प्यार और विवाह के मायने समय के साथ बदलते रहे हैं। आज कल युवाओं के मन में शादी को लेकर एक अजीब सा डर बैठ गया है। हर दिन एक रिश्ते टूटने की नई कहानी सुनने में आ रही है। फिल्हाल डाईवोर्स का रेट भी तेजी से बढ़ा है। ऐसे उदाहरण देख कर युवाओं के मन में शादी जैसे जीवन भर के बंधन में बंधने का डर होना लाज़मी भी है। क्यूंकि शायद आज की पीढ़ी के लिए शादी केवल एक सामाजिक अनुबंध रह गई है, जिसमें छोटी-छोटी परेशानियों के कारण रिश्ते टूट जाते हैं।
प्यार और शादी में उतार-चढ़ाव आना स्वाभाविक है। लेकिन जब युवा जोड़े छोटी-छोटी समस्याओं को न सुलझाकर भागने लगते हैं, तो रिश्तों की गहराई समाप्त हो जाती है। लेकिन अगर बात उदहारण की ही है तो आज हम एक कहानी सुनाते है जो रिश्ते कैसे निभाये जाते हैं उसका एक अद्भुत उदाहरण है।
1960 का दौर था जब प्यार शायद दिखाने से ज्यादा महसूस किया जाता था। जब इश्क़ को सोशल मीडिया पोस्ट से ज्यादा खतों की आड़ में छुपाना ज्यादा मुनासिब समझा जाता था… किसी ख़ज़ाने की तरह! जब लोग शायद अपनी जिद से ज्यादा मोहब्बत के ज्यादा लड़ा करते थे।
गुजरात की मृदु एक ब्राह्मण परिवार की बेटी थी और हर्ष एक जैन परिवार से। तब जाति एक ऐसी दीवार मानी जाती थी जिसके बीच में कई प्रेम की कहानियों को हमेशा के लिए चुनवा दिया गया। दोनों की आंखें पहली बार स्कूल में मिलीं थी और शायद उसी पल दोनों ने जीवन भर एक दूसरे का साथ निभाने का वादा कर लिया था। लेकिन तब के हिंदुस्तान में अंतर्जातीय विवाह?? करना तो दूर उस बारे में सोच पाना भी मुश्किल रहा होगा…लेकिन मृदु और हर्ष के लिए नहीं उन दोनों ने उस दीवार को गिराने की हिम्मत दिखाई। जब परिवार ने पूछा, ‘प्यार चुनो या अपना रिश्ता?’ इन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के एक-दूसरे का हाथ थाम लिया। 1961 में दोनों ने चुपके से शादी कर ली…ना बैंड, ना बाजा, ना बारात… बस एक-दूसरे के साथ निभाने की कसमें। मात्र 10 रुपये की साड़ी और लाखों के सपने।
आगे का सफ़र और कठिन था। समाज ने खूब ताने मारे लेकिन दोनों चलते रहे…घर बनाया,बच्चों को जन्म दिया और प्यार को जिंदा रखा और ऐसा जिंदा रखा कि आज दोनों एक मिसाल बन गए हैं। अब 64 साल बाद दोनों की कहानी में ट्विस्ट आया। 80 की उम्र पार कर चुके हर्ष और मृदु को उनके परिवार ने ऐसा तोहफा दिया जो शायद हर प्रेम करने वाले का सपना होता है। दोनों फिर दूल्हा – दुल्हन बने…सात फेरे, मंगलसूत्र, जश्न और वो सब कुछ जो 64 साल पहले छूट गया था। आजकल रिश्ते बहुत छोटी-छोटी बातों पर टूट रहे हैं।
लेकिन सोचने की बात है कि पिछली पीढ़ी के पास ऐसा क्या था जो वो रिश्ते निभा जाते थे। ठीक ठीक जवाब तो नहीं है लेकिन उनके पास अपने साथी के लिए वक़्त और वादों को निभाने की नियत ज़रूर होती रही होगी। कहते हैं शादी एक दिन का जश्न होती है, पर निभाना पूरी ज़िन्दगी का सफर। हर्ष और मृदु की कहानी इसी सच्चाई का जीता-जागता सबूत है। जो सच में प्यार करते हैं, उन्हें शब्दों या रस्मों की ज़रूरत नहीं होती बस एक-दूसरे का हाथ थाम चलते रहने की ज़रूरत होती है।
अगर दोनों चाहते तो शुरुआत में ही हार मान लेते। वे भी यह सोच सकते थे कि परिस्थितियां उनके पक्ष में नहीं हैं, लेकिन उन्होंने रिश्ते की नींव को इतनी मजबूती से रखा कि वक्त की आंधियां भी उसे हिला न सकीं। यह उदाहरण युवाओं को सिखाता है कि जब तक दो लोग एक-दूसरे के लिए पूरी तरह समर्पित नहीं होते, तब तक कोई भी रिश्ता सफल नहीं हो सकता।
आजकल सोशल मीडिया और तेजी से बदलती जीवनशैली ने रिश्तों को कमजोर बना दिया है। लोगों में धैर्य की कमी हो गई है, वे तुरंत परिणाम चाहते हैं, बिना यह सोचे कि हर मजबूत रिश्ता समय मांगता है। ऐसे में हर्ष और मृदु की कहानी बताती है कि सच्चा प्यार केवल खुशी के पलों में नहीं, बल्कि मुश्किल समय में भी साथ खड़े रहने से बनता है। अगर वे चाहते, तो जीवनभर एक अधूरे सपने के साथ जी सकते थे, लेकिन उन्होंने 64 वर्षों के बाद भी अपने प्रेम को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का निर्णय लिया।
आज के समय में, अगर कई रिश्ते 64 महीने भी नहीं टिकते, तो सोचिए वे 64 वर्षों तक किस तरह से एक-दूसरे के साथ रहे होंगे? उन्होंने प्रेम की परिभाषा को केवल शब्दों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे अपने जीवन में जिया।
यह बुजुर्ग दंपति आज के युवाओं के लिए एक उदाहरण है कि सच्चा प्यार समय की कसौटी पर खरा उतरता है। रिश्तों को निभाने के लिए संघर्ष, धैर्य और समर्पण की आवश्यकता होती है। हर समस्या का हल अलग होने में नहीं, बल्कि साथ रहकर उसे सुलझाने में है।