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Reading: क्यूँ मनाया जाता है April’s fool day?
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Fourth Special

क्यूँ मनाया जाता है April’s fool day?

आज, यह दिन पूरी दुनिया में Pranks करने का बहाना है

Last updated: अप्रैल 1, 2025 12:50 अपराह्न
By Rajneesh 2 महीना पहले
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6 Min Read
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अप्रैल फूल्स डे की हिस्ट्री उतनी ही एब्सर्ड और काम्प्लेक्स है जितना यह सेलिब्रेशन खुद। इसकी शुरुआत से जुड़ी एक कहानी है कि ये 16वीं सदी में तब शुरू हुआ जब ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया गया। पहले, यूरोप में नया साल 1 अप्रैल के आसपास मनाया जाता था, लेकिन 1582 में पोप ग्रेगरी XIII ने नया कैलेंडर लागू किया, जिसमें नया साल 1 जनवरी को शिफ्ट हो गया।

अब मुश्किल यह थी कि कई लोगों को यह बदलाव पता ही नहीं चला या उन्होंने मानने से इनकार कर दिया। जो लोग 1 अप्रैल को ही नए साल का जश्न मनाते रहे, वे दूसरों के लिए हंसी का पात्र बन गए। उन्हें “अप्रैल फूल” कहकर चिढ़ाया गया, उनके साथ मज़ाक किए गए और इस तरह, एक परंपरा बन गई।

इससे भी पुराने रिकॉर्ड्स में “Feast of Fools” का ज़िक्र मिलता है, जिसे medieval यूरोप में मनाया जाता था। यह 1 जनवरी को होता था, और इसमें Religious institutions की पैरोडी बनाई जाती थी जैसे लोग चर्च के बड़े पदों का मज़ाक उड़ाते थे, किसी को ‘बेवकूफ राजा’ बनाते थे, और अजीबोगरीब हरकतें करते थे।

अब देखिए, नया साल पहले 1 अप्रैल को था, मूर्खों की दावत 1 जनवरी को थी, और धीरे-धीरे दोनों ने मिलकर 1 अप्रैल को मूर्खता का yearly फेस्टिवल बना दिया! वैसे यह बात और है कि तब भी और अब भी सत्य है कि दुनिया में हर दिन ही मूर्खों का राज रहता है!

इससे जुड़ी अन्य दो कहानियां भी हैं। एक ज्योफ्रे चौसर की किताब ‘द कैंटरबरी टेल्स’ से जुड़ी हुई है। बुक में 1392 में 1 अप्रैल को मूर्खता से जोड़ा गया है। थ्योरी में, एक मुर्गा चांटेक्लेर, एक लोमड़ी से धोखा खा जाता है। लोमड़ी उसे बताती है कि ‘मार्च शुरू होने के बाद, बत्तीस दिन हो गए हैं’ यानी 1 मार्च से 32वां दिन, जो 1 अप्रैल है। लेकिन, यह साफ नहीं है कि चौसर 1 अप्रैल की बात कर रहे थे। थ्योरी में यह भी बताया गया है कि यह कहानी उस दिन की है जब सूरज ‘टॉरस के नक्षत्र में इक्कीस डिग्री पर था’ जो 1 अप्रैल नहीं होगा। आजकल कईयों का मानना है कि इन किताबों में गलती है और चौसर ने असल में ‘सिन मार्च वाज गॉन’ लिखा था। इसका मतलब होगा कि मार्च के 32 दिन बाद, यानी 2 मई।

इसके अलावा फ्रांस में 1 जनवरी को नया साल मनाने का चलन 16वीं सदी के मध्य में शुरू हुआ। 1564 में, रूसिलोन के एडिक्ट द्वारा इसे आधिकारिक तौर पर अपनाया गया। यह फैसला 1563 में ट्रेंट की परिषद में लिया गया था। लेकिन, इस थ्योरी में कुछ कमियां हैं। 1561 में फ्लेमिश कवि एडुआर्ड डे डेने की एक कविता में अप्रैल फूल्स डे का जिक्र है। कविता में एक रईस अपने नौकर को 1 अप्रैल को बेवकूफी भरे काम करने के लिए भेजता है। यह 1 जनवरी को कैलेंडर वर्ष की शुरुआत के रूप में स्थापित होने से पहले की बात है। 1686 में, जॉन ऑब्रे ने इस त्योहार को ‘फूल्स होली डे’ कहा। यह पहला ब्रिटिश जिक्र था ।

आज, यह दिन पूरी दुनिया में Pranks करने का बहाना है। आजकल, बड़े-बड़े ब्रांड भी अप्रैल फूल्स डे को बहुत गंभीरता से लेते हैं मतलब, इसमें पूरी तैयारी और बजट लगाते हैं! Example के लिए गूगल कई बार एक नकली, मगर बेहद आकर्षक उत्पाद की घोषणा करता है, जैसे 2013 में उसने गूगल नोज़ Google Nose BETA लॉन्च किया था, जो स्क्रीन पर खुशबू देने का दावा करता था। लाखों लोग स्क्रीन पर नाक लगाकर सूंघते रह गए!

BBC ने एक बार 1957 में दिखाया था कि स्पेगेटी पेड़ों पर उगता है, और लोग सच में पूछने लगे थे कि वे स्पेगेटी के पौधे कैसे खरीद सकते हैं!

बर्गर किंग ने 1998 में “लेफ्ट-हैंड व्हॉपर” नाम का एक बर्गर लॉन्च किया था, जो कथित तौर पर बाएँ हाथ वालों के लिए डिज़ाइन किया गया था। लोगों की भीड़ इसे खरीदने टूट पड़ी और सब फ़ूल बन गए।

भारत में भी मज़ाक करने की यह परंपरा बड़े मज़े से निभाई जाती है। खासकर, मीडिया और सोशल मीडिया पर लोग सबसे अजीबोगरीब चीज़ें फैलाते हैं जैसे “सलमान खान शादी कर रहे हैं!” या “केंद्र सरकार ने सभी लोगों के लोन माफ कर दिए!” जैसी खबरें मिनटों में वायरल हो जाती हैं।

अब सवाल उठता है…आखिर लोग इस दिन इतनी शिद्दत से मूर्ख बनने और बनाने में लगे क्यों रहते हैं? शायद इसलिए क्योंकि मज़ाक और हँसी, इंसान के भीतर की मासूमियत को बचाए रखते हैं। हम बाकी दिन कितने भी गंभीर क्यों न रहें, 1 अप्रैल को हमारा बचपना वापस लौट आता है।

कहीं न कहीं, अप्रैल फूल्स डे हमें याद दिलाता है कि ज़िंदगी को हमेशा गंभीरता से लेना ज़रूरी नहीं। कभी-कभी, थोड़ा हँसना-हँसाना भी ज़रूरी है…बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई आपको कहे कि “तुम्हारे पीछे भूत खड़ा है!” और आप डरने की बजाय ज़ोर से हँस दें।

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TAGGED: April Fool's Day, Fools' Feast, Gregorian calendar, laughter, origins, pranks, thefourth, thefourthindia
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