इस भागती दौड़ती ज़िंदगी में हर व्यक्ति किसी ना किसी चीज़ से जूझ रहा है। सोशल मीडिया पर अक्सर लोग डिप्रेशन, ट्रामा या मानसिक शक्ति और सेहत के बारे में बातें करते है ताकि बढ़ती आत्महत्या के मामलों को कम किया जा सके। पर गौर इस बात पर करना चाहिए कि हर वक़्त इंसान अपनी मुश्किलें बाट नहीं सकता और हर बार मदद करने को भी कोई साथ नहीं हो सकता, तो ऐसे में उस व्यक्ति को अकेला, अपनी लड़ाई लड़ने को छोड़ देना चाहिए?
ऐसे में एक किताब अगर आपको यह समझा सके की आप इस लड़ाई में अकेले नहीं है तो वो चन्द शब्द इंसान को हौसला और हिम्मत देने को काफ़ी होते है।
ऐसी ही एक किताब आशीष बागरेचा ने “Dear Stranger, I Know How You Feel” के नाम से लिखी है। इस ही बुक का हिन्दी वर्जन भी आया है, “डियर अजनबी, मैं तुम्हारे साथ हूँ” के नाम से। अलग अलग हिस्सों में आशीष ने बड़े ही अच्छे से यह बताया है की जो चीज़ अपने साथ हो रही है वो कुछ अलग नहीं है बल्कि ज़िंदगी का एक हिस्सा हैं। अपनी ज़िंदगी के एक्सपीरिएंस को शेयर करते हुए उन्होंने लोगों को एक राह दिखाने की कोशिश की है कि यह सब आगे बढ़ने की निशानी है।
सरल भाषा में यह जताया है की ब्रेकअप, करियर या फ़ैमिली से जुड़ी परेशानी इस ज़िंदगी का हिस्सा ही है और इससे डरकर या हार मानकर हौसला नहीं खोना चाहिए।
“डेडिकेट योरसेल्फ टू पर्पस एंड नोट टू अ पर्सन”, “यू आर ऐट वॉर विथ योरसेल्फ थॉट्स व्य यू आर ऐट वॉर विथ ऑथर्स”, “व्हाट इफ आई कांट फाइंड लव, देन लव विल फाइंड यू” जैसी लाईन्स का यूज़ करके आशीष ने लोगो को एक साथ दिया है बिना साथ हुए भी।
ऐसी ही एक और किताब उन्होंने लिखी थी, ‘लव, होप एंड मैजिक’ के नाम से जो की लोगो को पहली किताब जितनी ही पसंद आई थी। इंसान भले ही ख़ुद को सबसे स्ट्रोंग दिखा दे लेकिन कभी ना कभी ज़िंदगी में उसे एक वयक्ति का साथ होने का, भले ही वहेम हो, पर जरुरत होती है। आशीष की किताबों जैसी किताबें उस हर वायक्ति का साथ है जो अपनी मजबूरी और दर्द दुनिया के सामने रख नहीं पाते है। वह एक साथ है जो हर इंसान को चाहिए होता है। एसी और किताबें लोगो को वो हौसला दे सकती है जो शायद वो 100 लोगो के बीच रह कर भी नहीं महसूस कर सके।