21 फरवरी 2024 को कर्नाटक सरकार ने राज्य में कन्नड़ भाषा को बढ़ावा देने के लिए एक बिल पास किया है। इसी के साथ कर्नाटक के कन्नड़ और संस्कृति मंत्री शिवराज तंगदागी ने, राज्य में काम करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNC) के लिए एक फरमान भी जारी किया है। इस नए कानून ने कन्नड़ भाषी लोग और उत्तर भारतीय लोगों ने बहस छेड़ दी है।
क्या है नया कानून?
पहला कानून है कि MNCs को कन्नड़ भाषी कर्मचारियों की संख्या दिखाना अनिवार्य होगा है। इस कानून में राज्य में काम करने वाली MNC को अपने परिसर में कन्नड़ लोगों की संख्या को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करना अनिवार्य होगा। इसका उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना और संभावित रूप से स्थानीय प्रतिभाओं को ज्यादा से ज्यादा रोजगार पर रखने के लिए बढ़ावा देना है।
दूसरा कानून 60% कन्नड़ साइनेज का है। हाल ही में कन्नड़ भाषा व्यापक विकास (संशोधन) बिल पास हुआ है। इस बिल के अंतर्गत कर्नाटक में व्यवसायों को कम से कम 60% साइनेज कन्नड़ में रखने अनिवार्य होगा। इसमें दुकान के नाम, विज्ञापन और अन्य चीजे शामिल होगी। इसका उद्देश्य सार्वजनिक स्थानों पर भाषा को बढ़ावा देना और राज्य के भीतर सांस्कृतिक पहचान की भावना को बढ़ावा देना है।
क्या है सरकार का तर्क?
इन घोषणा के पीछे सरकार ने अपने तीन तर्क रखे है, जिसमे पहला तर्क है कि, राज्य के भीतर कन्नड़ भाषा की रक्षा और प्रचार के लिए ये उपाय आवश्यक हैं। उनका मानना है कि यह नीति कन्नड़ भाषा के उपयोग और दृश्यता को बढ़ा सकती है, जिससे कन्नड को सांस्कृतिक गौरव और पहचान को बढ़ावा मिलेगा। दूसरा तर्क है कि, कर्मचारी डेटा को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने से कंपनियां भर्ती प्रथाओं के लिए जिम्मेदार होगी। इससे उन्हें अपने कार्यबल में विविधता लाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। इसके अलावा सरकार का कहना है कि, इससे स्थानीय रोजगार के अवसर मिलेंगे। इस बिल से स्थानीय प्रतिभा पर ध्यान बढ़ने से कन्नड़ भाषी लोग के लिए रोजगार के अधिक अवसर पैदा हो सकेंगे।
क्या है लोगों की प्रतिक्रिया?
इस घोषणा पर मिली-जुली प्रतिक्रिया आई है। कुछ लोग इसे स्थानीय भाषा और संस्कृति की रक्षा की दिशा में एक सकारात्मक कदम के रूप में देख रहे हैं। जबकि अन्य गैर-कन्नड़ लोगों ने अपने खिलाफ भेदभाव और व्यापार विकास में बाधा के बारे में चिंता दिखाई हैं। उनका कहना है कि भाषा के आधार पर कर्मचारी संख्या प्रदर्शित करना भेदभाव को दर्शाता है और व्यक्तिगत गोपनीयता का उल्लंघन करता है। उन्हें डर है कि इससे गैर-कन्नड़ लोगों के खिलाफ अनुचित नियुक्ति प्रक्रिया को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा यह नीति MNC को कर्नाटक में निवेश करने से हतोत्साहित कर सकती है, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को नुकसान हो सकता है।
हालांकि, कर्मचारियों की संख्या प्रदर्शित करने वाला प्रस्ताव अभी भी चर्चा में है। इस प्रस्ताव में अंतिम फैसला आना अभी भी बाकी है।