मणिपुर में रात मे कुछ देर के लिए शांति थी, चिंता और चिंतन से थके हारे लोगों की आंख बस लगी ही थी कि अचानक सुबह 6 बजे फेयेंग और सिंगदा गांवों से अंधाधुंध गोलीबारी की आवाजें सुनाई देती है। गोलीबारी कांगपोकपी जिले के कांगचुप इलाके के गांवों और पहाड़ियों को निशाना बनाकर की गईं थीं।
मणिपुर में हिंसा अभी भी जारी है। रविवार को मणिपुर के पश्चिमी कांगपोकपी इलाके में देर रात शुरू हुई हिंसक झड़पों के बाद के नतीजन सोमवार को एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई। वहीं, कम से कम 10 लोगों के घायल होने की खबर है। अब तक 150 लोगों की जाने ले चुका है ये जातीय दंगा।
अब भी मोदी मौन क्यूँ?
पिछले दो महीने से अशांत मणिपुर में बहुसंख्यक मेईतेई और आदिवासी कुकी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष जारी है, लेकिन मोदी सरकार ने वहां अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। मणिपुर के लोग आशंका और डर के साए में जी रहे हैं। विस्थापित लोग शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अब तक न मणिपुर के लोगों के बीच जाने की जरूरत महसूस हुई है और न ही उन्होंने शांति और विश्वास बहाल करने की अपील की है। इस मसले पर मोदी अब भी मौन क्यूं हैं इसका जवाब तो वो और स्वयं ईश्वर ही जनता है।
कैसे क्यूं और कब शुरू हुआ था दंगा
मणिपुर मे इस अशांति की शुरुआत चुराचंदपुर जिले से हुई। ये राजधानी इम्फाल के दक्षिण में करीब 63 किलोमीटर की दूरी पर है। तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला। ये मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के विरोध में था। यहीं से स्थिति काफी बिगड़ गई। आदिवासियों के इस प्रदर्शन के विरोध में मैतेई समुदाय के लोग खड़े हो गए। लड़ाई के तीन पक्ष हो गए। एक तरफ मैतेई समुदाय के लोग थे तो दूसरी ओर कुकी और नागा समुदाय के लोग। देखते ही देखते पूरा प्रदेश इस हिंसा की आग में जलने लगा जो अब तक नहीं रुकी है।