title से एक documentary भी रिलीज की गई। ईरानी हुकूमत ने बहुत कोशिशें कीं, मगर नरगिस की आवाज़ को दबा नहीं सके।